पान तो कयामत है सितम है दिल फिदा है बस आग वाला पान मत खाइए

पान भारतीय समाज में तहजीब के किसी प्रतीक जैसा है. ये अलग बात है कि मेडिकल साइंस में इसमें मिलाए जाने वाले तमाम चीजों को नुकसानदेह बताता है, लेकिन कुछ दुकानों पर मिलने वाला फायर पान तो जानलेवा तक है. ऐसे में पान की शानदार रिवायत खुद ब खुद जेहन में घूम जाती है.

पान तो कयामत है सितम है दिल फिदा है  बस आग वाला पान मत खाइए
हाइलाइट्स मेल मिलाप और सम्मान के मौकों पर पान खाना खिलाना रिवायत है पान तैयार करना सलीकेदारों का ही काम बेशकीमती पानदान कभी स्टेटस सिंबल हुआ करते थे पान खाकर इसके शौकीनों के मिजाज खुश हो जाता है. बाछें, शरीर में जहां कभी भी होती हों, खिल जाती हैं. खाने वाले के लाल लाल होठ इसका इस्तेहार भी करते दिख जाते हैं. कुछ जगहों पर लोगों ने अब पान में ‘आग खाने का शौक’ भी पाल लिया. हालांकि इस नई मुसीबत के जिम्मेदार पान दुकान वाले हैं. वे पान वाले जोअपनी दुकान चलाने के लिए ऐसा कर रहे हैं. लोगों को थोड़ी देर के लिए हैरान कर बिक्री बढ़ाने की खातिर पान के साथ ये गलत काम कर रहे हैं. इसके चक्कर में फंसने की जरूरत नहीं है. डॉक्टरों ने चेताया है कि फायर या स्मोक वाले पान से बड़ा नुकसान हो सकता है. इसे तैयार करने के लिए लिक्विड नाइट्रोजन का इस्तेमाल किया जाता है जो शरीर के भीतरी अंगों के लिए बेहद नुकसानदेह है. पान महज होठों को लाल करने वाला या नशे की हुड़क मिटाने वाली कोई खुराक नहीं है. ये तो एक तहजीब है. अंदाज है. दूसरों के प्रति सम्मान दिखाने वाला हमेशा तैयार एक भेंट है. इसे पेश करके आप खुश होते हैं तो लेने वाला अपकी भावना अपने होठों से लगा लेता है. तभी तो किसी शायर ने क्या खूब कहा है – होंठों में दाब कर जो गिलौरी दी यार ने क्या दाँत पीसे ग़ैरों ने क्या क्या चबाए होंठ हिंदू कर्मकांड में पान पान की रूमानी कहानी तो बाद में आई. खासतौर से फिल्मों ने इसे खूब मशहूर किया. लेकिन इसकी तवारीख की बात की जाय तो हिंदू कर्मकांड पान के पत्ते के बगैर मुमकिन ही नहीं हैं. देवताओं को पान चढ़ाने के मंत्र हैं. बाकायदा पान का बीड़ा बना कर देव गण को मंत्र के साथ पान समर्पित किया जाता है. पूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम्, एलादिचूर्णसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् इस श्लोक में कहा गया है कि हे देवता यह तांबूल यानी पान स्वीकार करिए. पान में मैने महादिव्य पूगीफल यानी सुपारी, इलायची का चूर्ण डालकर बनाया है. ये तो देवताओं की बात हो गई. इस धारा धाम की मानव जाति के लिए भी ये कम महत्वपूर्ण नहीं रहा है. संस्कृत साहित्य में इसका खूब उल्लेख आता है – ताम्बूलं कटु तिक्तमुष्णमधुरं क्षारं कषायान्वितं, वातघ्नं कफनाशनं कमिहर दुर्गन्धनिर्णाशनम्। वक्त्रास्याभरणं विशुद‌धिकरणं कामाग्निसंदीपनं. तम्बूलस्य सखे त्रयोदश गुणाः स्वर्गे अपि ते दुर्लभम्। इस श्लोक में पान को ताम्बूल कहते हुए उसके 13 गुण बताए गए हैं. कहा गया है कि तांबूलके ये तेरह गुण स्वर्ग में भी दुर्लभ है- कडवा ,तिखा, उष्ण, मीठा, नमकीन, कसैला , वात, कफ ,कृमी, दुर्गंधी नाशक, मुखको शोभा देनेवाला, शरीर विशुद्ध करनेवाला और कामउद्दीपक. नवाबी दौर मुगलों के दौर में तो पान का सम्मान बढ़ा ही, नवाबी काल में तो ये अपने उरुज पर था. उसी दौर में पान महज पत्ता नहीं रह गया. इसमें जले हुए तम्बाकू से बना किमाम, केसर और दूसरे बहुत सारे सुगंधित मसालों के अलावा शरीर को जल्द स्फूर्ति देने वाली दवाएं भी मिलाई जाने लगी. शायद यही वक्त था जब पलंगतोड़ पान का इजाद किया गया. ये भी कम रोचक नहीं है कि पान को अलग पहचान देने वाला शहर बनारस है. हिंदुओं की धार्मिक आस्था का केंद्र वो बनारस जहां नवाबों का असर वैसा नहीं रहा जैसा बहुत से दूसरे शहरों में रहा है. पान सामाजिक जुटानों की जान के तौर पर जाना जाता रहा है. संगीत और मुशायरे की महफिलों में तो इसका होना लाजिमी होता था. ये रिवायत भारत के साथ पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी रही है. पान शब्द का इतिहास पान शब्द के इतिहास की जब भी बात की जाएगी तो कर्मकांड के साथ साथ नवाबी दौर का भी जिक्र जरूर आएगा. शाब्दिक उत्पत्ति के नजरिए से देखने पर लगता है कि इसकी उत्पत्ति पर्ण से हुई होगी. संस्कृत के शब्द पर्ण का मायने पत्ता होता है. समय के साथ ये पान बन गया होगा. पान के लिए तांबूल शब्द संस्कृत के अलावा कुछ दूसरी भी भाषाओं में भी मिलता है. पान के पर्यावाची की तलाश करने पर अमृता, उरगलता, तामोर, ताम्बूल, तीक्ष्णमंजरी, तीक्ष्णमञ्जरी, नागवल्लरी, नागवल्ली, पातालवासिनी, पान, फणिलता, फणिवल्ली, रंगवल्लिका, रङ्गवल्लिका, शल्या, सर्पबेलि, सर्पलता, सर्पवल्ली जैसी संज्ञाएं भी इसके लिए लिखीं गई हैं. तांबूल वाहक एक समय जब पान की इस कदर दुकाने नहीं हुआ करती थी तब बहुत से शौकीन लोग घर में ही पान बनाने का पूरा इंतिजाम रखते थे. पानदान कहे जाने वाले पान के डब्बे होते थे. जिसकी जितनी बड़ी हैसियत उसका पानदान उतना ही शानदार. उसमें कत्था,चूना, जर्दा और किमाम जैसे पान के तमाम संगी-साथियों समेत सरौता, वगैरह भी होता था. कुछ कहानियों –कथाओं में तो तांबूल वाहक का भी जिक्र आता है. वैसे तो इनका काम पान ले आना ही समझ में आता है. ये वो लोग होते थे जो रइसों के पानदान और दूसरी जरूरी चीजें लेकर उनके साथ चलते थे. ये दूसरे कर्मचारियों की तुलना में अधिक चतुर और अच्छे कपड़ों वाले होते थे. इन्हें अपने मालिक के मिजाज का पता रहता था. इनका काम एक दूसरे रइस परिवारों के बीच जरूरी संवाद कायम करने का भी होता था. घरों में पानदान की रौनक बीसवीं सदी के आठवें दशक तक दिखती थी. अब भी कुछ घरों में निश्चित तौर पर ये किसी सजावटी सामान की तरह जरूर रखी दिख जाती है. लेकिन पानदान से जुड़ी यादों को बशीर बद्र साहब ने बहुत ही शानदार तरीके से एक शेर की शक्ल दे दी है – सुना के कोई कहानी हमें सुलाती थी दुआओं जैसी बड़े पान-दान की ख़ुशबू. बहरहाल, पान में बहुत सारी चीजों की मिलावट हुई. अब पता चलता है कि तंबाकू किमाम वगैरह मिलाने से ये मुंह के लिए नुकसानदेह होता है. सुपारी और चूने को एक साथ खाने पर भी इसका नुकसान सबम्यूकस फ्राइब्रोसिस नाम की बीमारी के तौर पर होता है. लेकिन इतना सब होने के बाद भी पान अपने आप में फायदेमंद ही बताया जाता है. हां, उसमें चूने, किमाम, तंबाकू जैसी चीजें न मिलाई जाएं. और पान को आग तो कभी न मिलाया जाय. फायर पान जैसी चीज किसी हालत में न खाया जाय. वैसे भी आग खाने की चीज नहीं है. ये हमेशा जला ही देगी. इसे मुखशुद्धि के लिए इसके असली रूप में सम्मान के साथ ही खाना और पेश करना चाहिए, तभी तो अकबर इलाहाबादी कहते हैं – लगावट की अदा से उनका कहना पान हाज़िर है क़यामत है सितम है दिल फ़िदा है जान हाज़िर है FIRST PUBLISHED : May 22, 2024, 17:02 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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