एक छोटा सा गांव जो देश को हरा-भरा कर रहा है पूरे भारत में लगाए जा रहे पौधे

Women Inspiring Story: पुडुकोट्टई जिले के कल्लुकुडियिरुप्पु गाँव के लोग खेती के साथ नर्सरी व्यवसाय कर हरियाली फैला रहे हैं. सीमित संसाधनों के बावजूद, महिलाएं पौधों का उत्पादन कर देशभर में निर्यात करती हैं, सरकार से सहयोग की अपेक्षा रखते हुए.

एक छोटा सा गांव जो देश को हरा-भरा कर रहा है पूरे भारत में लगाए जा रहे पौधे
पुडुकोट्टई: जिले के अरिमलम के पास स्थित एक छोटा-सा गाँव कल्लुकुडियिरुप्पु आज पूरे देश को हरियाली की ओर बढ़ा रहा है. इस गाँव में प्रवेश करते ही ऐसा महसूस होता है कि मानो हम किसी छोटे नर्सरी संसार में आ गए हैं, जहां विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधों और फूलों की खुशबू महकती है. यहाँ के लोग मुख्य रूप से खेती के साथ-साथ अलग-अलग प्रकार के पेड़ों के पौधे, सजावटी पौधे और फूलों की नर्सरी तैयार करते हैं, जिन्हें वे पूरे भारत में निर्यात करते हैं. इस लेख में, हम कल्लुकुडियिरुप्पु गाँव और वहाँ के निवासियों के जीवन पर चर्चा करेंगे. गाँव की जानकारी पुडुकोट्टई जिले के अरिमलम के पास, पुडुकोट्टई से लगभग 26 किलोमीटर दूर कल्लुकुडियिरुप्पु गाँव स्थित है, जहां लगभग 350 परिवार निवास करते हैं. हालांकि पुडुकोट्टई जिला सूखे क्षेत्र के रूप में जाना जाता है, लेकिन यहाँ के लोग कुओं और बोरवेल का उपयोग कर खेती में लगे हुए हैं. इसी तरह, इस गाँव में लोग विभिन्न पौधों की नर्सरी तैयार करते हैं और उन्हें पूरे भारत में निर्यात करते हैं. महिलाओं की पहल इस गाँव की निवासी कामाक्षी ने बताया कि पहले वे टोकरियाँ बुनने और दिहाड़ी मजदूरी का काम करती थीं. 2001 में, उन्होंने 20 महिलाओं का एक स्वयं-सहायता समूह बनाया और छोटे पैमाने पर पौधों की नर्सरी का कार्य शुरू किया. इसके बाद पानी की कमी का सामना करना पड़ा. इस पर जिला कलेक्टर ने गाँव का दौरा कर पानी की सुविधा हेतु बोरवेल लगवाया और पानी की टंकी बनवाकर दी. नर्सरी का विस्तार इसके बाद सभी ने बोरवेल की व्यवस्था की और नर्सरी व्यवसाय को विस्तारित कर लिया. आज गाँव के सभी लोग नर्सरी व्यवसाय में शामिल हैं और इस व्यवसाय से ही अपनी आजीविका कमा रहे हैं. कामाक्षी बताती हैं कि अब वे दिहाड़ी काम पर नहीं जातीं. हालांकि इस व्यवसाय में बहुत अधिक लाभ नहीं हो पाता है, क्योंकि यहाँ लाल मिट्टी उपलब्ध नहीं है, जो पौधों के जीवन के लिए आवश्यक है. उन्हें मिट्टी और खाद पड़ोस के गाँवों से खरीदनी पड़ती है. मिट्टी और बिजली की समस्या कामाक्षी बताती हैं कि उनके द्वारा निर्यात किए जाने वाले पौधों की कीमत केवल छह रुपये प्रति पौधा मिलती है. अधिक मात्रा में निर्यात करने पर उन्हें लाभ नहीं हो पाता, क्योंकि मिट्टी और बिजली की कीमतें बढ़ गई हैं. उनका कहना है कि यदि सरकार उन्हें मुफ्त बिजली और कम दरों पर मिट्टी उपलब्ध कराए तो उन्हें सहायता मिलेगी. Tags: Inspiring story, Local18, Special Project, Women EmpowermentFIRST PUBLISHED : November 9, 2024, 18:42 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed