यूपी की वो सीट जहां कभी भी सपा-बसपा को नसीब नहीं हुई जीत 4 दशक से खिल रहा कमल

सियासी रूप से देश के सबसे अहम राज्य उत्तर प्रदेश में करीब-करीब आधी सीटों पर वोटिंग हो चुकी है. पांचवे चरण में यहां की एक सबसे वीआईपी सीट पर वोटिंग होगी. इस सीट पर आज तक सपा-बसपा के उम्मीदवार को जीत नहीं मिली है.

यूपी की वो सीट जहां कभी भी सपा-बसपा को नसीब नहीं हुई जीत 4 दशक से खिल रहा कमल
देश में लोकसभा चुनाव अंतिम दौर की ओर बढ़ रहा है. अब तक चार चरणों में 379 सीटों पर वोटिंग हो चुकी है. 20 मई को पांचवे दौर की वोटिंग है. इस चौथे चरण में एक ऐसी सीट पर भी वोटिंग होगी जहां बीते करीब चार दशक से भाजपा का कब्जा है. मजेदार बात यह है कि उत्तर प्रदेश की सत्ता में लंबे समय तक रहने वाली दो प्रमुख पार्टियां सपा और बसपा को आज तक इस सीट पर जीत नसीब नहीं हुई. देश के पहले चुनाव के वक्त से लेकर 1990 के दशक तक यहां करीब-करीब कांग्रेस का कब्जा रहा. फिर भाजपा ने जब एक बार इस सीट पर जीत हासिल कर ली तो वह सिलसिला आज तक जारी है. जी हां, हम बात कर रहे हैं देश की एक सबसे प्रतिष्ठित लोकसभा सीट लखनऊ की. यहां से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पूरे पांच बार सांसद निर्वाचित हुए थे. वह 1991 में पहली बार यहां से सांसद चुने गए. फिर 1996, 1998, 1999 और 2004 में सांसद बने. 2009 में यहां से भाजपा के लालजी टंडन सांसद बने. उसके बाद 2014 से केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह यहां से सांसद हैं. वह 2024 के चुनाव में भी एक बार फिर मैदान में हैं. 2019 का चुनाव 2019 के लोकसभा चुनाव में राजनाथ सिंह ने करीब 3.50 लाख वोटों से जीत हासिल की थी. उस चुनाव में सपा ने बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता रहे शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी पूनम सिन्हा को मैदान में उतारा था. कांग्रेस की ओर से आचार्य प्रमोद कृष्णन ने चुनाव लड़ा. प्रमोद कृष्णन अब भाजपा में शामिल हो चुके हैं. 2014 में राजनाथ सिंह ने लखनऊ में कांग्रेस की उम्मीदवार रहीं रीता बहुगुणा जोशी को करीब 2.73 लाख वोटों से हराया था. हालांकि रीता भी आगे चलकर भाजपा में शामिल हो गईं. नेहरू की बहन थी पहली सांसद जहां तक इस सीट के इतिहास की बात है तो 1952 में यहां से प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की बहन विजया लक्ष्मी पंडित सांसद चुनी गई थीं. फिर 1955 के उप चुनाव में नेहरू परिवार की ही शेवराजवती नेहरू, 1957 में पुलीन बेहरा बनर्जी, 1962 में बीके धावन, 1967 में आनंद नारायण मुल्ला, 1971 में शीला कौल सांसद बने. ये सभी लोग कांग्रेस पार्टी से थे. मोहनलालगंज लोकसभा सीट: हैट्रिक की दौड़ में भाजपा, सपा-बसपा के उम्मीदवार कितने दमदार? फिर 1975 के आपातकाल के बाद 1977 में हुए आम चुनाव में करीब-करीब पूरे उत्तर भारत से कांग्रेस का सफाया हो गया. 1977 के चुनाव में यहां से जनता पार्टी के टिकट पर हेमवती नंदन बहुगुणा सांसद बने. लेकिन, 1980 में हुए चुनाव में फिर से कांग्रेस ने वापसी कर ली और लगातार दो चुनावों 1980 और 1984 में यहां से कौल सांसद चुनी गईं. 1989 में एक बार फिर जनता दल के मंधता सिंह सांसद बनीं. 1991 के चुनाव के साथ भाजपा की एंट्री हुई और इस सीट पर आज तक भाजपा जीतती आ रही है. 2022 के विधानसभा का गणित लखनऊ लोकसभा एक शहरी सीट है. यहां विधानसभा की कुल पांच सीटें हैं. 2022 के विधानसभा चुनाव में इसमें से तीन पर भाजपा और दो पर सपा को जीत मिली. हालांकि मौजूदा वक्त में लखनऊ ईस्ट विधानसभा सीट खाली है. 2024 की जंग इस लोकसभा चुनाव में राजनाथ सिंह के सामने सपा-कांग्रेस गठबंधन के नेता रविदार मेहरोत्रा मैदान में हैं. बसपा ने यहां से सरवर अली को अपना उम्मीदवार बनाया है. यह एक मुस्लिम बहुल सीट है. बावजूद इसके यहां लंबे समय से भाजपा की जीत होती रही है. Tags: Loksabha Election 2024, Loksabha Elections, Lucknow lok sabha electionFIRST PUBLISHED : May 14, 2024, 15:35 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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