कभी 338 पदों के लिए आए थे 2300000 आवेदन हालात अब भी जस के तस
2015 में उत्तर प्रदेश में चपरासी के 368 पदों के लिए 23 लाख आवेदन प्राप्त हुए थे. 2018 में भारतीय रेलवे में 90,000 पदों के लिए 2 करोड़ से अधिक आवेदन आए थे. ऐसा कई बार हो चुका है, जो दर्शाता है कि देश में बहुत सारे लोग काम पाने के लिए तैयार बैठे हैं.
मुंबई एयरपोर्ट की यह स्थिति देश में कम पदों के लिए भारी संख्या में आवेदन प्राप्त होने से बेरोजगारी का आलम पता चलता है. मगर यह पहला ऐसा उदाहरण नहीं है कि कम पदों के लिए भारी संख्या में आवेदन आए हों. इससे पहले तो कई और ‘महान उदाहरण’ भी उपलब्ध हैं-
2015: उत्तर प्रदेश में चपरासी के 368 पदों के लिए 23 लाख आवेदन प्राप्त हुए थे. इनमें हायर एजुकेशन पा चुके उम्मीदवार भी शामिल थे.
2018: भारतीय रेलवे में 90,000 पदों के लिए 2 करोड़ से अधिक आवेदन आए थे. यह नौकरी के अवसरों की ‘अत्यधिक कमी’ को दर्शाता है.
2020: महाराष्ट्र में पुलिस कांस्टेबल के 12,500 पदों के लिए 13 लाख आवेदन प्राप्त हुए थे. इस घटना ने भी रोजगार की गंभीर स्थिति को उजागर किया था.
2024: गुजरात के भरूच में 10 पदों के लिए आयोजित इंटरव्यू में लगभग 1800 उम्मीदवार लाइन में लगे थे. इस भीड़ की वजह से वहां लगी रेलिंग तक टूट गई थी.
बेरोजगारी के आंकड़े: पिछले 10 वर्षों की स्थिति
भारत में बेरोजगारी दर पिछले 10 वर्षों में विभिन्न स्तरों पर रही है, जो देश की आर्थिक और सामाजिक स्थिति को दर्शाती है. इसे दर्शाने के लिए नीचे आंकड़े दिए गए हैं. ये आंकड़े वर्ल्ड बैंक, इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (ILO), नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO), और सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) से लिए गए हैं.
- 2014: 4.9% – यह अवधि आर्थिक सुधारों की थी, लेकिन रोजगार सृजन की गति धीमी रही. (स्रोत – वर्ल्ड बैंक)
- 2015: 5.0% – रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए नई नीतियां लाई गईं, लेकिन परिणाम सीमित रहे. (स्रोत – वर्ल्ड बैंक)
- 2016: 5.1% – नोटबंदी का असर, जिससे कई छोटे और मध्यम उद्योग प्रभावित हुए. (स्रोत – वर्ल्ड बैंक)
- 2017: 5.4% – जीएसटी लागू होने से असंगठित क्षेत्र में रोजगार की स्थिति प्रभावित हुई. (स्रोत – इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (ILO))
- 2018: 6.1% – बढ़ती बेरोजगारी का प्रमुख कारण संगठित और असंगठित क्षेत्र में मंदी थी. (स्रोत – नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO))
- 2019: 5.8% – भारतीय अर्थव्यवस्था में मंदी के संकेत, जिससे नए रोजगार सृजन में कमी. (स्रोत – सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE))
- 2020: 7.1% – COVID-19 महामारी का बड़ा प्रभाव, लाखों लोगों की नौकरियां गईं. (स्रोत – CMIE)
- 2021: 6.3% – महामारी के बाद आर्थिक सुधारों के बावजूद, रोजगार के अवसर सीमित रहे. (स्रोत – CMIE)
- 2022: 7.0% – महामारी के बाद की आर्थिक चुनौतियां और रोजगार संकट जारी. (स्रोत – CMIE)
- 2023: 6.8% – आंशिक सुधार, लेकिन अभी भी बेरोजगारी उच्च स्तर पर. (स्रोत – CMIE)
- 2024: 6.5% – प्रारंभिक आंकड़े संकेत देते हैं कि स्थिति में सुधार हो रहा है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है. (स्रोत – CMIE)
क्या हैं सरकार के दावे
13 जुलाई 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रोजगार के मामले पर सरकार की पीठ थपथपाई थी. उन्होंने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा, “पिछले 3-4 वर्षों में देश में लगभग 8 करोड़ नई नौकरियां पैदा हुई हैं.” 12 जुलाई को केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल और दो दिन पहले पेट्रोलियम मंत्री हरदीप पुरी भी इसी रिपोर्ट के हवाले से बता चुके थे कि रोजगार बढ़ रहे हैं. गौरतलब है कि भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने एक रिपोर्ट में यह दावा किया था कि पिछले 10 वर्षों में (2014 से 2023) भारत में 12 करोड़ 50 लाख नौकरियां का सृजन हुआ है.
SBI की यह रिपोर्ट बैंक के आर्थिक अनुसंधान विभाग ने तैयारी की थी. इस रिपोर्ट में साफ-साफ लिया गया कि अगर कृषि को छोड़ दें तो मैन्युफैक्चरिंग और सर्विसेज में नौकरियों की ‘बहार’ है. कहा गया है 2014 से 2023 तक 8.9 करोड़ नौकरियां बनी हैं, जबकि 2004-2014 तक 6.6 करोड़ नौकरियां ही पैदा हुई थीं.
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