नीता बेन पटेल: गुजरात की वाटर चैंपियन उनके प्रयास से 230 गांवों में पानी की किल्लत हुई दूर

नीता बेन पटेल पिछले 20 साल से दक्षिण गुजरात में काम कर रही हैं. उनके प्रयास से गांवों में तालाबों, कुओं, बांधों की हालत सुधरी है. ग्राउंड वाटर रिचार्ज हुआ है. इससे गांव में पलायन रुक गया है. लोग गांव में ही खेती करके जीवन चला रहे हैं. कुछ लोग तो मछली पालन तक कर रहे हैं.

नीता बेन पटेल: गुजरात की वाटर चैंपियन उनके प्रयास से 230 गांवों में पानी की किल्लत हुई दूर
गुजरात के भरूच जिले का कंबोडिया गांव. वर्ष 2002. 23 साल की नीता बेन पटेल रूरल स्टडीज में पोस्ट ग्रेजुएशन करके गांव में पहुंचती हैं. वह आगा खान ग्रामीण सहायता कार्यक्रम (AKRSP) में डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजर के रूप में काम शुरू करती हैं. करीब 20000 लोगों की आबादी वाले इस गांव में 408 घर थे. गांव में नीता ने देखा कि लोग पानी की समस्या से जूझ रहे हैं. उन्होंने गांव के बच्चों से बात की और उनके सामने अपने बचपन में आई समस्या ताजा हो गई. उन्होंने देखा कि कई साल बीत गए हैं, लेकिन गांव की स्थिति बदतर ही बनी हुई है. नीता ने वाटर सप्लाई चैनल स्थापित करने का एक फुलप्रूफ प्लान बनाया और पंचायत के सामने अप्रूवल के लिए लेकर पहुंच गईं. लेकिन, पंचायत को उनका प्लान ठीक नहीं लगा और उन्हें मना कर दिया गया. इस इनकार ने नीता को और मजबूत कर दिया कि वह एक नए सिरे से गांव के लिए काम करेंगी. न्यूज18 से बात करते हुए वह कहती हैं, “आदिवासी पहाड़ी क्षेत्रों में जून से अक्टूबर के बीच काफी मात्रा में बारिश होती है. इसके बावजूद ग्रामीणों को पानी की समस्या का सामना करना पड़ रहा था. इसके पीछे की वजह ये थी कि वे पानी का संचय नहीं कर पाते थे और ये पानी नदियों में मिल जाता था. ऐसे में मैंने करीब 2000 लोगों को इकट्ठा किया और इलाके में 90,000 पौधे लगाए. आज ये पौधे विशाल पेड़ बन गए हैं. इसके साथ चेक डैम, कुओं की रिपेयरिंग, तालाबों पर काम किया, जिससे ग्राउंड वाटर रिचार्ज होने लगा. आज नीता को लोग ‘वाटर चैंपियन’ के नाम से जानते हैं. उनके अथक प्रयासों से पहाड़ी क्षेत्रों में पानी बचाने के लिए जागरूकता पैदा हुई है. डांग, नर्मदा और भरूच जैसे क्षेत्रों में बेहतर जल प्रबंधन पर काम हो रहा है. वह कहती हैं, जब पंचायत ने उनके प्लान को मानने से इनकार कर दिया तो उन्होंने ग्रामीणों को लामबंद किया और पंचायत को मजबूर कर दिया कि वे उनकी योजना पर विचार करें. पंचायत ने बात में इस पर काम किया और लोगों के घरों में नियमित पानी की सप्लाई शुरू हो गई. उन्होंने स्थानीय जिला कमेटी में महिलाओं की भागीदारी भी सुनिश्चित कराई, क्योंकि उसके पहले उसमें महिलाएं नहीं होती थीं. वह इन गांवों में काम करते हुए 2013 में डांग जिले में पहुंच गईं जहां सुबीर ब्लॉक के तीन गांव में पानी की काफी समस्या थी. उन्हें वहां चेक डैम के मरम्मत की जरूरत समझ में आई. उन्होंने एक बैंक से बातचीत की और बांधों की मरम्मत करा दी. इसके बाद वहां करीब 2500 लोगों को पानी मिलने लगा. इसके बाद उन्होंने कुछ दूसरे संगठनों के साथ मिलकर लिफ्ट सिंचाई योजना पर काम शुरू किया. 3-4 किमी पैदल जाना होता था पानी के लिए वह कहती हैं, डांग, नर्मदा और भरूच जिले में कम जोत के किसान हैं. वे सिर्फ मानसून के समय खेती करते हैं. दूसरे मौसम में वे या तो पलायन कर जाते हैं या फिर कहीं छोटी-मोटी नौकरी करते हैं. लेकिन, गांव में उन्हें पानी की समस्या से जूझना पड़ता है. उन्हें 3 से 4 किमी पैदल चलकर जाना पड़ता है. कुछ गांव में तो पानी के टैंकर ही सहारा रहते हैं. ऐसे में नीता ने इन गांवों का दौरा किया और समस्या के हल के लिए प्लान बनाने की शुरुआत की. उन्होंने देखा कि इलाके में बारिश तो अच्छी होती है, लेकिन पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण पानी रुकता नहीं है और मैदानी इलाके में चला जाता है. इसके बाद उन्होंने महिलाओं को जोड़ा और जल समितियां बनाई. इसमें 2900 सदस्य जुड़ गए तो महिला सशक्तिकरण के लिए 4 समूह बना लिए. इसका असर यह हुआ कि कई गांवों में पानी की समस्या का हल हुआ. जमीन भी ज्यादा उर्रवक हुई और पानी की समस्या में भी कमी आई. नीता कहती हैं, चेक डैम की हालत खराब थी. ये बांध न के बराबर काम कर रहे थे. हमने बांधों की मरम्मत की जिम्मेदारी उठाई. इससे पानी की समस्या दूर हुई और जो लोग पानी लाने के लिए रोजाना 3 से 4 किमी पैदल चलकर जाया करते थे, उन्हें पानी मिलने लगा. करीब 15 साल पहले केवल 2% किसान ही सर्दियों की फसलें उगाते थे, लेकिन आज कई ग्रामीण अपने प्रयासों से ऐसा कर रहे हैं. उन्होंने कई गांवों में महिलाओं द्वारा संचालित जल समितियां गठित कीं, जो गांवों में पानी की समस्या के समाधान के लिए पंचायतों के साथ मिलकर काम कर रही हैं. सोलर से चलने वाली सिंचाई प्रणाली पर किया काम गांव में उन्होंने बिजली की समस्या भी देखी. ऐसे में सोलर से चलने वाली सिंचाई प्रणाली पर उन्होंने काम शुरू किया. इससे 230 गांवों में फायदा पहुंच रहा है. वहां करीब 1000 हेक्टेयर खेत की सिंचाई भी हो रही है. उन्होंने दूसरे संगठनों को साथ जोड़ा और कुओं की मरम्मत कराई, चेक डैम ठीक कराए और टॉप टू बॉटम वाटर कंजर्वेशन अप्रोच की शुरुआत की. इसका असर गांवों पर पड़ने लगा. सुखीराव भाई लानूभाई गायकवाड चिखले गांव के रहने वाले हैं. वह कहते हैं 7-8 साल पहले यहां पानी का कोई स्त्रोत नहीं था. इसी दौरान मुझे पता चला कि नीता बेन पटेल पानी की लिए काम कर रही हैं. पानी के विषय में बात की. नीता बहन ने मेरी बात को गंभीरता से लिया और मेरे साथ गांव में आईं. किसानों के साथ तीन-चार बार मीटिंग की. किसान भी समझ गए कि हमारा सुझाव सही है. पानी रहेगा तो सब रहेगा. इसके बाद टूटे हुए नाले को मरम्मत कराने में उन्होंने सपोर्ट किया. जिससे कुआं में पानी आ गया. इसके बाद मैंने 100% प्राकृतिक खेती शुरू की. इसके साथ ही तालाब में मछली पालन शुरू किया. पूरे इलाके के लोगों की जिंदगी बदल गई. वे कई चीजों की खेती करने लगे. ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी | Tags: Farmers in India, up24x7news.com Hindi Originals, Water CrisisFIRST PUBLISHED : June 20, 2022, 13:12 IST