Muharram 2022: शहादत की कहानी बयां करता है मुहर्रम जानिए कर्बला के मैदान-ए-जंग का किस्सा
Muharram 2022: शहादत की कहानी बयां करता है मुहर्रम जानिए कर्बला के मैदान-ए-जंग का किस्सा
Muharram 2022: मुहर्रम के महीने में ही इराक के शहर कर्बला में पैगम्बर मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन को उनके बच्चों और दोस्तों समेत शहीद कर दिया गया था. उन्हीं की याद में मुहर्रम मनाया जाता है.
हाइलाइट्सकर्बला में हुई जंग के दौरान इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत की याद में मुहर्रम मनाया जाता है. शिया समुदाय के लोग काले लिबास पहनकर मातम करते हुए ताजिया निकालते हैं और शोक मनाते हैं.ईद-उल-अजहा के ठीक 20 दिन बाद मुहर्रम महीना शुरू हो जाता है.
हिना आज़मी
देहरादून. इस्लामिक साल यानी हिजरी का पहला महीना मुहर्रम (Muharram 2022) है. इस्लामिक समुदाय के लिए यह महीना रमजान की तरह ही पवित्र है. यूं तो हर त्योहार खुशी और उत्साह का प्रतीक होता है, लेकिन मुहर्रम एक ऐसा त्योहार है, जो शोक मनाने के लिए मनाया जाता है. शिया धर्मगुरु मौलाना सय्यद राहिब हसन जैदी ने जानकारी दी कि मुहर्रम के महीने में ही इराक के शहर कर्बला में पैगम्बर मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन को उनके बच्चों और दोस्तों समेत शहीद कर दिया गया था. उन्हीं की याद में मुहर्रम मनाया जाता है.
बता दें कि ईद-उल-अजहा के ठीक 20 दिन बाद मुहर्रम महीना शुरू हो जाता है. जबकि मुहर्रम की 10वीं तारीख को सभी शिया मुस्लिम समुदाय ताजिया उठाकर इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हैं.
जानें क्यों हुई थी कर्बला की लड़ाई?
कर्बला की लड़ाई मानव इतिहास की एक अहम घटना है. यह सिर्फ एक जंग ही नहीं बल्कि जिन्दगी के सभी पहलुओं की मार्गदर्शक भी रही है. इस जंग की बुनियाद तो हजरत मुहम्मद मुस्तफा के निधन के बाद रखी जा चुकी थी, जब इमाम अली का खलीफा बनना कुछ लोगों को पसंद नहीं था, तो कई जंग हुईं. अली को शहीद कर दिया गया, तो उनके बाद उनके उत्तराधिकारी यानी उनके बेटे इमाम हसन खलीफा बने. उनको भी शहीद कर दिया गया.
उस समय दुष्ट और अत्यचारी यजीद जबरन गद्दी हथिया कर शासक बना और जनता पर जुल्म करने लगा. वह अपनी हुकूमत में गैर-इस्लामिक काम किया करता था. यजीद चाहता था कि हुसैन उसके साथ हो जाएं. वह जानता था अगर हुसैन उसके साथ आ गए तो सारा इस्लाम उसकी मुट्ठी में आ जाएगा. लाख कोशिशों के बावजूद भी हुसैन ने उसकी किसी भी बात को नहीं माना.
इमाम हुसैन को हो गया था ये इल्म
यजीद ने हुसैन को रोकने की योजना बनाई. चार मई, 680 ई. में इमाम हुसैन मदीने में अपना घर छोड़कर शहर मक्का पहुंचे, जहां वह हज करना चाहते थे लेकिन उन्हें यह इल्म हो गया था कि दुश्मन हाजियों के भेश में आकर उनका कत्ल कर सकते हैं. हुसैन यह कभी नहीं चाहते थे कि काबा जैसी पवित्र जगह पर खून खराबा हो, इसलिए इमाम हुसैन ने हज का इरादा बदल दिया और वह शहर कूफे की ओर चल पड़े. अचानक रास्ते में दुश्मनों की फौज उन्हें घेर कर कर्बला ले आई, जिसके लश्कर के कमांडर जनाब हुर थे.
रास्ते में हुर के लश्कर वालों का पानी खत्म हो गया और सब प्यास से बदहवास होने लगे, तो इमाम हुसैन ने अपने पास से दुश्मनों के लश्कर ही नहीं बल्कि उनके जानवरों तक को पानी पिलाया. इसी इंसानियत को देख जनाब हुर इमाम हुसैन से मोहब्बत करने लगे और कर्बला के युद्ध में सबसे पहले इमाम हुसैन की तरफ से अपनी कुर्बानी दी.
इमाम हुसैन ने कर्बला में जिस जमीन पर अपने खेमे (तम्बू) लगाए, उस जमीन को पहले उन्होंने ही खरीदा. यजीद अपने सरदारों को भेजकर लगातार इमाम हुसैन पर दबाव बना रहा था ताकि हुसैन उसकी बात मान लें. जब इमाम हुसैन ने यजीद की शर्तें मानने से इनकार कर दिया, तो दुश्मनों ने अंत में हुसैन के खेमों में पानी जाने पर रोक लगा दी.
तीन रोज गुजर जाने के बाद जब इमाम के परिवार के बच्चे प्यास से तड़पने लगे, तो हुसैन ने यजीदी फौज से पानी मांगा, दुश्मन ने पानी देने से इंकार कर दिया. दुश्मनों ने सोचा इमाम हुसैन प्यास से टूट जाएंगे और हमारी सारी शर्तें मान लेंगे. जब हुसैन तीन दिन की प्यास के बाद भी यजीद की बात नहीं माने, तो दुश्मनों ने हुसैन के खेमों पर हमले शुरू कर दिए. इसके बाद इमाम हुसैन ने दुश्मनों से एक रात का समय मांगा और उस पूरी रात इमाम हुसैन और उनके परिवार ने अल्लाह की इबादत की और दुआ मांगते रहे कि मेरा परिवार, मेरे दोस्त चाहे शहीद हो जाए, लेकिन अल्लाह का दीन ‘इस्लाम’, जो नाना (मोहम्मद) लेकर आए थे, वह बचा रहे.
10 अक्टूबर, 680 ई. को सुबह नमाज के समय से ही जंग छिड़ गई. इसे जंग कहना ठीक न होगा, क्योंकि एक ओर लाखों की फौज थी, दूसरी तरफ 72 सदस्यों का परिवार और उनमें कुछ पुरुष थे. इमाम हुसैन के साथ महज 75 या 80 आदमी थे, जिसमें 6 महीने से लेकर 13 साल तक के बच्चे भी शामिल थे. इस्लाम की बुनियाद को बचाने में कर्बला में 72 लोग शहीद हो गए, जिनमें दुश्मनों ने 6 महीने के बच्चे अली असगर के गले पर तीन नोक वाला तीर मारा. 13 साल के बच्चे हजरत कासिम को जिन्दा रहते घोड़ों की टापों से रौंद डलवाया और सात साल आठ महीने के बच्चे औन-मोहम्मद के सिर पर तलवार से वार कर शहीद कर दिया था.
अजादारा यानी शिया मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखने वाली तरन्नुम ने बताया कि कर्बला में हुई जंग के दौरान इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत की याद में मुहर्रम मनाया जाता है. मुहर्रम के दिनों में शिया समुदाय के लोग काले लिबास पहनकर मातम करते हुए ताजिया निकालते हैं और शोक मनाते हैं.
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Tags: Dehradun news, Muharram, Muharram ProcessionFIRST PUBLISHED : August 05, 2022, 12:04 IST