अखिलेश का मॉनसून ऑफर पहली बार मुनादी कर दल बदल कराने की कोशिश!

अखिलेश यादव ने 100 विधायक लाओ, सरकार बनाओ का मॉनसून ऑफर दिया है. लोकतंत्र में प्रतिपक्ष सत्ता हासिल करने की कोशिशें करता रहा है लेकिन मॉनसून ऑफर जैसी बात वो भी एक्स या ट्विटर पर मुनादी करके पहली दफा सुनने को मिल रही है.

अखिलेश का मॉनसून ऑफर पहली बार मुनादी कर दल बदल कराने की कोशिश!
समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने एक्स (X) पर पोस्ट करके ऑफर दिया है. 100 विधायक ले आओ सरकार बनाओ. राजनीति में तोड़-फोड़ कर सरकार बनाना कोई नई-अच्छी बात नहीं है. फिर भी कांग्रेस समेत बहुत सारे दल ये तोड़फोड़ कराते रहे हैं. बीजेपी के पक्ष में भी कुछ राज्यों में ऐसी घटनाएं हुई कि पाला बदलकर विपक्षी दल ने सत्ता हासिल कर ली हो, लेकिन अब तक इसके लिए मुनादी करने जैसी बात नहीं सुनी गई थी. मुनादी जब कहा जा रहा है तो इसका मतलब खुलेआम घोषणा से है. आखिर राजनीति आलू, प्याज या पिज्‍जा, बर्गर तो है नहीं कि इसके लिए मॉनसून ऑफर दिया जाए. दल बदल तो होते रहे, मुनादी कर ऑफर पहली बार! पहले जो सत्ता परिवर्तन इस तरह से किए गए हैं या हुए हैं, उन्हें दल-बदल का नाम दिया गया. वो भी ऐसा दल बदल जो नियमों कानूनों के दायरे में हो. अगर इस तरह से सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर आमंत्रित किया जाए तो इसे मजाक भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि लोकतंत्र में ऐसा मजाक करने वाले को संजीदा राजनेता मानने में दिक्कत आएंगी. निश्चित तौर पर कांग्रेस के साथ मिलकर बीजेपी के विरोध में लोकसभा चुनावों के दौरान जो पेशबंदी अखिलेश यादव ने की, उससे उनकी छवि और अच्छी हुई है, लेकिन ये ऑफर उस छवि के साथ मेल नहीं खाता. सरकार गिराने के आरोप तक विपक्ष स्वीकार नहीं करता रहा कहने की जरूरत नहीं है कि अखिलेश ने ये ऑफर केशव प्रसाद मौर्या के बयान को निशाना बनाकर ही किया है. उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या ने बीजेपी के हार के कारणों की तफसील देते हुए जो कारण गिनाए थे वे किसी न किसी तरह से मुख्यमंत्री योगी को निशाने पर लेते दिख रहे थे. इसके अलावा मौर्या को पिछड़ों का नेता माना जाता है. अखिलेश यादव की राजनीति भी पिछड़ों की ही रहती है. अखिलेश के समर्थक कह सकते हैं कि इसे एक मौका मानते हुए एसपी नेता ने उस पर चौका जड़ दिया, लेकिन दूसरे किसी भी काम की तुलना में राजनीति में अपनी मर्यादा खुद कायम करना जरूरी है. अखिलेश को पता है कि ये क्या है खास तौर पर जिस धड़े की राजनीति अखिलेश यादव करते हैं वो समाजवाद का है. समाजवादी पार्टी के मुखिया के तौर पर ‘मानसून ऑफर’ देकर अखिलेश को कोई फायदा मिल जाए, इसकी संभावना बिल्कुल नहीं के बराबर है, क्योंकि अगर वास्तव में उनके पास कोई मौका होता तो वे भी उस अवसर को कैश करने के लिए बहुत ही गोपनीय तरीके से कोशिश करते. मुनादी करके अपने खेल को खराब न करते. इससे पहले देखा गया है कि जहां सत्ता संतुलन में थोड़ा अंतर होता है, दोनों पक्षों के दो-चार विधायकों के हेरफेर से सत्ता की चाबी इधर से उधर होने का अंदेश रहा है, वहां के विधायकों को दूर ले जाकर रखा जाता है. फिर कैसी कवायद होती है पहले कई बार दिख चुका है. तो फिर क्या ये महज थोड़ी देर के लिए अटेंसन पाने का जुगाड़ भर था? इस हालत में भी ऑफर को सही और उचित नहीं ठहराया जा सकता. मौर्या ने जवाब दिया ध्यान रखने की बात है कि केशव प्रसाद मौर्या ने तुरंत इसका जवाब ये कहते हुए दे दिया कि राज्य और केंद्र दोनों जगहों पर बीजेपी का मजबूत संगठन और सरकार है. हालांकि मौर्या के बयान के बाद ही निषाद पार्टी के मुखिया संजय निषाद ने भी बयान देकर बुलडोजर पर सवाल उठाया था. संजय निषाद राज्य सरकार में मंत्री हैं और वे विधान सभा उपचुनावों में बीजेपी से दो सीटें चाह रहे हैं. उनकी पार्टी एनडीए में शामिल है. दरअसल, फिलहाल उत्तर प्रदेश में जो भी कवायद चल रही है, वो इन्ही दस सीटों के उपचुनाव को लेकर है. पहले भी देखा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर चुनाव को बहुत संजीदगी से लेते हैं. यहां तक कि वे खुद चुनाव प्रचार का कोई मौका नहीं छोड़ते. अखिलेश को भी मॉनसून ऑफर जैसी बात करने की जगह उपचुनावों पर अपना ध्यान केंद्रीत करना चाहिए. Tags: Akhilesh yadav, UP newsFIRST PUBLISHED : July 18, 2024, 16:29 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed