दौलतमंद हैदराबाद निजाम क्यों कहे जाते थे मारवाड़ी सेठ के बेटेहुई थी शिकायत भी
दौलतमंद हैदराबाद निजाम क्यों कहे जाते थे मारवाड़ी सेठ के बेटेहुई थी शिकायत भी
Nizam of Hyderabad: हैदराबाद के आखिरी निजाम उस्मान अली काफी तिकड़मी भी थे. किस्मत के भी तेज. क्योंकि उनके पिता ने अपने आखिरी दिनों में उन्हें अपना बेटा मानने से इनकार कर दिया था.
हाइलाइट्स आखिरी निजाम के पिता ने उन्हें बाद में जायज बेटा मानने से इनकार कर दिया वायसराय को खत लिखकर वारिस बनाने के कागज रद्द करने को कहा था इसे लेकर ब्रिटेन के राजा के सामने भी अपील की गई लेकिन उनका भी निधन हो गया
हैदराबाद के आखिरी निजाम थे उस्मान अली. वह दुनिया के सबसे ज्यादा दौलतमंद लोगों में शामिल थे. लेकिन जिंदगीभर कुछ लोग उन्हें एक मारवाड़ी सेठ का नाजायज बेटा मानते रहे. खुद उनके पिता ने भारत सरकार को शिकायत लिख दी थी कि ये उनका बेटा नहीं है. उन्होंने अपने दो अन्य बेटों को अपनी असली औलाद मानना शुरू कर दिया था. इसके पीछे भी दिलचस्प कहानी है.
ये पूरी कहानी दीवान जर्मनी दास ने अपनी किताब “महाराजा” में लिखी है. ये वही निजाम थे, जिन्होंने हैदराबाद रियासत को भारत में मिलाने से मना कर दिया था. तब भारतीय सेनाओं ने वहां आपरेशन चलाया और हैदराबाद का विलय भारत में करा लिया गया.
पहले तो हम निजाम की कंजूसी के बारे में आपको बताते हैं. निजाम का पूरा नाम था मीर उस्मान अली खान, उन्हें आसफ जाह भी कहा जाता था.उनके पिता और छठे निजाम का नाम था महबूब अली खान. निजाम का अर्थ होता है हाकिम. एक जमाने में हैदराबाद रियासत के निजाम औरंगजेब और दिल्ली सल्तनत के हाकिम ही थे, बाद में उन्होंने मुगल सल्तनत के कमजोर होने पर उससे विद्रोह करके अपनी अलग रियासत बनाने की घोषणा कर दी थी.
सातवें निजाम की कंजूसी की बात पहले.कहा जाता है कि निजाम ने अपनी ही रियाया से पैसा हड़पने के नए नए तरीके बनाए हुए थे. वह खजाने से मोटी सैलरी लेता था लेकिन उसमें से एक भी खर्च नहीं करता था. सारा खर्च राज्य के खजाने से कराता था. चाहे उसके द्वारा दी गई पार्टियां हों या किसी मेहमान का स्वागत. छठे निजाम के निधन के बाद उस्मान अली ने विरोध के बीच सत्ता हासिल की. वह सातवें और आखिरी निजाम बने. (wiki commons)
बहुत कंजूसी से रहता था निजाम
हाथ में करोड़ों रुपए होते हुए भी वह मुश्किल से कुछ हजार रुपयों में अपना और अपनी रखैलों का खर्च चलाता था. उसकी तमाम रखैलें महल में भरी पड़ी थीं. हरम बहुत बड़ा था. उसकी कई बीवियां थीं. हिजड़े नौकर थे. वह बहुत सादी पोशाक पहनता था. मोजे टांगों से नीचे आ जाते थे. पायजामा इतना ऊंचा रहता था कि टांगों का कुछ हिस्सा मोजे के ऊपर नजर आता था. सिर पर पहनी जाने वाली टोपी 35 से ज्यादा पुरानी थी. ये खस्ताहाल थी लेकिन निजाम को पसंद थी.
क्यों माना गया मारवाड़ी सेठ की औलाद
अब वो किस्सा कि आखिरी निजाम को क्यों एक मारवाड़ी सेठ की नाजायज औलाद माना गया. खुद छठे निजाम ने ये माना. छठे निजाम की कई बेगमें थीं लेकिन उनका रिश्ता एक ऐसी औरत से भी था जो मारवाड़ी सेठ की रखैल थी. उससे एक लड़का पैदा हुआ. जो शक्ल सूरत में मारवाड़ी से मिलता-जुलता था. लेकिन निजाम को लगा कि ये उनका बेटा है, क्योंकि उस औरत ने निजाम से यही कहा कि ये उनका बेटा है. हैदराबाद छठे निजाम महबूब अली खान ने जीवन के आखिरी दिनों में वायसराय से अपील की थी कि उस्मान अली उनके बेटे नहीं हैं. (wiki commons)
कई आदतें मारवाड़ी सेठ से मिलने लगीं
जब उस लड़के को महल में लाया गया तो निजाम ने उसे अपना बेटा करार दिया. ज्यों ज्यों वह बड़ा होता गया, त्यों त्यों उसकी चाल-ढाल और सूरत मारवाड़ी सेठ से मिलती गई. वैसा ही पैसा जोड़ने की आदत आती गई.
तब निजाम ने शिकायत की ये उनका बेटा नहीं है
अपने बेटे की आदतें सुधारने में नाकाम होने के बाद निजाम ने भारत सरकार को शिकायत भेजी कि ये लड़का उनका नहीं है बल्कि उनके दोनों सगे बेटों जो सलावत जाह और बसावत जाह को उनका बेटा माना जाए, जो उनकी ब्याहता बीवियों से पैदा हैं. इसलिए वो दोनों ही तख्त के असली वारिस हैं. इन दोनों शहजादों की शक्ल सूरत और चाल-ढाल निजाम जैसी ही थी.
किस्मत यूं उन पर मेहरबान हो गई
उस्मान अली बचपन से ही चालाक था. उसे ये पता लग गया था कि छठे निजाम ने ऐसा कोई पत्र वायसराय को भेजा है. अचानक निजाम बीमार पड़े और मर गए. उस्मान चूंकि उस समय तक उनके बड़े बेटे थे, लिहाजा वह निजाम की गद्दी पर आसीन हो गए. हालांकि इसका विरोध छठे निजाम के दोनों बेटों ने किया. कहा जाता है कि मरते समय भी उस्मान अली वहां नहीं थे.
ब्रिटेन से राजा से भी की गई शिकायत
जैसे ही उस्मान अली तख्त पर बैठे, तब फौरन ही उन्होंने शाही खानदान के सभी लोगों को महल से निकाल बाहर किया. उनमे से कुछ तो सड़कों पर भीख मांगने लगे. सलावत जाह और बसावत जाह ने ब्रिटिश सरकार से अपील की कि हैदराबाद का राज्य उन्हें दिया जाए, क्योंकि छठे निजाम के जायज बेटे वो ही हैं. उस्मान अली खान जबरदस्ती और तिकड़म से तख्त पर काबिज हुए हैं जबकि वह निजाम की औलाद नहीं हैं.
फिर वह हैदराबाद के एकछत्र शासक बन गए
उस्मान अली की खुशकिस्मती थी कि ये अपील इंग्लैंड के बादशाह एडवर्ड सप्तम के आगे पेश की गई. वह सलावत और बसावत को तख्त का असली वारिस मानकर उनके हक में फैसला देने वाले थे लेकिन बीमारी के बाद उनका भी निधन हो गया. इसके बाद उस्मान अली ने ऐसी तरकीबें लड़ाई कि उनके दोनों भाइयों की अपील खारिज कर दी गई. फिर वह हैदराबाद रियासत के जायज और एकछत्र शासक बन गए.
मुंबई का महल जब हाथ से निकला
निजाम के बाद मुंबई का हैदराबाद पैलेस सलावत जाह को दे दिया था, मगर उस्मान अली ने उसे जब्त कर लिया. सलावत ने महल की जब्ती की शिकायत अंग्रेज रेजीडेंट से की. निजाम को महल वापस देने का हुक्म जारी हो गया. उस्मान ने फिर चाल चली. उन्होंने कहा कि वह महल की सारी कीमत सलावत को देने को तैयार हैं लेकिन महल को उनके कब्जे में रहने दिया जाए. रेजीडेंट और सलावत दोनों ने ये बात मंजूर कर ली. बाद में निजाम ऐसी तिकड़म की कि जिस शख्स को महल की कीमत तय करने के लिए मुकर्रर किया गया था, उसे रिश्वत देकर अपनी ओर मिला लें.
लेकिन जिस कावसजी जहांगीर को ये काम सौंपा गया था, वह बहुत ईमानदार थे, उन्होंने उ्स्मान अली की बात को ठुकराकर महल की कीमत 17 लाख रुपए आंकी, उस्मान को ये मोटी रकम देनी पड़ी. हालांकि उन्हें मलाल था कि इतनी मोटी रकम उनकी जेब से निकल गई.
बाद में सलावत जाह की मृत्यु रहस्यमय स्थितियों में हो गई. उनकी तमाम जायदाद और सारा रुपया निजाम के हाथ लगा. हालांकि बसावत जाह यानि दूसरे शहजादे को ताजिंदगी हैदराबाद रियासत के खजाने से हर महीने 5000 रुपया मिलता रहा, क्योंकि ये गुजारे की रकम भारत सरकार ने तय की थी.
Tags: Hyderabad, Hyderabad News, World Richest PersonFIRST PUBLISHED : September 16, 2024, 12:37 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed