Gujarat Election Results: वो 5 वजहें जो बताती हैं आखिर BJP फिर क्यों जीत गई गुजरात का चुनावी रण
Gujarat Election Results: वो 5 वजहें जो बताती हैं आखिर BJP फिर क्यों जीत गई गुजरात का चुनावी रण
Gujarat Election Results: एक बार फिर से गुजरात में बीजेपी ने बड़ी चुनावी सफलता हासिल करके साबित कर दिया कि राज्य के लोगों के मन में पीएम नरेंद्र मोदी का जादू अभी भी कायम है.
हाइलाइट्सपरिणामों ने एक बार फिर से साबित कर दिया कि गुजरात भाजपा का अभेद्य गढ़ है.गुजरात के मतदाताओं के मन से माटी के लाल नरेन्द्र मोदी का असर कम नहीं हुआ है. प्रभावशाली पाटीदारों का वापस भाजपा में लौटना भी इस सफलता की एक अहम वजह रही है.
नई दिल्ली. जब up24x7news.com ने गुजरात के खेड़ा में रहने वाले साबिर मियां से सवाल पूछा कि आखिर क्यों गुजरात में इस बार भाजपा एतिहासिक जीत हासिल कर सकती है! तो उनका जवाब था कि यहां तो बस मोदी ही हैं, उनका जादू बरकरार है. अगर भाजपा के किसी वरिष्ठ नेता से पूछा गया तो उनका कहना था कि इस बार लक्ष्य बहुमत की 92 सीट हासिल करना नहीं बल्कि 128 सीट हासिल करना है. जो PM नरेंद्र मोदी के गृह राज्य में भाजपा का अब तक का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन होगा. चुनाव के परिणामों ने इस बात को एक बार फिर से साबित कर दिया है कि गुजरात में भाजपा का गढ़ अभेद्य है. क्योंकि गुजरात के मतदाताओं के मन से माटी के लाल नरेन्द्र मोदी का असर कम नहीं हुआ है. उस पर प्रभावशाली पाटीदारों का 2017 में कांग्रेस के साथ किए गए प्रयोग के बाद थककर वापस भाजपा में लौटना भी इस सफलता की एक अहम वजह रही है.
राहुल गांधी की गैर-मौजूदगी और कांग्रेस का ‘मौन’ चुनावी अभियान जनता की समझ के बाहर था. कांग्रेस के पारंपरिक मतदाताओं को भी लगा कि पार्टी ने लड़ाई लड़ने से पहले ही हथियार डाल दिए. चुनाव से एक साल पहले भाजपा ने विरोध के सुर उठने से पहले ही मुख्यमंत्री के साथ-साथ पूरा मंत्रिमंडल बदल दिया. बीजेपी ने विजय रूपानी को मुख्यमंत्री पद से हटाकर भूपेंद्र पटेल को सीएम बनाकर ‘एंटी-इनकंबेंसी’ से होने वाले नुकसान को रोका. वहीं गुजरात के लिए नई आम आदमी पार्टी ने भाजपा को थोड़ा झटका देने की कोशिश की लेकिन जल्द ही यह साफ हो गया कि उसके लिए अभी भाजपा को टक्कर देना आसान नहीं है. वहीं अपने चुनावी अभियान के दौरान पीएम मोदी ने कांग्रेस के उनके खिलाफ प्रयोग किए गए ‘रावण’ और ‘औकात’ जैसे अपशब्दों का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए किया. गुजरात में भाजपा की जीत की पांच अहम वजहें हैं.
पीएम मोदी का जादू
31 रैलियों और अहमदाबाद-सूरत में दो बड़े रोड शो के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस बार गुजरात में चुनाव अभियान का नेतृत्व किया. अपने गृह राज्य में भाजपा की जीत को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाते हुए जीत हासिल करने के लिए किसी तरह का कोई मौका उन्होंने नहीं छोड़ा. वहीं देश के गृहमंत्री अमित शाह ने गुजरात में करीब एक महीने पहले से चुनाव अभियान की गाड़ी को सुचारू रूप से चलाने के लिए तमाम तरह के नट बोल्ट को कसा. शाह ने यह सुनिश्चित किया की भाजपा की पूरी वोट मशीनरी जमीनी स्तर पर काम करे. पीएम मोदी ने पिछले हफ्ते अहमदाबाद में 50 किमी. लंबा रोड शो किया. जिसे पार्टी ने अब तक का सबसे बड़ा रोड शो होने का दावा किया और बताया कि इस रोड शो से साफ हुआ कि लोगों के मन में मोदी को लेकर कितना प्यार है. उनकी एक झलक पाने के लिए 10 लाख लोग इस रैली में जुटे. जिसके बाद यह साफ हो गया था कि भाजपा इस बार रिकॉर्ड जीत हासिल करेगी.
राज्य में लगाए गए भाजपा के सभी पोस्टरों में पीएम मोदी का फोटो दूसरे नेताओं की तुलना में ज्यादा बड़ा लगाया गया. उन्होंने रैली में सुरक्षा, शांति और विकास का वादा किया. यही नहीं पीएम मोदी ने बहुत ही सतर्कता के साथ गुजराती ‘अस्मिता’ और 2002 के बाद के भाजपा शासन में स्थापित शांति जैसे मुद्दों को उठाया. साथ में कांग्रेस के अपशब्दों को अपने पक्ष में हथियार बनाया और राष्ट्रवाद के मुद्दे को भी हवा दी. मोदी और शाह ने बहुत ही जमीनी स्तर पर काम करते हुए माइक्रो मैनेजमेंट किया. जिसके लिए उन्होंने पार्टी के नेताओं से अनुरोध किया कि उनके क्षेत्र में भाजपा का मतदान प्रतिशत बढ़ने पर संजीदगी के साथ काम किया जाए, ताकि रिकॉर्ड जीत हासिल हो. पीएम मोदी का अपने अभियान के दौरान किया गया भारी-भरकम प्रयास ही था, जिसने गुजरात में भाजपा को रिकॉर्ड जीत दिलाई.
चुनाव से पहले नुकसान की भरपाई
2021 तक भाजपा के लिए माहौल इतना खुशगवार नहीं था. भाजपा के दिमाग में विरोधी लहर का बोझ था और जनता भाजपा के राज्य में मौजूदा चेहरों से थक चुकी थी. 11 सितंबर को मोदी ने मुख्यमंत्री विजय रूपानी और उनके पूरे मंत्रिमंडल को बदल कर नए मंत्रिमंडल के साथ नया मुख्यमंत्री लाकर सभी को चौंका दिया. यह वह कदम था जिसने एक झटके से भाजपा के खिलाफ जनता के उभर रहे गुस्से को गायब कर दिया. इससे पहले भाजपा उत्तराखंड और कर्नाटक मे भी इस नीति को लागू करके सफलता हासिल कर चुकी थी. गुजरात में भी नेतृत्व को पूरे तौर पर बदलकर एक नई शुरुआत की गई और भूपेन्द्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया. इस कदम से गुजरात के पटेल भी उनके साथ हो गए. क्योंकि आनंदीबेन पटेल के बाद फिर से उन्हें एक मुख्यमंत्री मिला. इसी तरह 2020 में सीआर पाटिल के रूप में नए राज्य अध्यक्ष के आने ने पार्टी में नई ऊर्जा का संचार किया.
पाटीदारों की वापसी
गुजरात में पाटीदार समुदाय के 13 फीसद मतदाता हैं, लेकिन वे गुजरात में इससे कई गुना ज्यादा असर रखते हैं. इनके कांग्रेस की तरफ झुकाव की वजह से ही 2017 में कांग्रेस को 77 सीट हासिल हुई और भाजपा को 99 सीट पर ही संतोष करना पड़ा था. पाटीदार दशकों से कांग्रेस का ही साथ देते आए हैं, लेकिन 1995 में उन्होंनें भाजपा का दामन थाम लिया था. लेकिन 2015 के आरक्षण आंदोलन ने माहौल को बदल दिया. जब एक विरोध प्रदर्शन के दौरान 14 पाटीदार मारे गए थे. इससे समुदाय में खासा रोष फैला था और हार्दिक पटेल पाटीदार आंदोलन का चेहरा बने और यह आंदोलन 2019 तक चला.
लेकिन 2022 के आते-आते चीजों ने यू- टर्न लिया और ऐसा लगने लगा जैसे पाटीदार वापस भाजपा खेमें में शामिल हो गए हैं, खासकर तब जब हार्दिक पटेल भाजपा में चले गए. वे 2020 में भाजपा के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 फीसद आरक्षण दिए जाने से संतुष्ट दिखे. इससे पाटीदारों को लाभ हुआ और वे वापस भाजपा में अपने समर्थन के साथ लौट गए. सर्वोच्च न्यायालय ने भी हाल ही में मोदी सरकार के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के 10 फीसद आरक्षण के कदम को बरकरार रखा. पाटीदारो का भाजपा के पाले में वापस लौटना, गुजरात में भाजपा की रिकॉर्ड जीत में अहम रहा.
कांग्रेस का मौन अभियान या हार की ‘मौन’ स्वीकृति
2017 में गुजरात में कांग्रेस का उत्साह से भरा चुनाव अभियान चला था. जिसमें राहुल गांधी खुद एक महीने से अधिक वक्त तक गुजरात में रहे और जोश के साथ अभियान में जुटे. उसके उटल इस बार पार्टी का अभियान ठंडा और मौन रहा. जिसने मतदाताओं को हैरान किया. कई लोगों ने न्यूज 18 से बात करने के दौरान कहा कि कांग्रेस ने गुजरात में लड़ाई से पहले ही हथियार डाल दिए और उसके पारंपरिक मतदाता इस कदम से चौंके हुए थे. जनता ऐसे में यह भी जानना चाह रही थी कि इस हालात में वह कांग्रेस की जगह आम आदमी पार्टी के साथ क्यों न जाए. जब चुनाव अपने चरम पर था, तब राहुल गांधी भी महज एक दिन के लिए गुजरात आए और दो रैली करके वापस अपनी भारत जोड़ो यात्रा को जारी रखने के लिए पडोसी राज्य मध्यप्रदेश रवाना हो गए. ऐसा लगा जैसे 2017 में मिले लाभ को भुनाने के बजाए कांग्रेस ने अपने अभियान को रिवर्स गियर में डाल दिया है.
इसके साथ ही कांग्रेस का मोदी के खिलाफ नकारात्मक अभियान कोढ़ में खाज साबित हुआ. मधुसूदन मिस्त्री के प्रधानमंत्री के लिए ‘औकात’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने से लेकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का उनके लिए रावण शब्द का इस्तेमान करना, मतदाताओं को बिल्कुल नहीं भाया. जबकि स्थानीय कांग्रेस नेता मोदी पर निजी हमला करने से परहेज करते रहे, लेकिन राष्ट्रीय स्तर के नेता खड़गे और मिस्त्री तब तक नुकसान कर चुके थे. और तो और कांग्रेस के पास गुजरात में ऐसा कोई मजबूत चेहरा भी नहीं था जो भाजपा को टक्कर दे सके.
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‘AAP’ का हवाई माहौल
गुजरात में पहली बार उतरी आम आदमी पार्टी ने शुरुआत में अच्छा-खासा माहौल तैयार किया. लेकिन गुजरात में दशकों से स्थापित भाजपा और कांग्रेस की द्विध्रुवीय लड़ाई में जगह बनाने के लिए अभी उसे और वक्त लगेगा. यहां तक कि आप ने अपने मुख्यमंत्री उम्मीदवार का चेहरे की भी घोषणा की. पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने कई रैलियां और रोड शो किये. लेकिन जमीन पर लोग उसे भाजपा यहां तक कि कांग्रेस के विकल्प के तौर पर भी नहीं देख पाए. गुजरात में आप के मुफ्त के वादे भी असरदार साबित नहीं हुए. मुसलमान अभी भी कांग्रेस का समर्थन करते दिख रहे हैं. लेकिन जहां तक वोट फीसद की बात है तो आप ने गुजरात में एक विश्वसनीय शुरूआत की है, और सूरत जैसे क्षेत्रों में भाजपा में थोड़ा डर भी पैदा किया. इस वजह से भाजपा ने अपने अभियानों को और भी तेज किया. कुल मिलाकर जीत भले ही आप को हासिल नहीं हुई हो लेकिन उसने भाजपा से कड़ी मेहनत जरूर करवा ली.
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Tags: Aam aadmi party, Bhupendra Patel, BJP, Gujarat Election Result 2022, Pm narendra modiFIRST PUBLISHED : December 08, 2022, 15:34 IST