इस शिवलिंग पर आज भी मौजूद है रावण के अंगूठे का निशान जानें मान्यता

Lakhimpur Kheri Shiv Temple: लखीमपुर खीरी में छोटी काशी के नाम से प्रसिद्ध गोला गोकर्णनाथ के पौराणिक शिव मंदिर को लेकर कई मान्यताएं हैं. कहा जाता है कि भगवान शंकर ने यहां मृग रूप में विचरण किया था. इस मंदिर को तराई क्षेत्र का सबसे प्राचीन मंदिर कहा जाता है.

इस शिवलिंग पर आज भी मौजूद है रावण के अंगूठे का निशान जानें मान्यता
लखीमपुर खीरी: यूपी के लखीमपुर जिले से 35 किलोमीटर दूर छोटी काशी के नाम से प्रसिद्ध गोला गोकर्णनाथ के पौराणिक शिव मंदिर के महत्व और प्रसंग पुराणों और लोक कथाओं में मिलते हैं. यह पूरे तराई क्षेत्र का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है. यह मंदिर प्रदेश की अनमोल धरोहर है. यहां होने वाले धार्मिक आयोजन और मेले की सांस्कृतिक विरासत भी है. यहां के मंदिर को लेकर है मान्यता मान्यता है कि भगवान शंकर ने यहां मृग रूप में विचरण किया था. वराह पुराण में वर्णन है कि भगवान शंकर वैराग्य उत्पन्न होने पर यहां के वन क्षेत्र में भ्रमण करने आए और रमणीक स्थल देखकर यहीं रम गए. ब्रह्मा, विष्णु और इंद्र को चिंता हुई और वह उन्हें ढूंढने के लिए निकले तो इस वन प्रांत में विशाल मृग को सोते देखकर समझ गए कि यही शिव हैं. वे जैसे ही उनके निकट गए तो आहट पाकर मृग भागने लगा. रावण की तपस्या से भगवान शिव हुए थे प्रसन्न पौराणिक शिव मंदिर से जुड़ी एक किवदंती भी लोक मान्यता का रूप ले चुकी है कि भगवान शिव लंकापति रावण की तपस्या से प्रसन्न हुए. इसके बाद रावण भगवान शिव को अपने साथ लंका ले जाने लगा. भगवान शिव ने शर्त रखी कि उन्हें रास्ते में कहीं भी रखा, तो वह उस स्थान से नहीं जाएंगे. जब रावण भगवान शिव को लेकर लंका के लिए गोला गोकर्णनाथ के पास पहुंचा तो उसे टॉयलेट का आभास हुआ. जानें शिवलिंग की कैसे हुई स्थापना रावण ने चरवाह को भगवान शिव की शिवलिंग दी और कहा कि इसे जमीन में मत रखना काफी देर तक जब रावण लौट कर नहीं आए तो चरवाह ने शिवलिंग को जमीन में ही रख दिया और वह वहां से चला गया. जब रावण वहां पहुंचा तो शिवलिंग उठाने की कोशिश की, लेकिन शिवलिंग नहीं उठ सकी. इससे नाराज होकर रावण ने अपने अंगूठे से शिवलिंग को जमीन में दबा दिया. मान्यता है कि गोला के पौराणिक शिव मंदिर में स्थापित शिवलिंग में रावण के अंगूठे का निशान आज भी मौजूद है. Tags: Lakhimpur Kheri, Lakhimpur Kheri News, Local18FIRST PUBLISHED : July 18, 2024, 12:51 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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