Explainer: क्यों लगा था सलमान रुश्दी की द सेटेनिक वर्सेज पर बैनये क्यों हटा
Explainer: क्यों लगा था सलमान रुश्दी की द सेटेनिक वर्सेज पर बैनये क्यों हटा
नवंबर के पहले हफ्ते में भारत में एक ऐसा फैसला लिया गया कि लोगों को हैरानी भी हुई. दरअसल 40 साल पहले लेखक सलमान रुश्दी के विवादास्पद उपन्यास सैटेनिक वर्सेज के ऊपर लगा बैन लगा लिया गया.
हाइलाइट्स सलमान रुश्दी की "द सैटेनिक वर्सेज" पर भारत में प्रतिबंध 1988 में लगाया गया अब इस आदेश की मूल कॉपी नहीं मिलने की वजह से ये प्रतिबंध हट चुका है इस किताब की दुनियाभर में 10 लाख कॉपियां अब तक बिक चुकी हैं
36 साल पहले 1988 में भारत ने सलमान रुश्दी के उपन्यास सैटेनिक वर्सेज पर बैन लगा दिया था. इस किताब को बाहर से मंगाने और देश में इसको छापने पर बैन लगा दिया था. तब से लेकर अब तक ये प्रतिबंध लगातार जारी था. जब ये किताब प्रकाशित हुई तो दुनियाभर में इसको लेकर बहुत विवाद हुआ था. तभी ईरान के अयातुल्लाह खुमैनी ने रुश्दी के सिर पर इनाम रखने वाला फतवा भी जारी कर दिया था. अब ये किताब फिर चर्चा में है, क्योंकि दिल्ली हाईकोर्ट ने इस आदेश को पलट दिया. इस आदेश को पलटने की वजह भी अजीबोगरीब ही है.
उपन्यास सैटेनिक वर्सेज को सबसे पहले इंग्लैंड के वाइकिंग पेंग्विन पब्लिशिंग हाउस ने सबसे पहले 26 सितंबर 1988 में छापा. फिर इसके अगले साल इसे अमेरिका में रेंडम हाउस ने 22 फरवरी 1989 ने छापा. आंकड़ें कहते हैं कि दुनियाभर में इसकी 10 लाख प्रतियां बिक चुकी हैं. खासकर जब इस किताब के चलते रुश्दी पर फतवा लगाया गया तो उसकी बिक्री में खूब उछाला आया. इसके बाद अगस्त 2022 जब उन पर चाकू से हमला हुआ तो इस किताब की बिक्री बेतहाशा बढ़ गई.
ये किताब जब 1988 में प्रकाशित हुई तो इसके खिलाफ दुनियाभर में प्रदर्शन हुए थे. इसकी प्रतियां जलाई गईं थीं. कई देशों ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया था. तभी ईरान ने लेखक की मौत पर फतवा जारी किया.
सवाल – भारत में सलमान रुश्दी की किताब पर बैन क्यों लगा था. बैन लगाने का फैसला किस मंत्रालय ने किया?
– जैसे ही ये किताब प्रकाशित होकर बाहर आई. इसे लेकर दुनियाभर में विवाद हो गया. खासकर इसके कुछ अंशों को लेकर. जिसमें कथित तौर पर पैगंबर की आलोचना की गई थी. मुस्लिम जगत का मानना था कि किताब कथित तौर पर इस्लाम और पैगबंर का अनादर करती है. ईशनिंदा करती है. तब भारत ने तुरत फुरत इसको विदेश से भारत लाए जाने और इसके आयात पर प्रतिबंध लगा दिया.
प्रतिबंध का ये फैसला वित्त मंत्रालय द्वारा लिया गया था. इस आदेश से संबंध आदेश भारत की सीमा शुल्क अधिसूचना संख्या 405/12/88-सीयूएस-III द्वारा जारी किया गया.
तब भारत “द सैटेनिक वर्सेज” पर प्रतिबंध लगाने वाला पहला देश था. ब्रिटेन में इसके शुरुआती प्रकाशन के केवल 09 दिनों बाद ही भारत में इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया.
सवाल – भारत ने जब द सैटेनिक वर्सेज पर प्रतिबंध लगाया तो रुश्दी ने किस तरह इस पर इतराज जाहिर किया?
– रुश्दी ने उस समय लिखा था , “दुनिया भर में कई लोगों को यह बात अजीब लगेगी कि ये प्रतिबंध भारत सरकार के वित्त मंत्रालय ने लगाया. ये मंत्रालय कैसे ये तय कर सकता है कि भारतीय पाठक क्या पढ़ें या क्या न पढ़ें.”
सवाल – ये प्रतिबंध भारत में 36 सालों बाद कैसे अचानक कैसे हटा लिया गया?
– प्रतिबंध हटाया नहीं गया बल्कि ये एक असंवैधानिक कारण के चलते समाप्त हो गया. वजह ये रही कि ये मामला हाईकोर्ट में गया. हाईकोर्ट ने इससे संबंधित आदेश को पेश करने के लिए कहा. ये नहीं मिला. इतने सालों में ये कहीं गायब हो चुका है. 5 अक्टूबर 1988 का मूल आदेश कहीं नहीं मिला. तब दिल्ली उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि उसके पास प्रतिबंध हटाने और पुस्तक के आयात की अनुमति देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड आदेश की प्रति प्रस्तुत नहीं कर सका.
अदालत ने अपने फ़ैसले में लिखा, “जो बात सामने आई है वह यह है कि कोई भी प्रतिवादी 05.10.1988 की उक्त अधिसूचना पेश नहीं कर सका. हमारे पास यह मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं है कि ऐसी कोई अधिसूचना मौजूद नहीं है. इसलिए हम इसकी वैधता की जांच नहीं कर सकते.”
सवाल – ये मामला कैसे अदालत में पहुंचा, किसने इस किताब पर लगे बैन को चुनौती दी?
– याचिकाकर्ता, दिल्ली और कोलकाता में रहने वाले 50 वर्षीय संदीपन खान हैं. उन्होंने कहा कि उन्हें 2017 में इस उपन्यास के बारे में जानने की उत्सुकता हुई. वे इसे खोजने के लिए किताबों की दुकानों पर गए. उन्हें बताया गया कि इस पर किसी तरह का प्रतिबंध है. ये देश में उपलब्ध नहीं है. ये जानने के लिए कि पुस्तक पर प्रतिबंध क्यों लगाया गया. उन्होंने एक मंत्रालय के पास सार्वजनिक सूचना अनुरोध दायर किया. उनका अनुरोध दूसरे मंत्रालय को भेजा गया, फिर दूसरे मंत्रालय को.आखिरकार उन्हें बताया गया कि आदेश उपलब्ध नहीं है. तब उनके एक वकील मित्र ने इस किताब पर लगे प्रतिबंध की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका दायर करने को कहा. ये मामला 2019 दायर हुआ. उसके बाद नौकरशाही इसे घुमाती रही. क्योंकि सीमा शुल्क अधिकारी दस्तावेज की खोज में लगे रहे.
आखिरकार अधिकारी इसे नहीं खोज पाए. अदालत कभी इस प्रश्न पर विचार ही नहीं कर पाई कि क्या प्रतिबंध लगाना भारत के संविधान का उल्लंघन होगा. फिर इस लगा प्रतिबंध हटा लिया.
सवाल – तो न्यायालय के फैसले के बाद क्या द सैटेनिक वर्सेज भारत में आकर बिक सकेगी और इसको छापा जा सकेगा?
– इसको छापने का फैसला अब भी किसी भारतीय प्रकाशक के लिए साहसिक होगा. उसी तरह किताबों की दुकान पर इसे बेचने के लिए रखना भी पुस्तक विक्रेताओं के लिए संवेदनशील हो सकता है, खासकर इससे जुड़े विवादों और धार्मिक संवेदनशीलता और भय के कारण. ऐसा होने पर कानून और व्यवस्था की स्थितियां पैदा हो सकती हैं. अलबत्ता इसके कोई शक नहीं कि इस पर अब फिलहाल किसी तरह का बैन भारत में नहीं रह गया है.
सवाल – क्या भारत में इस किताब के प्रकाशन पर कभी कोई कानूनी प्रतिबंध लगाया गया?
– नहीं, भारत में इस पुस्तक के प्रकाशन पर कभी कोई कानूनी प्रतिबंध नहीं लगाया गया है, जबकि बांग्लादेश, सूडान और श्रीलंका सहित अन्य देशों में ऐसा किया गया था. पुस्तक के ब्रिटिश प्रकाशक की स्थानीय शाखा पेंगुइन इंडिया ने उस समय इस पुस्तक को स्थानीय रूप से प्रकाशित न करने का निर्णय लिया, जिसमें पैगंबर मुहम्मद के जीवन के कुछ हिस्सों को काल्पनिक रूप से प्रस्तुत किया गया, क्योंकि एक साहित्यिक सलाहकार ने चिंता जताई थी कि इसे आपत्तिजनक माना जा सकता है.
सवाल – तब सलमान रुश्दी का इस किताब के बारे में क्या कहना था?
– रुश्दी ने हमेशा इस बात से इनकार किया कि यह किताब पैगम्बर मुहम्मद या इस्लाम के बारे में थी, उन्होंने लिखा कि यह किताब “प्रवास, कायापलट, विभाजित आत्म, प्रेम, मृत्यु, लंदन और बॉम्बे के बारे में थी.” 1988 में न्यूयॉर्क टाइम्स में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को संबोधित एक पत्र में उन्होंने अपनी किताब को “राजनीतिक फुटबॉल की तरह इस्तेमाल किए जाने” पर दुख जताया. तर्क दिया कि यह प्रतिबंध लोकतंत्र विरोधी और भारत के लोकतंत्र के लिए शर्मनाक है.
सवाल – ईरान में किस संस्था ने सलमान रुश्दी की हत्या पर इनाम रखा था?
– ईरान के 15 खोरदाद फाउंडेशन ने रुश्दी की हत्या के लिए करोड़ों डॉलर का इनाम रखा था. ये एक ईरानी संगठन है जिसकी स्थापना 1982 में इमाम रूहोल्लाह खुमैनी के आदेश पर की गई थी. इसका मुख्य उद्देश्य ईरानी क्रांति के शहीदों और दिग्गजों के परिवारों की आर्थिक ज़रूरतों को पूरा करना है. ये ईरान के सर्वोच्च नेता की देखरेख में काम करता है. फाउंडेशन का उद्देश्य क्रांति और ईरान-इराक युद्ध से प्रभावित परिवारों के वित्तीय बोझ को कम करना है. ये स्मारक कार्यक्रम आयोजित करता है, सांस्कृतिक संघों का प्रबंधन करता है और ईरान के इतिहास में महत्वपूर्ण घटनाओं से संबंधित ऐतिहासिक दस्तावेज़ जुटाता है. इसके अलावा ये शिक्षा से स्वास्थ्य तक और भी बहुत से काम करता है,
सवाल – इस फतवे के बाद लेखक सलमान रुश्दी का जीवन कैसा रहा?
– उनका जीवन बिल्कुल बदल गया. पहले तो कड़ी सुरक्षा के बीच ब्रिटेन में रहे. फिर अमेरिका जाकर वहां बस गए. लेकिन उनकी सार्वजनिक मौजूदगी बहुत कम हो गई. अगस्त 2022 में उन पर चाकू से जानलेवा हमला हुआ. वह मरते मरते बच जरूर गए लेकिन उनकी एक आंख पूरी तरह खराब हो गई. भारत में पैदा हुए सलमान रुश्दी अब 77 वर्ष के हैं. अमेरिकी नागरिक बन चुके हैं. हालांकि इस किताब से जुड़े कई लोगों की हत्या हो चुकी है.
– 1991 में रुश्दी के जापानी अनुवादक की हत्या कर दी गयी. कुछ दिनों बाद उनके इतालवी अनुवादक को चाकू मार दिया गया.दो वर्ष बाद एक नॉर्वेजियन प्रकाशक को गोली मार दी गई.
सवाल – भारत में वित्त मंत्रालय ने इस किताब पर प्रतिबंध क्यों लगाया?
– क्योंकि ये माना गया कि ये किताब बाहर से आयात की जाएगी, लिहाजा ये काम सीमा शुल्क विनियमों के अधिकार क्षेत्र में था. हालांकि पुस्तक प्रतिबंध के निर्णयों में भारतीय वित्त मंत्रालय की भागीदारी अपेक्षाकृत कम होती है. लेकिन सीमा शुल्क नियमों के कारण ये मामला वित्त मंत्रालय के तहत माना गया और प्रतिबंध भी वित्त मंत्रालय ने ही लगाया.
सवाल – भारत में पुस्तकों पर प्रतिबंध लगाने की वास्तविक पॉवर किसके पास है?
– पुस्तकों पर प्रतिबंध लगाने की वास्तविक शक्ति दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 95 के तहत राज्य सरकारों के पास अधिक है, जो उन्हें कार्रवाई करने की अनुमति देती है.
सवाल – पुस्तकों पर प्रतिबंध के मामले में भारत दुनिया में कहां है?
– हाल के वर्षों में ऐसी रिपोर्टें आई हैं जो बताती हैं कि भारत पुस्तक प्रतिबंधों की संख्या में विश्व स्तर पर सबसे आगे है. भारत में किताबों पर प्रतिबंध लगाने का एक लंबा इतिहास रहा है, पिछले कुछ वर्षों में कई विदेशी किताबों पर प्रतिबंध लगाया गया है. रिपोर्ट बताती हैं कि दुनियाभर में दर्ज की गई सभी किताबों पर प्रतिबंध का लगभग 11.11% भारत में होता है.
जिन उल्लेखनीय विदेशी पुस्तकों पर प्रतिबंध लगाया गया है
सलमान रुश्दी की द सैटेनिक वर्सेज (1988) – धार्मिक भावनाओं के कारण प्रतिबंधित
स्टेनली वोलपर्ट की नाइन ऑवर्स टू रामा (1962) – सुरक्षा चिंताओं के कारण प्रतिबंधित
वी.एस. नायपॉल की एन एरिया ऑफ डार्कनेस (1964) – भारत के नकारात्मक चित्रण के कारण प्रतिबंधित
Tags: Attack of Islam, Book revew, Iran news, Muslim, Muslim religion, Salman RushdieFIRST PUBLISHED : November 11, 2024, 16:52 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed