इस रोगन कलाकार ने 400 साल पुरानी कला को रखा है जीवित विदेशी भी हैं इनके ‘फैन’
इस रोगन कलाकार ने 400 साल पुरानी कला को रखा है जीवित विदेशी भी हैं इनके ‘फैन’
अब्दुल को है 40 साल का अनुभव. 13 साल की उम्र से की थी शुरुआत. 2006 में नरेंद्र मोदी को भेंट की अपनी बनाई पेंटिंग. 2019 में नवाज़ा गया पद्म श्री से. अब तक परिवार को मिले हैं कुल 30 अवार्ड्स.
क्या आपने कभी रोगन आर्ट का नाम सुना है या इस कला को कभी देखा है. अगर नहीं, तो निराश मत होइए, क्योंकि आपके लिए हम लाए हैं एक ऐसे व्यक्ति की कहानी जिनके परिवार ने 400 वर्षों से इस कला को जीवित रखा है.
न्यूज़ 18 ने बात की अब्दुल गफूर खत्री से और जाना उनके इस सदियों पुरानी कला को जीवित रखने के सफ़र के बारे में विस्तार से.
न्यूज 18 से बातचीत के दौरान अब्दुल गफूर बताते हैं, वह अपने परिवार की 7वीं पीढ़ी हैं जो यह काम कर रहे हैं. यह कला केवल गुजरात के कच्छ के निरोना गांव में ही पायी जाती है. पहले निरोना में चार परिवार इस कला को जीवित रखे हुए थे. लेकिन, धीरे-धीरे वक़्त के साथ उन तीन परिवारों ने भी इस लुप्त होती कला को त्याग दिया. वह केवल 12-13 वर्ष के थे जब उन्होंने इस कला को सीखना शुरू किया था.
जानिए क्या है ‘रोगन आर्ट’?
रोगन एक फ़ारसी शब्द है जिसका अर्थ है आयल बेस्ड. जैसा कि आप इस कला के नाम से ही समझ गए होंगे. रोगन एक आयल बेस्ड आर्टफॉर्म है. रोगन को बनाने के लिए पहले कैस्टर आयल को दो दिन तक लकड़ी के चूल्हे पर जलाया जाता है और फिर तीसरे दिन रबर जैसी एक चीज प्राप्त होती है. इस रबर जैसी दिखने वाली चीज को फिर रंगों के साथ मिलाया जाता है. आपको बता दें कि रोगन आर्ट में प्रयोग किए जाने वाले रंग केवल 5-6 प्रकार के ही आते हैं. हालांकि, इन रंगों को मिलाकर बाकी अन्य रंग बनाए जा सकते हैं.
इस कला में एक विशेष 6 इंच लंबी लोहे की रॉड का इस्तेमाल किया जाता है. इस रॉड की मदद से रंग को बाएं हाथ पर रगड़-रगड़ कर धागे जैसी तार निकाली जाती है और फिर इस धागे से कपड़ों पर डिज़ाइन बनाए जाते हैं.
क्या है रोगन आर्ट की विशेषता
वह कहते हैं कि रोगन आर्ट की सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि कपड़े पर पेंटिंग बनाने से पहले किसी भी प्रकार का रफ़ स्केच नहीं बनाया जाता है और ना ही सामने कोई छवि रख कर डिजाइन बनाया जाता है. रोगन आर्ट के सारे डिजाइन सीधे कलाकार के दिमाग से कपड़े पर उतारे जाते हैं, जो इस प्राचीन कला को और भी ख़ास बनाते हैं.
हर एक पेंटिंग को बनाने में लगता है बहुत अधिक समय
वह बताते हैं कि रोगन आर्ट में सबसे ज़्यादा लागत समय की है. हर एक पेंटिंग को बनाने में बहुत अधिक समय लगता है. किसी-किसी फैब्रिक पर पेंटिंग बनाने में एक से डेढ़ साल का समय लगता है.
1500 से शुरू होती है रोगन आर्ट पेंटिंग
यह पेंटिंग 1500 से शुरू होकर 15 लाख तक की बिकती हैं. अब्दुल बताते हैं कि हर पेंटिंग की कीमत उसको बनाने के समय से निर्धारित होती है. जिस पेंटिंग को बनाने में जितना समय लगता है उसकी कीमत उतनी ही ज़्यादा होती है.
अब्दुल गफूर बताते हैं कि उनकी बचपन से ही कला में काफी रुचि थी पर अपने पिताजी और दादाजी को इस कला के चलते संघर्ष करते हुए देख उन्होंने इससे दूर रहने का निर्णय लिया. अपने परिवार की असहमति के बावजूद वह मुंबई चले गए और वहां उन्होंने अपने नए जीवन की शुरुआत की. पर नियति को शायद कुछ और ही मंजूर था. मुंबई जाकर जैसे ही जीवन में थोड़ा सा ठहराव आया था, उनके घरवालों ने उन्हें वापस बुला लिया. दादा की तबीयत खराब होने के कारण वह मना नहीं कर पाए और लौट आये अपने गांव निरोना. अब्दुल गांव वापस भले ही लौट आए पर उनके सामने थी एक नए सिरे से जीवन की शुरुआत करने की बहुत बड़ी चुनौती.
उन्होंने अपने पिता और दादा को यह वचन दिया कि वह अपने जीवित रहते अपनी इस कला को कभी लुप्त नहीं होने देंगे. वह जुट गए लोगों के बीच इस कला को लोकप्रियता दिलाने में.
2006 में अपनी मशहूर ‘ट्री ऑफ लाइफ’ भेंट की नरेंद्र मोदी को
वह कहते हैं कि इस लुप्त होती कला को बचाने के उद्देश्य से उन्होंने अपनी सबसे मशहूर पेंटिंग ‘ट्री ऑफ लाइफ’ उस वक्त के गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को भेंट की. उनके मुताबिक नरेंद्र मोदी को उनकी पेंटिंग इतनी अच्छी और अनोखी लगी कि विदेशों से आने वाले प्रतिनिधियों को गुजरात सरकार द्वारा यह भेंट दी जाने लगी.
इतना ही नहीं 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद जब नरेंद्र मोदी अपने पहले विदेशी दौरे पर जा रहे थे उस वक्त भारत सरकार द्वारा आर्डर करके अब्दुल से दो बड़ी ‘ट्री ऑफ़ लाइफ’ पेंटिंग बनवाई गईं. जिसे नरेंद्र मोदी ने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को गिफ्ट किया था. इसके बाद कई सारे विदेशी नेताओं को यह रोगन आर्ट पेंटिंग भेंट की जा चुकी है.
सरकार द्वारा कला को मिला एक नया जीवनदान
विदेशी नेताओं को भेंट किए जाने के बाद देश में रोगन पेंटिंग की लोकप्रियता बढ़ी. वह बताते हैं कि सरकारी सहायता के बाद उनकी लोकप्रियता काफी बढ़ी है और अब उन्हें कई सारे आर्डर भी मिलते हैं. इसके साथ ही निरोना में पहले जिस परिवार ने इस कला को लुप्त होते देख इसे त्याग दिया था, अब इस कला की लोकप्रियता को देखते हुए उसी परिवार ने फिर से रोगन आर्ट की शुरुआत की है.
अब्दुल गफूर खत्री के परिवार को मिले हैं कुल तीस अवार्ड
अब्दुल गफूर बताते हैं कि उनके परिवार को इस कला को जीवित रखने के लिए अब तक कुल तीस अवार्ड मिल चुके हैं. इसमें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सभी अवार्ड्स सम्मिलित हैं. 2019 में इस कला में उत्तमता के लिए उन्हें पद्म श्री से नवाज़ा गया.
पहले लड़कियां नहीं सीखती थीं यह कला
वह कहते हैं कि इस कला में काफी सीमित संभावनाएं होने के कारण महिलाएं अक्सर इस कला से दूर ही रहती थीं. इस कारण कई लोगों में यह गलत धारणा पैदा हो गई कि वह लोग जानबूझ कर महिलाओं को यह कला नहीं सिखाते हैं. वह कहते हैं कि उन्होंने यह निश्चय कर लिया था कि उन्हें जब भी अवसर मिलेगा वह महिलाओं को अवश्य ही प्रशिक्षित करेंगे. 2010 से अब तक वह 300 से अधिक लड़कियों को प्रशिक्षित कर चुके हैं और आज उनके कारखाने में काम करने वाली ज़्यादातर महिलाएं हैं.
भविष्य की नीति
वह बताते हैं कि उनका बेटा भी स्टेट अवार्ड विजेता है और वह भी इस कला में उतना ही निपुण है. अब्दुल बताते हैं कि यह कला उनको विरासत में मिली थी और अब वह चाहते हैं कि उनकी अगली पीढ़ी इसका कार्यभार संभाले.
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