दिवाली पर युद्ध! गुजरात के गांव में इन्गोरिया के साथ मचता है धमाल

Diwali News: गुजरात के सावर्कुंडला में हर साल दिवाली पर इन्गोरिया युद्ध खेला जाता है. यह परंपरा पिछले छह दशकों से चल रही है, जहां लोग पटाखों के साथ एक-दूसरे पर इन्गोरिया फेंकते हैं, यह उत्सव सामूहिकता का प्रतीक है.

दिवाली पर युद्ध! गुजरात के गांव में इन्गोरिया के साथ मचता है धमाल
देशभर में दीपावली का पर्व पटाखे फोड़कर मनाया जाता है. लेकिन, आपको जानकर हैरानी होगी कि गुजरात के एक गांव में हर साल दिवाली के दिन युद्ध खेला जाता है. यह युद्ध पिछले छह दशकों से चल रहा है. गुजरात के सौराष्ट्र के अमरेली जिले के सावर्कुंडला में दिवाली के दिन इन्गोरिया युद्ध होता है. सावर्कुंडला शहर के बीच से नावलि नदी बहती है, जो शहर को दो हिस्सों में बांटती है. मास और इजराइल के बीच जो युद्ध हो रहा है, वैसी ही तस्वीरें सावर्कुंडला शहर में दिवाली की रात दिखाई देती हैं. इन्गोरिया युद्ध की परंपरा सावर और कुंडला के बीच दिवाली के दिन इन्गोरिया युद्ध की परंपरा है. सावर्कुंडला शहर में इन्गोरिया युद्ध खेलने की परंपरा वर्षों पुरानी है. इसमें हाथ में जैसे कोई फल हो, ऐसा इन्गोरिया नाम का पटाखा एक-दूसरे पर फेंका जाता है और जैसे रणभूमि का मैदान हो, वैसे सावर्कुंडला शहर की गलियों में इन्गोरिया युद्ध खेला जाता है. रात के अंधेरे में यह युद्ध होता है. प्रकाश के पर्व पर रात के देवळा गेट से लेकर नावलि नदी तक इन्गोरिया युद्ध का माहौल बनता है. खिलाड़ी इस खेल का खुलकर आनंद लेते हैं. दूसरी ओर, इस युद्ध को देखने के लिए बड़ी संख्या में गांव के लोग भी इकट्ठा होते हैं. विशेष रूप से इन्गोरिया युद्ध का मजा महत्वपूर्ण बात यह है कि इन्गोरिया युद्ध का मजा लेने के लिए विधायक महेश कसवाला और मानव मंदिर के संत भक्तिभापू भी इन्गोरिया पटाखे फोड़ चुके थे और इन्गोरिया का आनंद लिया था. यह इन्गोरिया युद्ध सावर्कुंडला की पहचान बन चुका है और जातिवाद के बिना हिंदू और मुसलमान मिलकर इस इन्गोरिया युद्ध का आयोजन कर रहे हैं, यह विधायक कसवाला ने बताया. दूसरी ओर, इस युद्ध के दौरान पुलिस, फायर, और डॉक्टरों की टीम भी तैनात की जाती है. इन्गोरिया की तैयारी इस इन्गोरिया का पेड़ लगभग आठ से दस फीट का होता है. इसके चीकू जैसे फल को इन्गोरिया कहा जाता है. दिवाली से एक महीने पहले युवा ग्रामीण क्षेत्रों से इन्गोरिया खोजकर पेड़ से तोड़कर उसे सूखा देते हैं. उसके बाद ऊपर से छाल को चप्पू से निकालकर उसमें एक छिद्र बनाया जाता है, जिसमें अंदर दारू, गंधक, सुरुखार और कोयले का चूर्ण मिलाकर अच्छी तरह भरा जाता है. इसके बाद नदी की मिट्टी के पत्थर से उस छिद्र को बंद कर दिया जाता है और इसे सूखने के लिए रखा जाता है. इसके बाद इन्गोरिया तैयार हो जाता है, जिसे दिवाली की रात हजारों तैयार किए गए इन्गोरिया के थैले भरकर लड़ाके आग का युद्ध खेलने के लिए तैयार हो जाते हैं. Tags: Gujarat, Local18, Special ProjectFIRST PUBLISHED : November 1, 2024, 16:01 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed