नसरल्लाह की मौत पर छाती पीट रहे बांग्लादेशी हिंदुओं पर हिंसा पर भी बोलते
नसरल्लाह की मौत पर छाती पीट रहे बांग्लादेशी हिंदुओं पर हिंसा पर भी बोलते
नरसल्लाह की मौत पर मातम मनाने से कुछ हासिल नहीं होना है. हां, समुदाय विशेष के इस व्यवहार से धार्मिक सद्भाव की बात करने वाले हिंदुओं की आवाज धीमी पड़ सकती है.
नसरल्लाह के मारे जाने पर मातम मनाने वाले बांग्लादेश में हिंदुओं पर हिंसा के मसले पर चुप क्यों थे. आखिर उन लोगों ने बांग्लादेश में हो रही घटनाओं पर सवाल क्यों नहीं उठाया. भले ही राजनीतिक दल भी इसी तरह के सवाल खड़े रहे हों, लेकिन इसका जवाब खोजना होगा. दरअसल, जब तक इस तरह के सवाल खड़े होते रहेंगे तब तक भारत में मजहबी अमन की दुआ करने वालों की आवाज सांप्रदायिक ताकत के नैरिटिव में गुम हो जाएगी. देश में धार्मिक सद्भाव चाहने वाले हिंदुओं की संख्या अच्छी भली है. लेकिन उनकी आवाज की वैधता पर सवाल तभी खड़े होते हैं.
भारत हमेशा से दूसरे धर्मों का आदर करने वाला देश है. कहीं भी विस्तारवादी नीतियां दिखती हैं तो उसके विरोध में खड़ा होना इसकी रीति-नीति रही है. इसी के तहत शुरु से ही भारत ने सभी के साथ अच्छे संबंध कायम किए. जब कभी भी पूंजीवादी शक्तियों ने धर्म के आधार पर विस्तार करने की कोशिश की भारत उसके विरोध में खड़ा हुआ. यही वजह है कि मुस्लिम जगत भारत को अपना हितैसी मानता रहा है. यहां तक कि जब पाकिस्तान के साथ भारत की लड़ाई हो रही थी तब भी ईराक ने भारत को मदद देने में गुरेज नहीं किया.
पहले जैसे हालत नहीं रहे
आज का दौर कुछ बदला हुआ है. सभी मुस्लिम देश विस्तारवादियों का उस तरह शिकार नहीं बन रहे हैं जैसा आज से 25-50 साल पहले हो रहा था. अब बहुत से मुस्लिम संगठनों ने हिंसा का रास्ता अख्तियार कर लिया है. हिंसा का कभी भारत समर्थक नहीं रहा है. चाहें वो देश में हो या देश बाहर. लेकिन हिजब्बुल्लाह चीफ नसरल्लाह के मारे जाने पर देश के कुछ हिस्सों में मातम किया जा रहा है. इस तरह की खबरें और वीडियो कश्मीर से लेकर लखनऊ और तमाम जगहों से आ रही हैं. खासतौर से कश्मीर की बात की जाय तो वहां इसका ज्यादा ही असर दिख रहा है. लेकिन ये भारत की राह नहीं है.
हिंसा का समर्थन !
हिंसा और आतंक की राह पर चल रहे किसी व्यक्ति के मारे जाने पर सार्वजनिक शोक जताने से ऐसा लगता है कि शोक जताने वाले उसके रास्ते का भी समर्थन करते हैं. इससे बचना जरूरी है. ये समझना जरूरी है कि नजरुल्लाह भारत के किसी व्यक्ति या समुदाय के हित के लिए कोई संघर्ष नहीं कर रहा था. उसकी लड़ाई राजनीतिक लड़ाई ही थी. इसमें हमेशा से भारत ने शांति कायम रखने की ही बात की. कभी खुल कर इस्राइल की तरफदारी नहीं की है. हां, मुल्क के तौर पर भारत के जितने हित इस्राइल से जुड़े हैं उतने के लिए भारत उससे भी ताल्लुक रखता है. ये सलीका विदेशी कूटनीति का है. इस पर भारत को कायम रहना होगा.
भारत की नीतियां सबके सामने हैं
दुनिया को पता है कि जब भी किसी मुल्क को ताकत के बल पर दबाने की कोशिश की गई भारत ने उसका विरोध किया है. यही नहीं जरुरत पड़ने पर सैनिक सहायता भी मुहैया कराई है. इसके एक के बाद एक कई उदाहरण मिल जाएंगे. अभी भी ये नहीं कहा जा सकता कि भारत ने किसी देश की आवाम का मजहब देख कर उसकी मदद की हो. भारत जितनी मदद नेपाल की करता है उससे ज्यादा मदद अफगानिस्तान और बांग्लादेश की भी करता है.
बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार के सुबूत भी थे
फिर भी बांग्लादेश में इन दिनों लगातार हिंदुओं पर अत्याचार की खबरे आई. वीडियो भी दिखे. फिर भी भारत सरकार ने राजनीतिक स्तर पर किसी तरह की दखलंदाजी की पहल नहीं की. जबकि दुनिया में इन दिनों जिस तरह का शक्ति संतुलन बना हुआ है उसमें भारत की स्थिति काफी मजबूत है. इसे पाकिस्तान के मामले में आजमाया भी जा चुका है. लेकिन बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार के विरोध के सुर सिर्फ हिंदुवादी पार्टियों की ओर से ही उठे. किसी गैरहिंदू संगठन या पार्टी ने वहां हो रहे अत्याचार का जुबानी विरोध भी नहीं जताया. ऊपर से वहां की सरकार के मुखिया ने ये बयान दे दिया कि बांग्लादेश के हिंदू शेख हसीना का समर्थन कर रहे थे, इस कारण बांग्लादेशी मुस्लमान उनसे लड़ रहे हैं.
बहरहाल, दौर के बदलाव को समझते हुए कश्मीर समेत देश के तमाम धार्मिक समूहों को ध्यान रखना चाहिए कि देश का माहौल किसी विदेशी घटना को लेकर खराब न हो. किसी और देश में सरकार से लड़ते हुए किसी व्यक्ति या संगठन का खात्मा होने का असर भारत के अमन पर नहीं पड़ना चाहिए.
Tags: Islam religion, Jammu kashmirFIRST PUBLISHED : September 30, 2024, 13:24 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed