Pithoragarh: क्या गुम हो जाएगी पहाड़ों में शुद्ध पेयजल के लिए बनी भूमिगत जल संरक्षण की सबसे पुरानी तकनीक
Pithoragarh: क्या गुम हो जाएगी पहाड़ों में शुद्ध पेयजल के लिए बनी भूमिगत जल संरक्षण की सबसे पुरानी तकनीक
पिथौरागढ़ शहर के नौले उपेक्षित होते गए और आज हालात यह है कि शहर के अधिकांश नौलों का पानी अब पीने योग्य नहीं रह गया है. हालांकि उत्तराखंड में विवाह और अन्य विशेष अवसरों पर नौलों-धारों में जल पूजन की भी समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा दिखाई देती है, जो एक तरह से मानव जीवन में जल के महत्व को बताती है.
रिपोर्ट- हिमांशु जोशी
पिथौरागढ़. उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में सदियों से लोग पीने के पानी के लिए नौलों का उपयोग करते आए हैं. नौले पहाड़ों में भूमिगत जल स्रोतों के संरक्षण की एक बहुत पुरानी परंपरा है, जिसे विशेष आकार और तकनीक से बनाया जाता था. वहीं, पहाड़ी सभ्यता के लोग इन नौले में एकत्रित शुद्ध जल को पीने के पानी के रूप में उपयोग करते थे, जिस पर पूरे गांव की आबादी निर्भर रहती थी. हर गांव का अपना एक नौला होता था, जिसके संरक्षण का जिम्मा भी गांव के लोगों पर ही रहता था. उस समय पर पहाड़ों पर नौले और धारे ही पीने के पानी के मुख्य साधन हुआ करते थे. आज भी ग्रामीण क्षेत्रों के लोग पीने के पानी के लिए इन नौलों पर ही निर्भर हैं. एक तरफ जहां ग्रामीण क्षेत्रों में यह नौले आज भी संरक्षित किए हुए हैं, तो वहीं पिथौरागढ़ शहर में बढ़ती आबादी और शहरीकरण से नौलों का पानी प्रदूषित हो गया है. स्थानीय लोगों ने इस विषय पर चिंता जाहिर की है.
अब घर-घर नल से पानी की आपूर्ति की सुविधा होने के बाद शुद्ध पानी इकट्ठा करने के मकसद से पहाड़ों में परम्परागत तकनीक से बने नौले के पानी का उपयोग घटता गया, जिससे पिथौरागढ़ शहर के नौले उपेक्षित होते गए और आज हालात यह है कि शहर के अधिकांश नौलों का पानी अब पीने योग्य नहीं रह गया है. शहर बढ़ते गए और भूमिगत जल स्रोत दूषित होते गए. आज अधिकांश नौलों की स्थिति यह है कि पीना तो दूर, कपड़े धोने के लायक भी पानी नहीं बचा है.
जल संकट से राहत देने वाले नौलों को संरक्षित करने की जरूरत है, जिससे भविष्य में भी आने वाली पीढ़ी भी नौले का शुद्ध पानी पी सके. नगरपालिका के ईओ दीपक गोस्वामी से जब इस विषय पर बात की गई, तो उन्होंने नौलों के संरक्षण के लिए एस्टीमेट तैयार करने की बात कही है. उन्होंने कहा कि जल्द ही शहर के नौलों का जीर्णोद्धार किया जाएगा.
उत्तराखंड में नौलों और धारों का ऐतिहासिक व सांस्कृतिक दृष्टि से भी काफी महत्व है. यहां पर पहाड़ी इलाकों में कई नौले बेहद प्राचीन हैं. उत्तराखंड में विवाह और अन्य विशेष अवसरों पर नौलों-धारों में जल पूजन की भी समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा दिखाई देती है, जो एक तरह से मानव जीवन में जल के महत्व को बताती है. जरूरत है तो इन नौलों के संरक्षण की जिससे पर्यावरण का सतत विकास तो होगा ही, साथ ही सांस्कृतिक विरासत के तौर पर हिमालय की यह पुरातन परंपरा फिर से जीवित हो सकेगी.
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Tags: Pithoragarh district, Pithoragarh hindi news, Water CrisisFIRST PUBLISHED : July 15, 2022, 13:05 IST