संभल से पहले बिहार के उस दंगे की कहानी जिसकी 2 बार हुई जांच पर नतीजे रहे सिफर
संभल से पहले बिहार के उस दंगे की कहानी जिसकी 2 बार हुई जांच पर नतीजे रहे सिफर
संभल में नए-नए मंदिर और बावड़ियां निकलने के बाद अब सीएम योगी 47 साल पुराने मामले की दुबारा जांच के आदेश दे दिया है. इसका असर तो बाद में ही पता चल सकेगा, लेकिन बिहार सरकार ने भागलपुर दंगों की जांच कराई थी और उसका कोई ठोस नतीजा नहीं दिखा था.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तकरीबन आधी सदी पहले हुई संभल हिंसा की फिर से जांच के आदेश दे दिए हैं. देर से ही सही लेकिन दोषियों को दंड और पीड़ितों को न्याय मिलने की उम्मीद जाग उठी है. लेकिन घटना के लंबे वक्त बाद फिर से की गई जांच का असर ज्यादातर मामलों में देखने को नहीं मिला है. बिहार का सीएम बनने पर नीतीश कुमार ने भी भागलपुर दंगों की दुबारा 17 साल बाद जांच कराई थी. इस जांच का कोई ठोस नतीजा नहीं दिखा. दुबारा जांच की रिपोर्ट 2015 में आई और 2017 में दंगे में जिस आईपीएस अफसर की वर्दी दागदार हुई थी, उसे रिटायरमेंट के दिन ही तीन सालों के लिए बिहार पुलिस के मुखिया के ओहदे से नवाज दिया गया.
1989 में हुए थे भागलपुर दंगे
खैर, डीजी पुलिस पर नियुक्ति करना राज्य सरकार का अख्तियार है. लेकिन आईपीएस एसके द्विवेदी को डीजीपी बनाने के लिए बिहार सरकार ने कोर्ट से आग्रह कर उनके विरुद्ध कोर्ट की टिप्पणियां भी हटवाई थी. बिहार का दंगा कांग्रेस की सरकार थी. रामशिला पूजन के दौरान तातारपुर में जुलूस पर पथराव के बाद 24 अक्तूबर 1989 में दंगे भड़के थे. उस समय उसे बिहार का सबसे बड़ा दंगा कहा गया. 886 लोग इसमें नामजद हुए थे. जबकि 43 मामलों में 274 को दोषी ठहराया गया.
उस समय की मीडिया खबरों को देखा जाय तो जिले के पुलिस कप्तान के तौर पर तैनात एसके द्विवेदी की भूमिका पर खासे सवाल उठे थे. डीएम की भूमिका साफ सुथरी नहीं मानी गई. दोषियों को सत्ताधारियों से गलबहियां करते देखा गया. तब के विपक्षी नेताओं ने न्यायिक जांच की मांग की. मुख्यमंत्री बनने पर नीतीश कुमार ने जस्टिस एसएन सिंह आयोग का गठन किया. रिपोर्ट भी आई लेकिन किसी अफसर को सजा नहीं मिली.
साल 1978 में भड़की थी संभल हिंसा
अब संभल दंगे की बात की जाय तो यहां 29 मार्च 1978 को हिंसा भड़की थी. रिपोर्टों की माने तो इसमें कुल 148 लोगों के मारे जाने की आधिकारिक पुष्टि की गई थी. उस वक्त देश- प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार थी. इसमें जनसंघ शामिल था. जनसंघ को ही बाद में भारतीय जनता पार्टी नाम दिया गया. रामनरेश यादव मुख्यमंत्री थे. अनुभव ये रहा है कि सरकारी अमला वक्त रहते आज की तरह सख्ती बररतती तो हिंसा की आग पर काबू पाया लिया गया होता. कई ऐसे हालिया वाकए गिनाए जा सकते हैं जब सरकार की सख्ती की वजह से छोटी- मोटी हिंसा को तुरंत काबू कर उसे दंगा बनने से रोक दिया जाता है.
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न्याय में देर होना भी अन्याय जैसा ही है. इस लिहाज से जांच का सीएम योगी के आदेश को गलत नहीं कहा जा सकता. दोषियों की पहचान कर उन्हें सजा मिलनी ही चाहिए. लेकिन आखिर ऐसा क्या है जो जिले के आला ओहदेदार बता नहीं पा रहे हैं कि आखिर गड़बड़ क्या हुई थी. जांच कभी भी किसी मामले की कराई जा सकती है. लेकिन निष्पक्ष जांच होने के साथ ये भी जरूरी है कि नतीजे आएं और उस पर ईमानदारी से अमल हो.
Tags: Chief Minister Nitish Kumar, Chief Minister Yogi Adityanath, Sambhal NewsFIRST PUBLISHED : January 9, 2025, 16:06 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed