कोलकाता जब कलकत्ता था तो यूपी-बिहार समेत बहुत सारे इलाकों के लोगों के लिए रोजगार का केंद्र था. यहां तक कि लोक गीतों में पिया के कलकत्ता जाने का जिक्र खूब मिलता है. पिया को ले जाने वाली रेलिया (रेलगाड़ियों) को बैरी मान लिया गया था. जब से कोलकाता बना है यहां की फैक्ट्रियां, मिलें बंद ही होती गईं. लोक गीत तो अमर होते हैं. वहां अभी भी कलकत्ता खूब गाया जाता है. हालांकि अब कोलकाता रोजगार का वैसा केंद्र नहीं रहा. ताजा खबर है कि ब्रिटानिया बिस्किट बनाने वाली यहां की फैक्ट्री बंद कर दी गई है.
हाइलाइट्स एक समय बिहार, पूर्वी यूपी का रोजगार का हब था कोलकाता आज भी लोकगीतों में कलकता प्रतीक के तौर पर शामिल है रोजगार देने वाली बहुत सारी फैक्ट्रियां, कंपनियांं बंद हुई, बदल गई पहचान
बीसवीं सदी के अंतिम चरण तक पश्चिम बंगाल देश के सबसे बड़े औद्योगिक केंद्रों में शुमार था. देश भर से लोग यहां रोजगार के लिए आते थे. मारवाड़ियों की गद्दियां जितनी कलकत्ते में थी, उतनी कहीं और नहीं. गद्दियों के अलावा धुआं उगलने वाली मिलों की चिमनियां रोजगार का प्रकाश स्तंभ हुआ करती थीं. खासकर बंगाल से लगे ओडिशा, बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों के लिए तो कलकता ही मेन ठौर था. पारिवारिक हालात की वजह से जल्दी रोजगार चाहने वाले या सरकारी नौकरियां हासिल कर पाने में नाकाम नौजवान बस कलकत्ते का ही टिकट कटाते थे. अब के कोलकाता का नाम तब कलकत्ता ही था. रोजगार के लिए बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के इतने सारे लोग यहां आए कि बहुत सारे भोजपुरी और मैथिली गीतों में कलकत्ता एक प्रतीक बन गया. यहां तक गांवों में रह रही उनकी पत्नियों को रेल गाड़ियां दुश्मन लगने लगीं, क्योंकि उस पर चढ़ कर उनके पिया कलकत्ता चले जाते थे. गीत बन गया- रेलिया बैरन पिया को लिए जाए रे… ये अलग बात है कि एक के बाद एक बहुत सारे उद्योग पश्चिम बंगाल में बंद किए गए. ताजा बंदी की है ब्रिटानिया ने. एफएमसीजी की बहुत बड़ी इस कंपनी ने आजादी के वक्त ही कोलकाता में अपनी एक फैक्ट्री लगाई थी. इसका प्रोडक्ट थिन आरारोट बिस्किट बहुत लोकप्रिय था.
बहरहाल, बात भोजपुरी के गीतों और उनमें कोलकाता या कलकत्ता के इस्तेमाल की थी. भोजपुरी के एक लोकप्रिय गीत में नायिका रेलगाड़ियों और उसके टिकट को कोस भी रही है-
जौन टिकसवा से बलम मोरे जैहें, रे सजना मोरे जैहें,
पानी बरसे टिकस गल जाए रे, रेलिया बैरन।।
जौने सहरिया को बलमा मोरे जैहें, रे सजना मोरे जैहें,
आगी लागै सहर जल जाए रे, रेलिया बैरन।। बिरह के कारण महिलाओं ने पतियों को यात्रा पर ले जाने वाली रेलगाड़ी को ही बैरन बना लिया.
लागल झुलनियां क धक्का बलम कलकत्ता गइले हो
गीत की नायिका की दिक्कत ये है कि रेल का टिकट कटा कर पिया कलकत्ता चले जा रहे हैं. भिखारी ठाकुर ने भी अपनी एक रचना की है पिया कलकतवा गइले हो. रेलगाड़ी दरअसल, पिया को लेकर कलकत्ता चली जा रही है. कोलकाता उस वक्त सहजता से रोजी रोजगार देने वाला एक बहुत बड़ा केंद्र था. लागल झुलनियां के धक्का बलम कलकता गइले हो… भोजपुरी का ये लोकगीत बताता है कि शादी के बाद जब नौजवान के कंधों पर परिवार की जिम्मेदारी आ पड़ी तो वो कलकत्ता ही निकल गया. ये गीत थोड़े शब्द हेरफेर कर फिल्म में भी आशा भोसले की आवाज में आया है. भोजपुरी के शानदार रचनाकार भिखारी ठाकुर लिखते हैं – पियवा गइले कलकत्ता हो सजनी…. बाद में तो कलकता से पिया लापता हो गइले हो…. जैसे गीत भी जुड़े. वजह ये थी कि कलकत्ता जन जीवन में रच बस गया था.
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चटकल की अहमियत
दरअसल, पूर्वी इलाकों से लोग वहां जाकर छोटी मोटी नौकरी ही हासिल कर पाते थे. हां, उससे इतनी कमाई हो जाती कि परिवार का पालन पोषण कर सकें. इसके लिए बहुत सारे लोगों के लिए टाट बनाने वाले चटकल कही जाने वाली मिलों में काम पाना आसान रोजगार था. अभी लोकसभा चुनाव से पहले पश्चिम बंगाल सरकार ने भारतीय जूट मिल संघ के साथ एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किया और कराया. इस समझौते में 113 जूट मिले शामिल हुईं. इसमें मिल मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी जैसे विवाद पर समझौता किया गया. इससे तीन लाख से ज्यादा मजदूरों का सरोकार है. इससे भी समझ में आता है कि ये उद्योग कितना लंबा चौड़ा रहा है.
हिंदुस्तान मोटर्स में भी खूब नौकरियां थीं
इसके अलावा कोलकाता में बिहार और भोजपुरी इलाकों से गए लोगों को बहुत सहारा देने वाली फैक्ट्री में हिंदुस्तान मोटर्स रही. ऊंचे अफसरों और नेताओं, मंत्रियों की पसंदीदा गाड़ी अंबेस्डर बनाने वाली हिंदुस्तान मोटर्स भी बहुत सारे लोगों को रोजगार देती थी. 10 साल पहले ये फैक्ट्री बंद कर दी गई. 1957 में फैक्ट्री की शुरुआत हुई. बहुत सारे बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों को वहां काम मिला. वक्त बीतने के साथ नौकरीशुदा लोग वहीं बस भी गए. यही स्थिति रेल कोच फैक्ट्री की थी. हालांकि ये फैक्ट्री अभी चल रही है और लोग रोजगार में लगे हैं.
खान पान और तहजीब की अदला बदली
कोलकाता में बिहार यूपी के लोगों के काम करने का असर ये हुआ कि बंगाल की बहुत सारी चीजें बड़ी सहजता से उनकी मूल जगहों पर आ गई. उन्होंने बंगाली भद्र लोग के पहनावे, तहजीब की नकल की. वहां का खाना और रसोई बिहार और यूपी के पूर्वांचल में फैली. खान पान में तहजीबों के इस मेल मिलाप से बहुत सारी नई चीजें भी बनने लगीं. ठीक इसी तरह कोलकाता में भी बहुत सारी खाने पीने की चीजें रच बस गईं जो उन इलाकों की थी. मसलन सत्तू, लिट्टी वगैरह. धान से बनने वाले पोहा या चिड़वा के बारे में अभी तक ठीक से पता नहीं चल पाया कि इसका इजाद बंगाल में हुआ या फिर यूपी-बिहार से तैयार करके ये बंगाल में गया. हालांकि जानकार यही दावा करते हैं कि खानपान में बहुत नफीस बंगाली लोगों ने ही धान से चिड़वा बनाया होगा.
मुंबई अलबत्ता रोजगार का एक और केंद्र हुआ करता था, लेकिन पूरब के लोग वहां की बजाय कोलकाता को ही पसंद करते थे. 1980 के बाद से उद्योग धंधे हैदराबाद, बंगलुरु और दिल्ली नोएडा की ओर जाने लगे. इसके राजनीतिक कारण भी रहे हैं, लेकिन नतीजा ये हुआ कि कोलकाता का एकाधिकार धीरे-धीरे खत्म होता गया. फिर भी लोक गीतों ने जो जन मानस में जगह बना ली वो आज भी उसी रूप में गाए जा रहे हैं. गीतों में कोलकाता, कलकत्ता के तौर पर कायम है. उसकी अहमियत बरकरार है. हालांकि कोलकाता का महत्व इतिहासकारों ने भी रेखांकित किया है. इतिहास में दर्ज है कि डुप्ले ने भारत में सफलता की कुंजी गोवा में खोजी लेकिन असफल रहा और क्लाइव ने कलकत्ता में इसे पा लिया. डुप्ले फ्रांसिसी औपनिवेशिक प्राशासक था तो क्लाइव को भारत में अंग्रेजी सम्राज्य का संस्थापक माना जाता है.
Tags: Bhojpuri, Kolkata News, Migrant labourFIRST PUBLISHED : June 25, 2024, 15:59 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed