Pithoragarh: जानें क्यों बेहद खास होती है पहाड़ों की रामलीला पिथौरागढ़ में शुरू हुई तालीम
Pithoragarh: जानें क्यों बेहद खास होती है पहाड़ों की रामलीला पिथौरागढ़ में शुरू हुई तालीम
पिथौरागढ़ से लगे कई ग्रामीण इलाकों में दशहरा के बाद भी रामलीला का मंचन जारी रहता है, जो यहां पहाड़ों में रामलीला की लोकप्रियता को दर्शाता है. रामायण की घटनाओं को हारमोनियम, तबले आदि की धुन पर गायन के साथ अभिनय किया जाता है.
रिपोर्ट- हिमांशु जोशी
पिथौरागढ़. उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों की जनता को काफी बेसब्री से रामलीला मंचन का इंतजार रहता है. रामलीला के कलाकारों को तैयारी के लिए करीब डेढ़ महीने से ज्यादा का समय दिया जाता है, जिसे तालीम कहते हैं. पिथौरागढ़ में रामलीला की तालीम शुरू हो चुकी है. पहाड़ों की रामलीला इसलिए खास है क्योंकि यहां सिर्फ अभिनय ही नहीं बल्कि राग-ताल पर भी ध्यान देना होता है. यहां रामलीला मंचन में संवाद गाने के रूप में किया जाता है, जिसमें निपुण होने के लिए कलाकार काफी मेहनत करते हैं. पिथौरागढ़ में टकाना की रामलीला में तालीम की शुरुआत करते हुए रामलीला कमेटी के सचिव मोहन लाल वर्मा ने इस साल के मंचन के बारे में जानकारी दी है.
कुमाऊं में रामलीला की शुरुआत अल्मोड़ा जिले से मानी जाती है. इतिहासकार राजेश मोहन उप्रेती बताते हैं कि पिथौरागढ़ में रामलीला की शुरुआत 1887 में डिप्टी कलेक्टर देवीदत्त मकड़ियां के प्रयासों से शुरू हुई. पिथौरागढ़ शहर में दो जगह रामलीला का मंचन होता है, एक नगरपालिका के पास रामलीला मैदान में और दूसरा टकाना में.
पिथौरागढ़ से लगे कई ग्रामीण इलाकों में दशहरा के बाद भी रामलीला का मंचन जारी रहता है, जो यहां पहाड़ों में रामलीला की लोकप्रियता को दर्शाता है. रामायण की घटनाओं को हारमोनियम, तबले आदि की धुन पर गायन के साथ अभिनय किया जाता है. पिथौरागढ़ में होने वाली रामलीला का मंचन इसको अन्य जगहों से अलग बनाता है, जिसका अपना एक महत्व रहा है.
कलाकारों के चयन के बाद उन्हें गायन के साथ अभिनय के लिए तैयार किया जाता है. परशुराम का किरदार निभाने वाले और टकाना रामलीला के सदस्य यशवंत महर ने यहां रामलील के महत्व को बताया है. उन्होंने कहा कि पहाड़ों में होने वाली रामलीला जैसा मंचन शायद ही कहीं होता हो. यहां रामायण से जुड़ी हर बारीकी पर ध्यान देते हुए रामलीला का मंचन किया जाता है.
गौरतलब है कि तमाम उतार-चढ़ाव के बीच पहाड़ों में रामलीला मंचन ने चीड़ के छिलकों की रोशनी से लेकर अत्याधुनिक LED बल्बों की रोशनी तक का सफर तय किया है. नगर की रामलीला मंचन सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल रही है. कुमाऊंनी रामलीला में इसका सशक्त संगीत पक्ष इसकी मूलभूत विशेषताओं में से एक है. यहां की रामलीला में बिहाग, जोगिया, पीलू, भैरवी, कामोद, खम्माज, सोहनी, देश, जैजैवन्ती, मालकौस आदि रागों पर निबद्ध गीत कुमाऊंनी रामलीला की एक और विशेषता है. इसमें पात्रों के हाव-भाव, वेशभूषा, रंगों की साज-सज्जा और संगीतमय शैली में राग-रागनियों से समृद्ध संवाद विशेष आकर्षण का बिंदु है.
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Tags: Pithoragarh district, Pithoragarh hindi newsFIRST PUBLISHED : August 01, 2022, 11:12 IST