भारत की खोज: गीता प्रेस जर्मन मशीनें और फेविकोल

पोद्दार की राजनीतिक यात्रा क्रांतिकारी अनुशीलन दल से शुरू होकर कांग्रेस से होती हुई हिंदू महासभा और विश्व हिन्दू परिषद पर समाप्त हुई. गांधी की मौत के बाद हुए थे गिरफ्तार.

भारत की खोज: गीता प्रेस जर्मन मशीनें और फेविकोल
गीता प्रेस का सारा काम आधुनिकतम प्रिंटिंग मशीनों पर होता है, जिनमें से ज़्यादातर इंपोर्टेड हैं. रोज 50,000 किताबें छापना कोई हंसी-मजाक नहीं. पर गोरखपुर में प्रेस के दो लाख वर्ग फीट के कैंपस में कुछ मशीनों पर एक काम अभी भी हाथ से ही होता है — किताबों की बाइन्डिंग. ऑटोमैटिक जर्मन मशीनें बाइन्डिंग के लिए जानवर की चर्बी का इस्तेमाल करती हैं. गीता प्रेस का मानना है कि पवित्र धार्मिक पुस्तकें चर्बी से अशुद्ध हो जाएंगी. स्वराज्य मैगजीन के मुताबिक एक नई मशीन में थोड़ा फेर-बदल कर बाइन्डिंग का काम फेविकोल जैसे एडहेसिव से करने के प्रयोग वहां जारी हैं. छपाई के बाद गीता या मानस जैसे ग्रंथों को जमीन पर नहीं, प्लेटफॉर्म पर रखा जाता है ताकि उनमें गलती से कहीं पांव न लग जाए! साल 1923 में जब गीता प्रेस की स्थापना हुई, रेलवे स्टेशनों पर हिन्दू चाय, मुस्लिम चाय अलग-अलग केतलियों में बिकती थी. पानी के मटके भी अलग-अलग होते थे. छुआ-छूत मानने वाले सफर के दौरान दिन-दिन भर पानी की एक बूंद भी नहीं पीते थे. शहरों में नल लगे तो कई लोग उसका ‘अशुद्ध’ पानी न पीकर कुओं से पानी मंगवाते थे. यही हालत पश्चिम में थी. ब्रिटेन में वयस्क महिलाओं को मतदान का अधिकार 1928 में मिला — गीता प्रेस की स्थापना के पांच साल बाद! 50 के दशक में मैं बीमार पड़ा. डाक्टर ने अंडा खिलाने की सलाह दी तो चाचा बगल के गांव से रात को अपने गमछे में छिपाकर अंडा लाते थे. उसका छिलका सबकी आंख बचा कर बाड़ी में गाड़ दिया जाता था ताकि पास-पड़ोस में किसी को भनक नहीं लगे. मुर्गा और अंडा मुसलमानी खाना समझा जाता था. चोटी नहीं रखने पर गोतिया खुलेआम झिड़कते थे. कुछ समय पहले की बात है. भोपाल के एक प्रसिद्ध संत के आश्रम में प्राकृतिक चिकित्सालय में गया. वहां इलाज की शर्त थी कि कुटैव छोड़ने होंगे. दीवार पर मोठे-मोठे हर्फों में उन कुटैवों की लिस्ट में एक था – उपन्यास पढ़ना! गांंव में एक सती मंदिर है, जहां कभी हमारे कुल की एक महिला सती हुई थी. खानदान में अभी भी सारी नववधुएं वहां टिकुली चढ़ाने जाती हैं, भले वे सॉफ्टवेयर इंजीनियर हों या किसी अन्य जाति से आई हों! परंपरा के बोझ तले दबे उसी गांव में 80 के दशक में एक ऐसी क्रांति हुई जिसके बारे में पहले सोच भी नहीं सकते थे. एक कुलीन राजपूत परिवार में विधवा विवाह हुआ और सारे गांव ने एक कंठ से उसकी तारीफ की. तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है, पार्टनर? कर्मकांड की कट्टरता, जाति प्रथा, स्त्री स्वातंत्र्य, हिन्दू-मुस्लिम सवाल पर कल्याण के संपादक हनुमान प्रसाद पोद्दार का मूल्यांकन समय की इसी तराजू पर किया जाना चाहिए. हाल के कुछ वर्षों में उनकी विचारधारा को लेकर बहस शुरू हुई है. अक्षय मुकुल ने 2015 में छपी अपनी किताब ’गीता प्रेस एंड द मेकिंग ऑफ हिंदू इंडिया’ में लिखा है कि 40 के दशक में कल्याण में सांप्रदायिक सामग्री छप रही थी, 1946 में उसके दो अंक बैन भी हो गए थे. उनका कहना है कि विभाजन के समय कल्याण आरएसएस, हिंदू महासभा और रामराज्य परिषद जैसी संस्थाओं का औजार बन गया था. पोद्दार की राजनीतिक यात्रा क्रांतिकारी अनुशीलन दल से शुरू होकर कांग्रेस से होती हुई हिंदू महासभा और विश्व हिन्दू परिषद पर समाप्त हुई. वे गांधीवादी उद्योगपति जमनालाल बजाज के जरिए महात्मा गांधी के करीब आ गए थे. बाद में जाति प्रथा पर मतभेद को लेकर दोनों के रिश्तों में खटास आई. गांधी छुआ-छूत के खिलाफ दृढ़ता से खड़े थे. पोद्दार की नजर में सनातन धर्म का मूल आधार था – वर्ण व्यवस्था, पतिव्रत धर्म, गौरक्षा और कर्मकांड. फिर भी, बापू ने 1935 में पोद्दार को पत्र लिखा, “कल्याण और गीता प्रेस के जरिए तुम ईश्वर की महान सेवा कर रहे हो.” मुकुल लिखते हैं कि 1940 में गांधी जी ने गौसेवा संघ की स्थापना की, उसमें उन्होने पोद्दार को भी उसमें जोड़ा. पर विभाजन के समय, खासकर नोआखाली के दंगों के बाद पोद्दार घोर गांधी विरोधी हो गए. वे हिंदू महासभा से इस कदर जुड़ गए थे कि गांधी की हत्या के बाद गिरफ्तार होने वाले लोगों में वे भी शामिल थे. बकौल बिजनेस स्टैन्डर्ड, पुराने मित्र घनश्याम दास बिड़ला ने पोद्दार को “सनातन नहीं, शैतान धर्म का प्रचारक” कहा. इसके बावजूद पोद्दार का रसूख ऐसा था कि 1951 में जब कांग्रेस के नेताओं की अगुयाई में एक सम्मेलन आयोजित हुआ तो पोद्दार को भी उसमें शामिल किया गया. गुरु गोलवलकर के करीबी पोद्दार हिन्दू महासभा और विश्व हिंदू परिषद के संस्थापकों में से थे. 1967 में उन्होंने राम राज्य परिषद के पक्ष में कलकत्ते में चुनाव-प्रचार किया. आरएसएस से भी गीता प्रेस का नजदीकी रिश्ता रहा है. गुरु गोलवलकर ने तो एक प्रचारक, भीमसेन, को कल्याण में काम करने के लिए ही भेज दिया था. वे मानते थे कि हिन्दू धर्म के प्रचार-प्रसार का काम पोद्दार से बेहतर कोई नहीं कर सकता. गुरुजी कल्याण के लेखक थे और नियमित पाठक भी. एक दफा इलाज के सिलसिले में लंबे समय के लिए केरल गए तो उन्होंने पत्रिका पार्सल से बुलवाई. यह वही पोद्दार थे जो कल्याण में मुसलमान और ईसाई धर्म गुरुओं के बारे में भी प्रेरणादायक लेख छापते थे! वही पोद्दार जिनका घर और संस्थान आजादी के पहले क्रांतिकारियों के छुपने के काम आता था. एक अंग्रेज अफसर को मारकर एक क्रांतिकारी मदद के लिए उद्योगपति रामकृष्ण डालमिया के पास गया. उन्होंने उसे पोद्दार के पास ही गोरखपुर में शरण दिलवाई. ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी | Tags: up24x7news.com Hindi OriginalsFIRST PUBLISHED : September 05, 2022, 10:51 IST