शिवसेना में 1995 का टीडीपी विद्रोह क्या एनटी रामाराव की तरह उद्धव भी होंगे सत्ता से बेदखल

Shivsena Political Crisis: महाराष्ट्र में जारी सियासी संकट के बीच सीएम उद्धव ठाकरे की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही है. पार्टी विधायकों की इस बगावत की तुलना अब साल 1995 में हुई तेलगु देशम पार्टी में हुए विद्रोह से की जाने लगी है. उस वक्त एनटी रामाराव को ना सिर्फ अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी थी बल्कि उनका राजनीतिक जीवन भी खत्म हो गया था. अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या उद्धव ठाकरे का भी यही हाल होगा?

शिवसेना में 1995 का टीडीपी विद्रोह क्या एनटी रामाराव की तरह उद्धव भी होंगे सत्ता से बेदखल
संतोष चौबे नई दिल्ली: महाराष्ट्र में सीएम उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) और उनकी पार्टी शिवसेना ऐसे गंभीर राजनीतिक हालातों का सामना कर रही है जिसे साल 1995 में एनटी रामाराव की तेलगु देशम पार्टी ने किया था. उस वक्त एनटी रामाराव को ना सिर्फ अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी थी बल्कि उनका राजनीतिक जीवन भी खत्म हो गया था. अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या उद्धव ठाकरे का भी यही हाल होगा? क्यों हुआ विवाद? हालांकि टीडीपी के मामले में पार्टी के लगभग सभी विधायक एनटी रामाराव को उनकी दूसरी पत्नी एन लक्ष्मी पार्वती के हाथों पार्टी की कमान देने के खिलाफ थे. इसके लिए पार्वती को उनके आलोचकों ने मौखिक रूप से गाली दी थी. आलोचकों ने आरोप लगाया कि उन्होंने एनटीआर को शादी करने के लिए बरगलाया. लेकिन एनटीआर के लिए पार्वती उनका लकी चार्म थीं. वह उनसे शादी करने के बाद रिकॉर्ड बहुमत के साथ सत्ता के गलियारों में लौटे. वहीं शिवसेना के मामले में बागी विधायकों का दावा है कि उनकी हिंदुत्व-आधारित पार्टी को एनसीपी और कांग्रेस के साथ एक अव्यवहारिक गठबंधन के लिए मजबूर किया गया है और उन्होंने से महा विकास अघाड़ी गठबंधन को तोड़ने की मांग की है. क्योंकि हिंदुत्व शिवसेना विधायकों का मुख्य मुद्दा और वोट बैंक है और वे अगले चुनावों में एक बेहतर हिंदुत्व बल, भाजपा का सामना नहीं करना चाहेंगे. बागी विधायक चाहते हैं कि शिवसेना बीजेपी के साथ फिर से जुड़ जाए. एनटीआर के दामाद एन चंद्रबाबू नायडू भी सरकार में वित्त और राजस्व मंत्री थे. इस राजनीतिक उथल-पुथल के दौरान नायडू और एनटीआर के अन्य दामाद, दग्गुबाती वेंकटेश्वर राव, और दो बेटों, नंदामुरी हरिकृष्ण और बालकृष्ण ने उन्हें गद्दी से हटाने के लिए एक साथ काम किया. राजनीतिक रूप से अनुभवहीन एन लक्ष्मी पार्वती द्वारा पार्टी को नियंत्रित करने के फैसले से टीडीपी विधायक खुश नहीं थे और उन्हें नजरअंदाज किया. इस मुद्दे पर चंद्रबाबू नायडू ने एनटीआर के साथ बहस की. लेकिन एनटीआर ने उनकी या पार्वती की आलोचना करने वाले को सुनने से इनकार कर दिया. नायडू ने कहा कि एनटीआर के खिलाफ विद्रोह ही राजनीतिक उथल-पुथल से बाहर निकलने का एकमात्र तरीका है, ताकि पार्टी को बुरी ताकत से बचाया जा सके. शिवसेना के मामले में महाराष्ट्र के पीडब्ल्यूडी और शहरी विकास मंत्री एकनाथ शिंदे और कभी उद्धव ठाकरे के करीबी सहयोगी, विद्रोही खेमे का नेतृत्व कर रहे हैं. शिवसेना विधायकों की आम शिकायत यह है कि उद्धव पूरी तरह से दुर्गम हो गए हैं. वे कहते हैं, ”आप सीएम के बंगले पर घंटों इंतजार करते हैं, लेकिन आपको उनसे मिलने का समय नहीं दिया जाएगा.” यहां तक ​​कि उद्धव के कैबिनेट मंत्रियों को भी उनसे मिलने या उनसे संपर्क करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा. एकनाथ शिंदे का कहना है कि पार्टी को बालासाहेब ठाकरे के आदर्शों पर वापस ले जाने के लिए अब विद्रोह ही एकमात्र रास्ता है जिसे वर्तमान नेतृत्व भूल गया है. संख्या बल का खेल 1994 के आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनावों में एनटीआर की अगुवाई में टीडीपी ने 294 सीटों में से 216 सीटें जीतीं. लेकिन राजनीतिक विद्रोह के दौरान लगभग 200 विधायक बागी खेमे में चले गए थे. शिवसेना में बगावत 20 जून को शुरू हुई. जब एकनाथ ने शिंदे ने दावा किया कि उन्हें शिवसेना के 11 विधायकों का समर्थन हासिल है, हालांकि अब यह संख्या 50 से ज्यादा हो गई है. इसका मतलब है कि शिंदे के दावों के मुताबिक, शिवसेना के 55 विधायकों में से 75 फीसदी से ज्यादा ने उद्धव के खिलाफ बगावत कर दी है. टीडीपी के राजनीतिक विवाद का नतीजा नायडू के अनुसार 1995 में टीडीपी विद्रोह का मुख्य उद्देश्य नेतृत्व परिवर्तन और एक नई सरकार का गठन था. इस बगावत में एनटीआर के खिलाफ 92 फीसदी विधायकों के साथ-साथ उनके कुछ रिश्तेदार भी शामिल थे. यह सियासी विद्रोह 23 अगस्त 1995 को शुरू हुआ. इस दौरान बागी विधायकों को होटल वायसराय में ठहराया गया था और बाद में इनकी संख्या बढ़ती गई. विद्रोही समूह ने नायडू को चुनकर एनटीआर को तेलुगु देशम विधायक दल (टीडीएलपी) के नेता के पद से हटा दिया. अगला चरण एनटीआर को सत्ता से हटाना और नायडू को अविभाजित आंध्र का मुख्यमंत्री बनाना था. 25 अगस्त 1995 को एनटीआर ने नायडू सहित पांच मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया, नए चुनावों के लिए विधानसभा को भंग करने का प्रस्ताव पारित किया, और कैबिनेट प्रस्तावों को सौंपने के लिए राज्यपाल से संपर्क किया। लेकिन एनटीआर के राजभवन पहुंचने तक राज्यपाल के पास विद्रोही टीडीएलपी का प्रस्ताव पहले से ही था. 27 अगस्त 1995 को राज्यपाल ने एनटीआर को 31 अगस्त तक बहुमत साबित करने के लिए कहा था. 30 अगस्त, 1995 को, एनटीआर को बर्खास्त कर दिया गया और नायडू को टीडीपी राज्य कार्यकारी समिति द्वारा पार्टी प्रमुख के रूप में चुना गया. एनटीआर ने 31 अगस्त, 1995 को विश्वास मत से पहले इस्तीफा दे दिया. नायडू ने 1 सितंबर, 1995 को शपथ ली. शिवसेना के सियासी संकट के परिणामों का इंतजार एकनाथ शिंदे शिवसेना के विधायक दल के नेता थे. उन्हें 21 जून, 2022 को बर्खास्त कर दिया गया. 22 जून को पार्टी ने बागी विधायकों को सीएम आवास पर शाम 5 बजे तक पार्टी की बैठक में शामिल होने का अल्टीमेटम दिया. शिंदे ने पलटवार करते हुए कहा कि यह आदेश कानूनी रूप से मान्य नहीं है क्योंकि उनके पक्ष में शिवसेना के 34 विधायकों के हस्ताक्षर हैं. शिंदे ने विधायकों की संख्या बल के आधार पर खुद के दल को असली शिवसेना बताया. उद्धव ने बागी शिवसेना विधायकों से भावुक अपील की लेकिन उनकी मुख्य मांग – एमवीए गठबंधन से बाहर आने पर चुप्पी साधे रखी. उन्होंने राकांपा के शरद पवार और कांग्रेस की ओर से सोनिया गांधी की प्रशंसा की और इस सियासी को लेकर बिना नाम लिए भाजपा को जिम्मेदार ठहराया. उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री का आधिकारिक आवास भी छोड़ दिया और शिवसेना के किसी अन्य नेता को सीएम की कुर्सी देने की पेशकश कर दी. शिंदे खेमे ने अब 50 से अधिक विधायकों के साथ शिवसेना के चुनाव चिन्ह ‘धनुष और तीर’ पर दावा करने का फैसला किया है. टीडीपी के मामले में राजनीतिक उथल-पुथल खत्म होने में 9 दिन लग गए. फिलहाल शिवसेना में जारी सियासी संकट को शुक्रवार को पांच दिन हो गए हैं. अब देखना होगा कि आने वाले 4 दिनों में यह संकट क्या मोड़ लेगा. ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी | Tags: CM Uddhav Thackeray, Shivsena, Trending newsFIRST PUBLISHED : June 24, 2022, 18:01 IST