J&K: इंदिरा ने कांग्रेस विधायकों की सीट खाली करवा अब्दुल्ला को बनवाया था MLA
J&K: इंदिरा ने कांग्रेस विधायकों की सीट खाली करवा अब्दुल्ला को बनवाया था MLA
Jammu Kashmir Elections: अगस्त 2019 में संविधान के अनुच्छेद 370 को खत्म करने के बाद से जम्मू और कश्मीर में यह पहला विधानसभा चुनाव है. चुनाव के नतीजे आठ अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे.
जम्मू-कश्मीर का सियासी माहौल एक बार फिर गर्म है. कोई छह साल बाद यहां चुनी हुई सरकार शपथ लेगी. यह अलग बात है कि इस बार जो भी सीएम बनेगा, वह राज्य नहीं, बल्कि केंद्र शासित प्रदेश का सीएम होगा. इस बार जम्मू-कश्मीर का चुनाव बदले माहौल में हो रहा है. 2019 में धारा 370 निरस्त किए जाने के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव है. जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेशों में बांटे जाने के बाद पहली बार चुनाव हो रहा है. लेकिन इन बदली परिस्थितियों के बावजूद सियासत का मूल चेहरा बहुत बदला हुआ नहीं लगता है. सीएम चुनने के लिए जम्मू-कश्मीर में दस साल बाद चुनाव हो रहे हैं, लेकिन एक वक्त वह भी था जब बिना किसी चुनाव के शेख अब्दुल्ला को राज्य का सीएम बना दिया गया था.
वह वक्त था 1975 का. 24 फरवरी, 1975. यही वह तारीख थी जब इंदिरा गांधी और शेख अब्दुल्ला के बीच नई दिल्ली में एक समझौता हुआ था. तब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं और शेख अब्दुल्ला निर्वासित जीवन बिता रहे थे. शेख अब्दुल्ला को सीएम की कुर्सी देना इस समझौते की शर्तों में शामिल था. इस समझौते में इंदिरा गांधी ने आर्टिकल 370 को मान्यता दी थी. इसे जहां भाजपा आज तक मुद्दा बनाती है, वहीं समझौते पर अमल के नतीजों का कांग्रेस को भी बहुत खामियाजा भुगतना पड़ा था.
एक भी विधायक नहीं, फिर भी बन गई थी अब्दुल्ला की सरकार
जब इंदिरा-शेख अब्दुल्ला समझौता हुआ तब सैयद मीर कासिम जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री हुआ करते थे. उन्हें पूरी कैबिनेट समेत इस्तीफा देना पड़ गया था, ताकि शेख अब्दुल्ला की बतौर सीएम ताजपोशी कराई जा सके. शेख अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस का एक भी विधायक नहीं था. कांग्रेस ने अपने दो विधायकों से इस्तीफा दिलवा कर सीटें खाली करवाईं. इन सीटों से शेख अब्दुल्ला और उनके सबसे करीबी मिर्जा अफजल बेग को निर्विरोध जितवा कर विधानसभा भेजा गया.
मिर्जा बेग नेशनल कॉन्फ्रेंस में नंबर दो की हैसियत रखते थे. ‘दिल्ली समझौते’ पर शेख अब्दुल्ला की ओर से उन्होंने ही दस्तखत किए थे. इसलिए उन्हें भी विधायक बनवाया गया. इसी तरह से नेशनल कॉन्फ्रेंस के कुछ नेताओं को विधान परिषद में ‘सेट’ कराया गया, ताकि वे मंत्री बन सकें. कांग्रेस को इसका सिला बस इतना मिला कि उसके कुछ विधायकों को भी शेख साहब ने मंत्री बना दिया.
टूट गई कांग्रेस
मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाए जाने वाले मीर कासिम को भी पार्टी ने निराश नहीं किया. कुछ समय बाद मीर कासिम केंद्र में खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री बना दिए गए और उनकी पंसद के नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद को जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी भी दे दी गई. मीर कासिम के नुकसान की भरपाई तो कर दी गई, लेकिन कांग्रेस पार्टी को इसका जबरदस्त खामियाजा उठाना पड़ा. उनकी पसंद के आदमी (मुफ्ती) को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाने के खिलाफ कुछ नेताओं ने बगावत कर दी और राज्य में कांग्रेस का बंटवारा हो गया.
धरा रह गया संजय गांधी का प्लान
इंदिरा के इस फैसले से कांग्रेस में बनी यह खाई वर्षों तक पाटी नहीं जा सकी. 1980 में संजय गांधी ने इसे पाटने और कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए जम्मू-कश्मीर का सघन दौरा करने की योजना बनाई थी. उनके दौरे की तैयारियां चल ही रही थीं कि 23 जून, 1980 को एक हवाई दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई. ये बातें वर्षों तक कांग्रेस के नेता, जम्मू–कश्मीर के मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री रहे गुलाम नबी आजाद ने अपनी आत्मकथा ‘आजाद’ (रूपा पब्लिकेशंस) में बयां किया है. आजाद ने इस किताब में यह भी बताया है कि वह खुद पहली बार देश की संसदीय राजनीति में किस तरह उतरे थे.
पर्ची पकड़ा कर टिकट बांटने की रवायत
आजाद हैं तो कश्मीर के, लेकिन उन्होंने पहला लोकसभा चुनाव महाराष्ट्र के वाशिम से लड़ा था. उन्हें इसका टिकट मिलने का किस्सा भी दिलचस्प है. आजाद अपनी आत्मकथा में बताते हैं कि 1980 के चुनाव के लिए टिकट बंटने लगा था. जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस के खाते में केवल एक सीट आई थी. जम्मू की सीट. बाकी सभी पांच सीटें नेशनल कॉन्फ्रेंस के खाते में गई थीं.
बकौल आजाद, इंदिरा का मानना था कि इस एकतरफा समझौते का फायदा कांग्रेस को इस रूप में होगा कि देश भर में मुसलमानों के बीच इसका संदेश कांग्रेस के पक्ष में जाएगा. कांग्रेस ने गिरधारी लाल डोगरा (दिवंगत भाजपा नेता अरुण जेटली के श्वसुर) को जम्मू से उम्मीदवार बनाया था. गुलाम नबी आजाद को अपने लिए टिकट की कोई उम्मीद तो थी नहीं, लेकिन टिकट बंटवारे के आखिरी दिन उन्हें एक पर्ची पकड़ाई गई. उन्हें उस कमरे में बुलाया गया था, जहां कांग्रेस संसदीय बोर्ड की बैठक चल रही थी.
आजाद कमरे में पहुंचे तो इंदिरा गांधी ने एक और पर्ची उन्हें पकड़ा दी और कहा- आप अपने लिए कोई एक सीट चुन लीजिए. पर्ची में तीन सीटों के नाम थे. आजाद को अपने लिए महाराष्ट्र की वाशिम सीट सबसे सुविधाजनक लगी. उन्होंने उसे चुन लिया. मीर कासिम ने आपत्ति जताने की कोशिश की, लेकिन इंदिरा गांधी ने उन्हें चुप करा दिया. इस तरह आजाद जिंदगी का पहला लोकसभा चुनाव महाराष्ट्र से लड़े और जीते भी. इस जीत के कुछ समय बाद ही (1982 में) वह केंद्र में मंत्री भी बन गए.
जब जम्मू-कांग्रेस में कांग्रेस को नहीं मिल रहे थे उम्मीदवार
2002 के जम्मू-कश्मीर चुनाव में कांग्रेस की हालत यह थी कि उसके पास ढंग के उम्मीदवार नहीं थे. मुफ्ती मोहम्मद सईद ने तीन बार में कांग्रेस के 90 फीसदी नेताओं और कार्यकर्ताओं को तोड़ कर अपने खेमे में कर लिया था. चुनाव से छह महीने पहले गुलाम नबी आजाद को सोनिया गांधी ने प्रदेश अध्यक्ष बना कर जम्मू–कश्मीर भेजा था. आजाद ने उम्मीदवार नहीं मिलने पर बड़ी संख्या में उन निर्दलीयों को समर्थन देने की रणनीति बनाई, जिनके जीतने की संभावना थी. चुनाव के बाद उन्होंने उनका समर्थन हासिल किया. चुनाव में कांग्रेस दूसरे नंबर की पार्टी रही. सबसे बड़ी पार्टी (नेशनल कॉन्फ्रेंस) ने जब सरकार नहीं बनाने का फैसला कर लिया तब आजाद ने अन्य पार्टियों व निर्दलीयों के समर्थन से कांग्रेस की सरकार बनवाई और वह खुद सीएम बने.
2024 का यह चुनाव और गुलाम नबी आजाद
गुलाम नबी आजाद ने 2022 में अपनी अलग पार्टी डेमोक्रैटिक प्रॉग्रेसिव आजाद पार्टी (डीपीएपी) बनाई. हालांकि, जम्मू-कश्मीर में तेजी से बदलते राजनीतिक हालात में वह अभी तक अपनी पार्टी के लिए कोई मुकाम नहीं बना सके हैं. मौजूदा विधानसभा चुनाव से पहले हुए लोकसभा चुनाव में ऊधमपुर और अनंतनाग-राजौरी में डीपीएपी उम्मीदवार की जमातन जब्त हो गई थी. विधानसभा चुनाव में भी वह बहुत जोर-शोर से नहीं उतरे हैं. कई लोगों की नजर में उनकी पार्टी बीजेपी के करीब है और इसका उन्हें खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. इस सोच से नुकसान के डर से कुछ नेताओं ने डीपीएपी छोड़ कर निर्दलीय चुनाव लड़ने तक का फैसला कर लिया. आजाद ने 90 में से 22 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं. 12 जम्मू में और 10 कश्मीर में. एक बार फिर गुलाम नबी आजाद के दो साल पुराने राजनीतिक फैसले की परीक्षा हो रही है, जिसका परिणाम आठ अक्तूबर को सामने आ जाएगा.
Tags: Indira Gandhi, Jammu kashmir, Jammu kashmir election 2024FIRST PUBLISHED : September 30, 2024, 17:03 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed