राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई पर छिड़ी तीखी बहस पूर्व न्यायाधीश ढींगरा ने जताई चिंता

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी हत्याकांड में आजीवन कारावास की सजा काट रहे 6 दोषियों की समय पूर्व रिहाई के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लेकर बहस छिड़ी है, क्या ऐसे अपराधों और हाई-प्रोफाइल मामलों में नरमी बरती जानी चाहिए.

राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई पर छिड़ी तीखी बहस पूर्व न्यायाधीश ढींगरा ने जताई चिंता
नई दिल्ली:t: 400;"> पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी हत्याकांड में आजीवन कारावास की सजा काट रहे 6 दोषियों की समय पूर्व रिहाई के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लेकर बहस छिड़ी है, क्या ऐसे अपराधों और हाई-प्रोफाइल मामलों में नरमी बरती जानी चाहिए. इस फैसले के संवैधानिक, कानूनी, और भविष्य के फैसलों पर इसके संभावित प्रभावों को लेकर दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एसएन ढींगरा ने अपनी राय रखी. [ ]सवाल:t: 400;"> पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों को न्यायालय ने समय-पूर्व रिहा करने का आदेश सुनाया है, इसे लेकर आपका नजरिया क्या है? [/ ] [ ans]जवाब:t: 400;"> राजीव गांधी के हत्यारों को समय से पहले रिहा करने का आदेश निश्चित तौर पर चिंतनीय है. मेरी राय में हाल के वर्षों में उच्चतर न्यायपालिका, खासकर शीर्ष अदालत, के फैसले का पैमाना अपराध की गंभीरता न होकर न्यायाधीशों की सोच और दृष्टिकोण पर आधारित हो चुका है. सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश इन दिनों अपने फैसले व्यक्तिगत रुख के आधार पर देते हैं, जो भविष्य के लिए नजीर बन जाते हैं. एक जैसे मामले में अलग-अलग पीठ के फैसले भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण की वजह से अलग-अलग होने लगे हैं, इसलिए कानून-आधारित दृष्टांत स्थापित नहीं हो पा रहे हैं. उच्चतर न्यायपालिका के फैसले भविष्य के लिए नजीर बनते हैं, इसलिए यह जरूरी है कि ये फैसले किसी न्यायाधीश के दृष्टिकोण और सोच पर आधारित होने के बजाय, स्थापित कानून पर आधारित हों. [/ ans] ये भी पढ़ें- ref=" ttps:// indi.news18.com/news/nation/vacancy-portal-pmo-level-monitoring-part-of-narendra-modi-government-5-point-plan-to-give-10-lak -jobs-by-end-of-year-2023-nodmk3-4890611. tml" target="_blank">वर्ष 2023 तक 10 लाख लोगों को नौकरी देने का लक्ष्‍य, मोदी सरकार ने 5 प्‍वाइंट में तैयार किया प्‍लान [ ]सवाल:t: 400;"> शीर्ष अदालत ने इस मामले में संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत प्रदत्त शक्तियों का जिक्र किया है और अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए आदेश दिया है. आपकी नजर में इसके क्या निहितार्थ हैं? [/ ] [ ans]जवाब:t: 400;"> मामले में शीर्ष अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत प्रदत्त विशेष विवेकाधीन शक्तियों का इस्तेमाल किया है, लेकिन सवाल उठता है कि विवेकाधीन शक्तियों का इस्तेमाल उन मामलों में क्यों, जहां पहले से ही कानून मौजूद हैं. मेरी राय में ऐसी शक्तियों का इस्तेमाल उन मामलों में किया जाना चाहिए जहां कानून स्पष्ट नहीं है या मौजूदा कानून से न्याय प्रभावित हो रहा हो. पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या के दो दोषियों को मृत्युदंड दिया गया था, जिनकी सजा को शीर्ष अदालत के पांच न्यायाधीशों की पीठ ने आजीवन कारावास में तब्दील कर दिया था, ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर एक ही अदालत की संविधान पीठों के फैसलों के बीच एकरूपता क्यों नहीं है. [/ ans] [ ]सवाल:t: 400;"> पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या जैसे मामले में समय-पूर्व रिहाई का भविष्य के मुकदमों पर क्या प्रभाव होगा? फैसले से आतंकी गतिविधियों या जघन्य अपराधों में शामिल अपराधियों की रिहाई का मार्ग प्रशस्त नहीं होगा? [/ ] [ ans]जवाब:t: 400;"> निश्चित तौर पर इस तरह के फैसले भविष्य में नजीर बनेंगे और कानून और फैसलों में एकरूपता की कमी का फायदा उठाकर अपराधी बाहर आएंगे. इससे अदालत के समक्ष समस्याएं तो बढ़ेंगी ही, अपराधियों का मनोबल भी बढ़ेगा. [/ ans] [ ]सवाल:t: 400;"> विरले में विरलतम (रेयरेस्ट ऑफ रेयर) मामलों में भी निर्णयों में एकरूपता न होने के उदाहरण दिखे हैं, इसे दूर करने के लिए आपकी समझ में क्या किया जाना चाहिए? [/ ] [ ans] जवाब:t: 400;"> मेरा सुविचारित मत है कि ऐसी खामियों को दूर करने के लिए न्यायाधीशों को उनकी कानूनी शिक्षा और पेशागत पृष्ठभूमि के आधार पर भिन्न-भिन्न पीठों में शामिल किया जाना चाहिए, ताकि मुकदमों की प्रकृति के आधार पर एक विशिष्ट पीठ हो, जिससे उनके फैसले एकरूप हो सकें। अभी हो यह रहा है कि पीठों का गठन न्यायाधीशों की विशिष्टता के आधार पर नहीं होता है. [/ ans] ttps://www.youtube.com/embed/9VDC1sd3CRU" widt ="100%" eig t="360"> [ ]सवाल:t: 400;"> आपने विशिष्ट पीठों के गठन पर जोर दिया है, ऐसे में आपकी नजर में क्या प्रधान न्यायाधीश के पीठ के गठन के अधिकार को फिर से निर्धारित करने की आवश्यकता है? [/ ] [ ans]जवाब:t: 400;"> पीठों के गठन का अधिकार भले ही सीजेआई के पास मौजूद है, लेकिन मुकदमों की प्रकृति को नजरंदाज करके मिश्रित पीठों का गठन उचित नहीं है. हो यह रहा है कि भले ही एक प्रकृति के मुकदमे क्यों न हों, लेकिन जरूरी नहीं कि वे मुकदमे विशिष्ट पृष्ठभूमि वाले न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष लगे. इसपर विचार करने की नितांत आवश्यकता है. [/ ans] ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी| Tags: Murder case, Rajiv Gandhi, Supreme Court panelFIRST PUBLISHED : November 13, 2022, 17:01 IST