काला नमक की खेती गोरखपुर समेत पूर्वांचल के 11 जिलों में की जा रही है

ब्राउन राइस, रेड राइस सहित चावल की कई किस्मों का नाम आपने सुना होगा. उत्तर प्रदेश के किसान अब एक नया चावल भी पैदा कर रहे हैं. पहले गिनती के किसान इस किस्म के चावल की पैदावार करते थे, लेकिन अब इसकी खासियतों को देखते हुए काफी किसान इसकी खेती शुरू कर रहे हैं.

काला नमक की खेती गोरखपुर समेत पूर्वांचल के 11 जिलों में की जा रही है
रजत भटृ/गोरखपुर: चावल, गेहूं, दाल सहित लगभग सभी अनाजों और सब्जियों की कई प्रजातियां होती हैं. इन सभी के अपने अलग-अलग गुण और स्वाद होते हैं. आज हम बात कर रहे हैं चावल के एक वैरायटी ‘काला नमक धान’ के बारे में. गोरखपुर सहित पूर्वांचल के 11 जिलों में ‘काला नमक धान’ की खेती पर किसानों का विशेष ध्यान रहता है. पूर्वांचल के इस बेल्ट में काला नमक की खेती भी सबसे ज्यादा की जाती है. सबसे पहले सिद्धार्थनगर के कुछ गांव से इस ‘काला नमक’ चावल की सुगंध बाहर निकली और विश्व विख्यात हुई. आज इस चावल को भगवान बुद्ध के प्रसाद के रूप में भी लोग ग्रहण करते हैं. कृषि वैज्ञानिक पदमश्री प्रोफेसर रामचेत चौधरी ने कई सालों तक काला नमक पर रिसर्च भी किया. वह बताते हैं कि, सिद्धार्थनगर सहित कुल 11 जिलों को GI टैग मिला है. इनमें गोरखपुर, महाराजगंज, कुशीनगर, बस्ती, देवरिया, संतकबीर नगर, बाराबंकी, गोंडा, बहराइच और बलरामपुर शामिल हैं. ये जिले काला नमक का उत्पादन और बिक्री दोनों कर सकते हैं. किसानों को मिल रही नई प्रजाति जिन 11 जिलों में काला नमक की खेती की जाती है उनमें से सिद्धार्थनगर इसका मुख्य केंद्र है. गोरखपुर यूनिवर्सिटी के एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट की प्रोफेसर डॉक्टर शिखा बताती हैं कि यूएन में मुख्य सलाहकार पद से रिटायर प्रोफेसर ‘रामचेत चौधरी’ पिछले कई सालों से काला नमक पर शोध कर रहे हैं और KN2, KN3 और किरन नामक प्रजाति के काला नमक चावल के बीज तैयार कर किसानों को दे रहे हैं. जो प्रजाति किसानों को दी गई है वह सुगंध, स्वाद और पोषक तत्वों से भरपूर है. किसान अब इसे बड़े पैमाने पर पैदा कर रहे हैं. प्रोफेसर रामचेत चौधरी की वजह से ही काला नमक के लिए सिद्धार्थनगर सहित कुल 11 जिलों को GI टैग मिला है. कम लागत ज्यादा फायदा काला नमक की खेती कर किसानों को काफी लाभ हो रहा है. प्रोफेसर डॉक्टर शिखा बताती हैं कि इसकी खेती किसानों को उन्नत बनाती है. उनके मुताबिक, पहली बात तो कम जमीन में इसकी पैदावार अधिक है. दूसरी बात यह चावल 100 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिकता है तो किसानों को आर्थिक लाभ भी होता है. बाढ़ वाले इलाकों में हो सकती है इस फसल की खेती प्रोफेसर शिखा ने बताया कि जिस तरह से इस धान से जुड़ी रिसर्च चल रही हैं तो आने वाले समय में इसकी और नई प्रजातियां किसानों को दी जाएंगी. इसकी खेती में ज्यादा लागत नहीं आती है और बाढ़ क्षेत्र वाले इलाकों में भी इसकी खेती आसानी से की जा सकती है. इस चावल में जिंक और माइक्रोन्यूट्रिएंट्स भी भरपूर रहते हैं जो काफी लाभदायक होते हैं. Tags: Agriculture, Local18FIRST PUBLISHED : May 20, 2024, 17:44 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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