जादूगोड़ा का जहन्नुम! एक गांव जहां 200 दिव्यांग 30% महिलाएं हैं बेऔलाद
जादूगोड़ा का जहन्नुम! एक गांव जहां 200 दिव्यांग 30% महिलाएं हैं बेऔलाद
Jharkhand New: जमशेदपुर से 45 किलोमीटर दूर जादूगोड़ा गांव लोगों के लिए जाहन्नुम बन गया है. यहां 200 से ज्यादा लोग दिव्यांग हैं. 30 प्रतिशत महिलाएं बेऔलाद हैं. झारखंड सरकार और प्रशासन ने इन लोगों की समस्या से अपना मुंह मोड़ लिया है.
Jharkhand New: झारखंड के जमशेदपुर से 45 किलोमीटर की दूरी पर एक बदनसीब गांव है, जिसका नाम जादूगोड़ा है. यह पिछले डेढ़ दशकों में जहान्नुम में बदल चुका है. यहां लोगों ने इतनी तकलीफों को सहा है कि अब उनके आंसू तक सूख चुके हैं. इस गांव में 200 से ज्यादा लोग दिव्यांग हैं. 30 प्रतिशत महिलाएं बेऔलाद हैं. लोगों के पैर फूल रहे हैं. जंगलों और पहाड़ों के बीच बसे इस गांव में ऐसा यूरेनियम खनन के कारण हो रहा है. यहां कोई लंगड़ा है तो कोई बोल नहीं पाता. पिछले 10 स 15 सालों में जादूगोड़ा जहान्नुम में बदल गया है. लोग गांव छोड़कर भागने को मजबूर हो गए हैं.
जंगलों और पहाड़ों के बीच बसे इस गांव की कहानी का एक एक हिस्सा आपको देखना और समझना चाहिए. ये समझना चाहिए कि कैसे ये गांव तकलीफ़ों के समंदर में समा गया और सिस्टम सब कुछ आंख बंद करके देखता रहा. पिछले डेढ़ दशक में एक दो परिवारों की ज़िंदगी दुश्वार नहीं हुई. गांव का गांव इन हालात की भेंट चढ़ता गया. किसी की कोख सूनी है. कोई बोल नहीं पाता. कोई चल नहीं पाता. बीमारियों ने ऐसा शिकंजा कसा कि उसके ख़ौफ़नाक पंजों से बच पाना ही चुनौती बन गया है. ये सब कुछ आखिर इस गांव के नसीब में क्यों आया. ये गांव सारंडा के जंगलों के नजदीक आता है. जंगलों और पहाड़ों के बीच जादूगोड़ा बसा हुआ है. यहीं यूरेनियम की खदानें भी हैं, जहां 1967 से खनन चल रहा है.
खादान से 10 किलोमीटर दूर गांव
जानकार बताते हैं कि इन्हीं खदानों के कारण 10 किलोमीटर की क्षेत्र में आने वाले गांवों पर बीमारी का असर हुआ है. दावा किया जा रहा है कि यूरेनियम से निकलने वाले रेडिएशन के असर की वजह से ही ऐसा हो रहा है. तनिष उरांव के परिवार की ही तरह लक्ष्मी नामक लड़की की ज़िंदगी भी हंसते खेलते तबाह हो गई. शरीर को लकवा मार चुका है. खून की बेहिसाब कमी है. लेकिन परिवार के पास उन तकलीफ़ों को कम करने का कोई विकल्प नहीं.
3 बार में भी नहीं बन सकी मां
आंकड़े बताते हैं कि बीते 15 सालों में 200 बच्चे दिव्यांग पैदा हुए हैं. जिन्हें जन्मजात बीमारी नहीं हुई वो कुछ दिन बाद दिव्यांग हो गए. गांव की तीस फ़ीसदी महिलाएं ऐसी हैं जिनके बच्चों की मौत कोख में ही हो चुकी है. बताया जाता है कि गांव वाले रेडिएशन की वजह से ही बीमार हो रहे हैं. गांव वेदनाओं से इस कदर घिरा है कि हर एक घर की चौखट पर दर्द की कहानी है. सुशीला पत्रा भी उन्हीं बदनसीबों में आती है, जो अब तक अपनी औलाद का मुंह नहीं देख सकी. एक दो बार नहीं कई बार सुशीला का गर्भपात हो चुका है. सुशीला का 3, 4 और 9 महीने में बच्चा गिर चुका है.
डॉक्टर्स का क्या है कहना?
यहां रेडिएशन धीरे धीरे अपना कहर घर घर में बरपा रहा है. लोग बेमौत मर रहे हैं. बीमारी ऐसी गले पड़ रही है कि ज़िंदगी भर का जख्म जीते जी मिल रहा है. डॉक्टर भी मानते हैं कि जादूगोड़ा के इस नर्क की कहानी दिन ब दिन बेहद भयानक होता जा रही है. स्वास्थ्य विभाग जांच के दावे तो कर रहा है, लेकिन बीमारियों की असल वजह को समझना अभी भी चुनौती बना हुआ है. सबसे बड़ी मुसीबत गांव वालों के सामने यही है कि इन जख्मों का इलाज दूर दूर तक दिखाई नहीं देता. सवाल यही है कि जादूगोड़ा की वादियों में जो जहर घुला है, उसका असर कब खत्म होगा. कब रेडिएशन वाले कहर से गांव वालों को निजात मिलेगी. कब सूनी कोख में फिर कोई औलाद चहकेगी.
Tags: Jamshedpur news, Jharkhand NewFIRST PUBLISHED : December 14, 2024, 11:42 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed