मिलिए इन महिला से जो प्लास्टिक को फैशनेबल बैग्स में बदल कर कमाती हैं लाखों

छोटे से ही था पर्यावरण संरक्षण का शौक. कॉर्पोरेट की नौकरी छोड़ किया माता- पिता के एनजीओ में काम. अब प्लास्टिक से बैग्स बनाकर कमाती हैं लाखों, साथ ही देती हैं कई महिलाओं को रोज़गार.

मिलिए इन महिला से जो प्लास्टिक को फैशनेबल बैग्स में बदल कर कमाती हैं लाखों
क्या आपने कभी अपने घर में पड़ी प्लास्टिक की थैली की बेल्ट या बैग के बारे में सुना है? अगर नहीं, तो अब पढ़िए उनके बारे में जिन्होंने ना सिर्फ इस बारे में सोचा बल्कि करके भी दिखाया है. दिल्ली की रहने वाली कनिका आहूजा की कंपनी लिफ़ाफ़ा ऐसे प्लास्टिक से बनाती है रोजाना प्रयोग किए जाने वाले बैग ,बेल्ट और अन्य कई सारी चीजें. लिफ़ाफ़ा की फाउंडर कनिका आहूजा ने न्यूज 18 से बातचीत के दौरान बताया कि वह बचपन में अपने स्कूल के एनवार्नमेंटल क्लब का हिस्सा रही हैं और इसके द्वारा आयोजित सफ़ाई अभियानों में उन्होंने हमेशा बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था. ऐसे ही एक अभियान के तहत स्कूल की ओर से उन्हें यमुना की सफ़ाई और उसे प्लास्टिक मुक्त बनाने के लिए ले जाया गया था. वह कहती हैं कि यमुना की वह दयनीय अवस्था की छवि आज तक अपने दिल और दिमाग से निकाल नहीं पायी हैं. 32 वर्षीय कनिका आहूजा पेशे से तो एक इंजीनियर है पर बाल्यावस्था से ही पर्यावरण संरक्षण में उनकी बहुत रुचि रही है. मणिपाल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग करने के बाद उन्होंने श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से एमबीए किया. एमबीए पूरा करने के बाद कनिका एक कॉर्पोरेट कंपनी में काम करने लगी थीं. पर कुछ समय बाद ही कॉर्पोरेट कल्चर उन्हें भाया नहीं और उन्हें यह एहसास हुआ कि वो पर्यावरण संरक्षण और समाज कल्याण में अपना योगदान देना चाहती हैं. इस अनुभूति के बाद वह अपने माता-पिता द्वारा संचालित एक एनजीओ में काम करने लगीं. 1998 में स्थापित दिल्ली के इस एनजीओ का मुख्य लक्ष्य ऊर्जा की बचत और पर्यावरण संरक्षण था. वह बताती हैं कि वह एक ऐसे परिवार से आती हैं जहां हमेशा से उन्हें किफ़ायत सिखाई गई है. उनके परिवार वाले हमेशा से इस बात के प्रति सचेत रहते थे कि वह अपनी जीवन शैली में कितना और किस चीज़ का इस्तेमाल कर रहे हैं. उनके एनजीओ में बहुत सारे कारीगर काम करते थे जिन्हें उनके माता-पिता ने प्रशिक्षित किया था. इन कारीगरों द्वारा बनाए उत्पादों को फिर ये एनजीओ अपनी वेबसाइट द्वारा ग्राहकों तक पहुंचाती और जो भी धन राशि जमा होती वो इन कारीगरों को दे दी जाती थी. एनजीओ से पूरी तरह जुड़ने और कार्यभार संभालने के बाद कनिका इन कारीगरों द्वारा बनाए गए प्रोडक्टस के डिज़ाइन को और बेहतरीन बनाने में लग गईं. पहले भी की थी सोशल आंत्रप्रेन्योरशिप की कोशिश कनिका बताती हैं कि पहले भी उन्होंने सोशल आंत्रप्रेन्योर बनने और समाज कल्याण के लिए एक परिवर्तनात्मक पहल की शुरुआत की थी पर वह पहल आर्थिक रूप से संभव नहीं हो सकी. इसलिए उन्होंने उसे बंद कर आर्थिक स्थिरता वाला दूसरा स्टार्टअप खोलने के बारे में सोचा. कैसे हुई लिफ़ाफ़ा की स्थापना? फिर से बतौर सोशल आंत्रप्रेन्योर उन्होंने 2017 में लिफ़ाफ़ा की स्थापना की. वह बताती हैं कि कारीगरों के साथ काम करने के दौरान ही उन्हें ये एहसास हुआ कि इस प्लास्टिक से और भी बेहतरीन और परिवर्तनात्मक कुछ बनाया जा सकता है. इसके साथ ही शुरुआत हुई उनके इस नए सफ़र की. आज लिफ़ाफ़ा सालाना करीबन 12 टन प्लास्टिक रीसाइकल करता है. इस प्लास्टिक से ना सिर्फ अलग-अलग प्रकार के बैग बनाए जाते हैं बल्कि कई तरह के फैशन के सामान जैसे बेल्ट, वॉलेट, लैपटॉप बैग आदि भी बनाए जाते हैं. जानिए कैसे सामाजिक कार्यों से अलग है सोशल आंत्रप्रेन्योरशिप? वह बताती हैं कि सोशल आंत्रप्रेन्योरशिप तीन मूल्य सिद्धांतों पर आधारित होती है- प्रॉफ़िट,पीपल एंड प्लेनेट. इन तीन सिद्धांतों से ही प्रेरित होकर उन्होंने सोशल आंत्रप्रेन्योर बनने का निर्णय लिया. सामाजिक कार्य केवल लोगों के हितों पर केंद्रित होते हैं वहीं सोशल आंत्रप्रेन्योरशिप में लोगों के हितों के साथ- साथ वित्तीय स्थिरता और धरती और पर्यावरण के हितों के मद्देनज़र कार्य होते हैं. जहां सामाजिक कार्यों को बिना फंड के ज़्यादा दिनों तक कर पाना संभव नहीं होता है वहीं सोशल आंत्रप्रेन्योरशिप समाज कल्याण के साथ-साथ आर्थिक स्थिरता का भी ज़रिया बनती है. अशोका से मिला 8 लाख का फंड कनिका बताती हैं कि लिफ़ाफ़ा ने अशोका से आठ लाख रुपये की फंडिंग हासिल की. अशोका एक ग्लोबल वेंचर है जो दुनिया भर के सामाजिक उद्यमों को पहचान कर उनकी मदद करता है. उनके मुताबिक अशोका से मिली फंडिंग शुरुआती दिनों में काफ़ी मददगार रही. विदेशों में हैं ज़्यादातर ग्राहक लिफ़ाफ़ा का अधिकतर व्यवसाय निर्यात पर निर्भर है. उनके ज़्यादातर ग्राहक अमेरिका और यूरोप में हैं. कनिका का मानना है कि भारत के मुकाबले विदेशों में ज़्यादा ग्राहक हैं क्योंकि उनकी प्रोडक्शन कॉस्ट स्थानीय मार्केट के हिसाब से थोड़ी ज्यादा है. बिजनेस टू बिजनेस का है मॉडल लिफ़ाफ़ा अभी तक बिजनेस टू बिजनेस मॉडल पर आधारित है. लिफ़ाफ़ा द्वारा बनाई गई कोई भी चीज़ सीधे अपने ग्राहकों तक नहीं पहुंचती है बल्कि किसी रिटेलर के माध्यम से मार्केट में उपलब्ध कराई जाती है. बड़ी हुई टीम अब उनके पास 8 लोगों की टीम है जो मैन्युफैक्चरिंग का कार्यभार संभालती है. इसके अलावा उनके पास दो डिजाइनर हैं जो सारे बैग, बेल्ट आदि डिजाइन करते है. कनिका अपने माता-पिता के एनजीओ में प्रशिक्षित कारीगरों को रोज़गार का अवसर भी प्रदान करती हैं. वह एनजीओ के 200 कारीगरों के साथ काम करती हैं. 2 दिन में बनता है एक बैग वह बताती हैं कि एक बैग बनाने में औसतन आधा किलो प्लास्टिक लगता है. यह मात्रा बैग के साइज़ पर निर्भर करती है और एक बैग बनने में कम से कम डेढ़ से दो दिन का समय लगता है. लैक्मे फैशन वीक लिफ़ाफ़ा द्वारा बनाए गए बैग्स और फैशन के सामान अब तक दो बार लैक्मे फैशन वीक में प्रदर्शित हो चुके हैं. इस शो में देश के जाने- माने बड़े फैशन ब्रांडस के साथ भाग लेना किसी के लिए भी गर्व की बात होती है. भविष्य की नीति वह बताती हैं कि आने वाले चार-पांच महीनों में वह b2c बिजनेस की शुरुआत करेंगी, जिसके द्वारा वो अपने सामान सीधे लोगों को बेच सकेंगी. इसके साथ ही आने वाले दिनों में वो भारतीय मार्केट में भी विस्तार करना चाहती हैं. लेकिन वह अपने बिजनेस को अभी फिलहाल ऑनलाइन ही रखना चाहती हैं. फिज़िकल स्टोर खोलने का अभी उनका कोई विचार नहीं है. नई पीढ़ी है पर्यावरण के प्रति सचेत लिफ़ाफ़ा फाउंडर का मानना है कि नई पीढ़ी पर्यावरण के प्रति ज़्यादा सचेत और जागरूक है. वे लोग ईको-फ़्रेंडली चीज़ों के इस्तेमाल के लिए तत्पर रहते हैं. ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी | Tags: up24x7news.com Hindi OriginalsFIRST PUBLISHED : August 24, 2022, 14:52 IST