घर की छत पर अंगूरों का बगीचा केक-मिठाई में होता है इस्तेमाल
घर की छत पर अंगूरों का बगीचा केक-मिठाई में होता है इस्तेमाल
भाऊसाहेब कांचन ने अपने घर की छत पर अंगूरों का बगीचा लगाया है. यूरोप टूर से लौटने के बाद ये बगीचा लगाया. मांजरी मेडिका किस्म के अंगूर दवाई बनाने के काम में भी इस्तेमाल होते हैं.
खेती-किसानी में लगातार प्रयोग और तकनीकी के इस्तेमाल के बेहतर परिणाम देखने को मिल रहे हैं. हालांकि, उर्वरक और रसायनों के बढ़ते प्रयोग ने जहां खेत में उत्पादन को बढ़ावा दिया है. वहीं दूसरी तरफ रसायनों के अधिक प्रयोग के चलते फसलों की गुणवत्ता में कमी भी आई है. इसका असर ये है कि हमें पहले की तरह शुद्ध बिना उर्वरकों के उगाई गई पौष्टिक चीजें नहीं मिल पा रही हैं.
हालांकि, आजकल जैविक खेती को काफी बढ़ावा दिया जा रहा है. इसी के चलते किसान नए-नए तरीकों से जैविक खेती कर रहे हैं. ऐसे कई फलों और बीजों का आयात कर उत्पादन कर रहे हैं. जो हमारे यहां आमतौर पर उपलब्ध नहीं होते हैं. महाराष्ट्र पुणे के रहने वाले भाऊसाहेब कांचन ने ऐसा ही एक प्रयोग किया है. उन्होंने अपने घर की छत पर सुंदर अंगूरों का बगीचा तैयार कर लिया है. यह खास किस्म का अंगूर स्वादिष्ट तो है ही इससे ब्रेड, मिठाई आदि भी बनाई जा सकती है.
नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर ग्रेप्स (ICAR) से मांजरी मेडिका किस्म की अंगूर की बेलें खरीदीं.
कैसे शुरू की अंगूर की खेती
न्यूज़ 18 बात करते हुए भाऊसाहेब कांचन बताते हैं, “वह पुणे के पास ही उरलीकांचन गांव के रहने वाले हैं. खेती करते हुए लगभग 40 साल हो गए हैं. पढ़ाई के बाद से खेती ही कर रहे हैं. पहले सब्जी, गेहूं, दाल और गन्ने की खेती करते थे. लेकिन 2013 में वो कृषि विभाग द्वारा एक योजना के तहत खेती के टूर पर यूरोप गए हुए थे. वहां उन्होंने लोगों के घरों और खेतों में अंगूर की फसल देखी. देखा कि लोग अपने घरों के गार्डन में और छत पर अंगूर की बेल लगाकर अंगूर उगा रहे हैं.”
यूरोप से वापस लौटने पर उन्होंने सोच रखा था कि अपने घर में भी अंगूर की बेल लगाएंगे. भाऊसाहेब ने कहा, “2015 के आसपास मेरे मकान बनने का काम शुरू हुआ था. तभी मैंने सोचा कि क्यों न अंगूर की बेल लगाई जाए. उसके लिए नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर ग्रेप्स (ICAR) से मांजरी मेडिका किस्म की अंगूर की बेलें खरीदीं. इसके बाद घर के सामने 3 फुट गड्डा करके उसमें गोबर खाद के साथ लगा दीं. उसके बाद जब धीरे-धीरे बेल बढ़ने लगीं तो तार के सहारे बेल को 30 फुट ऊंची छत पर चढ़ा दिया.”
पहली बार इतने अंगूर निकले
भाऊसाहेब ने कहा, “फिर छत पर 1000 हजार स्क्वायर फिट का मंडप बनवाया जिस पर बेल चढ़ाई. इसे बनवाने में लगभग 6 हजार रुपये का खर्च आया था. जिसके लगभग 1 साल बाद अंगूरों के 108 गुच्छे निकले.” वो कहते हैं कि मैंने किसी प्रकार से यह काम व्यवसाय के लिए नहीं किया था. उनको खाया और दोस्तों रिश्तेदारों में बांट दिया. लेकिन फिर सोचा कि इससे और ज्यादा अंगूरों का उत्पादन किया जा सकता है. उन्होंने इसमें सिर्फ गोबर की खाद का इस्तेमाल किया.
इस अंगूर की नस्ल को साल के किसी भी मौसम में लगाया जा सकता है.
अंगूरों की उपज अच्छी होती है
भाऊसाहेब बताते हैं कि उनके घर के आंगन और छत पर लगे अंगूरों की उपज काफी अच्छी है. सबसे पहली बार में जब 108 अंगूरों के गुच्छे मिले थे तब ही उन्होंने अंगूरों की पैदावार में इजाफा करने की योजना बना ली थी. उसके बाद सिर्फ गोबर की खाद के इस्तेमाल से अगले साल 300 अंगूरों के गुच्छे निकले. फिर उसके बाद तीसरे साल में 525 अंगूर के गुच्छे आए. इसे लगाने के लिए किसी मौसम का इंतजार नहीं करना पड़ता है. साल के किसी भी मौसम में इसको लगाया जा सकता है.
क्या-क्या बनाते हैं अंगूर से
ये अंगूर मांजरी मेडिका किस्म के होते हैं. इनका इस्तेमाल दवाइयां बनाने में तो किया ही जाता है. भाऊसाहेब बताते हैं कि ये बहुत मीठा होता है. इसका जूस एकदम लाल रंग का है. इसके छिलकों को सुखाकर उन्हें पीसकर एक पाउडर बनाया. पाउडर को बिस्किट बनाने और केक बनाने में इस्तेमाल किया. अंगूरों की मिठास के कारण पाउडर भी इतना मीठा होता है कि इसे दूध में डालकर भी खाया जा सकता है. मिठाई में भी डालकर बना सकते हैं. उसके साथ ही ये लाल रंग का होता है जिससे कलर डालने की जरूरत खत्म हो जाती है. लगभग 50 लीटर जूस बनाकर दोस्तों में बांट दिया.
अब लोगों को अंगूर की खेति के विषय में सलाह देते हैं.
लोगों को सिखाते हैं तकनीक
भाऊसाहेब कांचन की उम्र 59 साल है. जब उनकी ये अंगूर की खेती सफल हुई तो लोगों ने उनसे संपर्क करके इसके बारे में जानने और सीखने की इच्छा जताई. वो कहते हैं कि कई स्थानीय लोगों को अब तक में इसके बारे में सिखा चुका हूं. देश के अलग-अलग राज्यों से लोग मुझे फोन लगाते हैं. मैंने कुरियर के माध्यम से कई लोगों को इसकी बेल भेजी है.
ये फसलें भी लगाते हैं
वो कहते हैं, “मुझे खेती करते हुए लगभग 40 साल हो चुके हैं. पहले गेंहू, दाल, सब्जी और गन्ने की खेती करता था. गांव में मेरे पास साढ़े तीन एकड़ जमीन है. इसमें गन्ने की फसल लगाता हूं. सब्जी की फसल में मेहनत ज्यादा होने के कारण सब्जी उगानी बंद कर दी है.” वो गन्ने और बाकी अन्य फसलों की खेती करते हैं. इसके साथ ही घर में अंगूर की खेती करते हैं. इस सबसे लगभग 5 लाख रुपये सालाना कमा लेते हैं.
इस तरह गए थे यूरोप
वो बताते हैं, “सरकार की एक योजना के तहत कृषि विभाग हर 5 साल में किसानों को कृषि टूर कराता है. जिसका आयोजन कृषि विभाग करता है. इस टूर में देश के अलग-अलग राज्यों से 50 किसानों का चयन कर टूर पर भेजा जाता है. जिसमें उनका आधा खर्चा सरकार उठाती है और आधा किसान का होता है.” इसी योजना के तहत भाऊसाहेब कांचन 2013 में यूरोप गए थे. इसमें लोगों को अलग-अलग देशों में यात्रा के लिए भेजा जाता है. जहां पर आधुनिक खेती के नए तरीके सीख सकें.
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Tags: Farming in India, up24x7news.com Hindi Originals, PuneFIRST PUBLISHED : July 26, 2022, 16:28 IST