महाभारत के दौरान किसने किया सैनिकों के लिए किया रोज शानदार खाने का इंतजाम
महाभारत के दौरान किसने किया सैनिकों के लिए किया रोज शानदार खाने का इंतजाम
Mahabharat Katha : महाभारत के युद्ध में जब पांडवों और कौरवों की सेनाएं शाम को युद्ध खत्म करती थीं, तो उन्हें एक बड़ी भोजनशाला में रोज शानदार खाना खिलाया जाता है, कौन बनाता था और करता था भोजन का इंतजाम
हाइलाइट्स महाभारत के युद्ध में तटस्थ रहने वाले एक राजा ने संभाला भोजन का जिम्मा युद्धस्थल के पास बनी विशाल भोजशाला अपने व्यंजनों और पकते खानों से महकती रहती थी इस भोजशाला की विशेषता थी कि यहां रोज एकदम सटीक खाना बनता था ना कम और ना ज्यादा
महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला. युद्ध के दौरान रोज हजारों सैनिक मरते थे और बड़ी संख्या में सैनिक इसमें हिस्सा लेते थे. युद्ध शाम को खत्म हो जाता था तो फिर रात में दोनों पक्ष साथ ही बैठकर भोजन करते थे. इसकी व्यवस्था एक ही शख्स करता था. उसने युद्ध में हिस्सा लेने वाले हर शख्स को भरपेट भोजन कराया. वह कौन था और ऐसा कर लेता था.
दरअसल जब महाभारत का युद्ध शुरू हुआ तो ये तय हो गया कि हर राजा और राज्य को इस युद्ध में हिस्सा लेना होगा. वो अपना पक्ष चुन ले कि उसको किस ओर रहना है. इसके बाद सभी ने अपना पक्ष चुन लिया. हालांकि कुछ ऐसे लोग भी थे जिन्होंने युद्ध में हिस्सा नहीं लेने का फैसला किया. एक शख्स ऐसा भी था कि जिसने युद्ध में तटस्थ रहने का फैसला किया.
युद्ध में तटस्थ रहने वाले एक राजा ने किया ये काम
उसने ये भी कहा कि बेशक वह युद्ध में तो तटस्थ रहेगा लेकिन युद्ध में अपनी एक भूमिका अलग तरह की निभाएगा. ये राजा थे उडुपी के शासक वासुदेव. वो अर्जुन के कजन थे. उडुपी का गहरा नाता कृष्ण से भी था. युद्ध में कुल मिलाकर 18 अक्षोहिणी सेना ने हिस्सा लिया था. हर अक्षोहिणी में करीब एक लाख सैनिक होते थे. इस हिसाब से देखें तो जब युद्ध की शुरुआत हुई तो युद्ध मैदान में कुल मिलाकर 13 लाख से ज्यादा सैनिक इसमें हिस्सा ले रहे थे. इनके लिए भोजन बनाना और उसका सटीक अनुमान लगाना बहुत मुश्किल था. महाभारत के युद्ध में भगवान कृष्ण को खाना परोसते उडुपी नरेश.
युद्धस्थल से एक बड़ी भोजनशाला में होता था सबके खाने का इंतजाम
यहां आपको ये बता दें कि युद्ध स्थल से कुछ दूर उडुपी नरेश ने भोजनशाला बनाई. खाने का सारा सामान उडुपी से आता था. रसोई में हजारों रसोइये सुबह से उठकर खाने बनाने के काम में लग जाते थे. हालांकि इसमें इस्तेमाल होने वाले अन्न और सब्जियों की व्यवस्था युद्धस्थल में हिस्सा ले रहे पक्षों की ओर से भी की जाती थी लेकिन ज्यादातर जिम्मा उडुपी का खुद का था.
यहां आपको बता दें कि उडुपी आज से नहीं बल्कि सैकड़ों सालों से खाना बनाने और खिलाने के काम माहिर माना जाता था. वहां बनाए गए खाने और व्यंजनों की ना केवल तारीफ होती थी बल्कि लोग इसकी तारीफ भी करते रहते थे. महाभारत में 18 दिनों तक युद्ध चला. शाम को जब रोज युद्ध को विश्राम दिया जाता था तो उसके बाद दोनों पक्ष के सैनिक विशाल भोजनशाला में जुटते थे.
कौरव और पांडव पक्ष के सैनिक साथ बैठकर खाते थे खाना
कुरुक्षेत्र युद्ध 18 दिनों तक चला था. इतने विशाल युद्ध में जितनी बड़ी संख्या में लोग हिस्सा ले रहे थे, उनके लिए कितना भोजन रोज बनाया जाएगा, इसका अनुमान लगाना बहुत मुश्किल था लेकिन उडुपी के राजा ये प्रबंध बखूबी किया. जब रोज युद्ध रुकता था तो कौरव और पांडव पक्ष के लोग साथ बैठकर वहां खाना खाते थे. राजा युधिष्ठिर के साथ कृष्ण बैठा करते थे. दोनों साथ ही भोजन करते थे. उन्हें भोजन परोसने का जिम्मा खुद उडुपी नरेश संभालते थे.
राजा उडुपी तब कृष्ण के पास पहुंचे
यह सब तब शुरू हुआ जब देश के सभी राजा पक्ष चुन रहे थे. उनके पास भगवान कृष्ण के साथ पांडवों या शक्तिशाली सेना के साथ कौरवों में चुनने का विकल्प था. हर राजा ने एक या दूसरे पक्ष को चुना. उडुपी के राजा और उनकी सेना युद्ध से दूर ही रहना चाहती थी. वो लोग कतई युद्ध में हिस्सा लेने के इच्छुक नहीं थे. वह भगवान कृष्ण के पास गए. ये हैं उडुपी के राजा वासुदेव, जिन्होेंने महाभारत के युद्ध के दौरान रोज भोजन का जिम्मा संभाला और इसे बहुत उम्दा तरीके से पूरा किया.
इस तरह उडुपी नरेश ने संभाला भोजन का इंतजाम
उन्होंने कहा, “हे वासुदेव, मैं बड़ी दुविधा में हूं. दोनों पक्ष समान रूप से शक्तिशाली हैं. न तो मुझमें किसी के खिलाफ लड़ने का साहस है और न ही मेरे पास उनकी मदद करने का कौशल है. मुझे क्या करना चाहिए? अगर मैं और मेरी सेना किसी एक पक्ष में शामिल हुई तो हम नष्ट हो जाएंगे. हम तटस्थ रहना चाहते हैं. युद्ध का हिस्सा नहीं बनना चाहते. कृपया हमारी मदद करें.”
भगवान कृष्ण ने राजा उडुपी की दुविधा को समझा. उनके लिए एक समाधान निकाला. उन्होंने कहा, “राजा उडुपी, आप जिस दुविधा में हैं, उसे महसूस करना बहुत स्वाभाविक है. तटस्थ रहने का आपका विचार बुद्धिमानी भरा और व्यावहारिक है. मैंने आपकी दलील पर विचार किया. मैंने एक ऐसा तरीका निकाला जिससे आप तटस्थ रहते हुए भी युद्ध में योगदान दे सकते हैं. युद्ध में भाग लेने वाले सभी योद्धाओं के भोजन का प्रबंध करने का जिम्मा आपका होगा. आपके पास यही एकमात्र विकल्प है.”
राजा उडुपी ने इस सुझाव पर खुशी-खुशी सहमति जताई. उडुपी के राजा ने कहा, “हर कोई युद्ध करने जा रहा है. युद्ध लड़ने वालों को खाना तो खाना ही पड़ता है. मैं कुरुक्षेत्र युद्ध के लिए भोजन परोसने वाला बनूंगा.” उडुपी के राजा ने बहुत अच्छा भोजन परोसा.
भोजन ना कम होता था और ना ज्यादा
उन्होंने फिर बखूबी युद्ध में हिस्सा ले रहे हर शख्स के लिए भोजन की व्यवस्था का काम बखूबी संभाला, जो वास्तव में बहुत कठिन था. उनकी रसोई की खासियत ये थी कि वहां जितना भी भोजन रोज बनता था, वो कतई ना तो बर्बाद होता था और ना ही इसकी कमी होती थी. सबकुछ एकदम परफेक्ट था. हर लोग हैरान था कि वह ऐसा कर रहे हैं. उन्होंने राजा उडुपी से इस गणना और सटीक सेवा का रहस्य पूछा.
विशाल भोजनशाला रोज व्यंजनों की गंध से महकती थी
बल्कि ये भी हुआ कि पांडव तो उडुपी नरेश द्वारा शुरू की गई विशाल भोजनशाला की बड़ी रसोई का दौरा भी किया ताकि वह देखें और समझें कि वो आखिर ये मुश्किल प्रबंधक इतने बेहतर तरीके से कर कैसे रहे हैं. रसोई में हर रसोइया अपने काम में मशहूर था. वह मसालों और खाने की महक से भरा हुआ था. दूर तक खाना पकने की गंध फैली हुई थी.
कितना खाना बनना है इसकी गणना कौन करता था
रसोइयों ने कहा कि कितनी मात्रा रोज इस्तेमाल होनी है, इसकी गणना तो उडुपी नरेश ही करते हैं. वह उसी अनुसार उनसे स्टोर से सामग्री निकालने और बनाने के बारे में बताते थे. अब पांडव ने ये राज उडुपी के नरेश से बताने के लिए कहा.
तब उडुपी नरेश ने बताया रहस्य
तब उन्होंने बताया, “भगवान कृष्ण की मदद से ही मैं योद्धाओं के लिए भोजन और पानी की सही मात्रा का अनुमान लगाने और गणना करने में सक्षम हूं. हर रात मैं मूंगफली छीलता हूं. उन्हें कृष्ण को अर्पित करता हूं. वह जितनी मूंगफली खाते हैं, उससे मुझे युद्ध में अगले दिन मरने वाले सैनिकों की संख्या का अंदाजा हो जाता है. अगर वह 5 मूंगफली खाते हैं, तो इसका मतलब है कि युद्ध में 50,000 सैनिक अपनी जान गंवा देंगे और इसी तरह आगे भी.”
उडुपी का भोजन आज भी प्रसिद्ध
यह राजा उडुपी की कहानी है. उडुपी का भोजन आज भी स्वाद, सफाई और पोषण का प्रतीक बन गया है. गौरतलब है कि उडुपी का खाना हमेशा से बहुत मशहूर था. आज भी मशहूर है. इस तरह महाभारत में भोजन बनाया जाता था और सभी को परोसा जाता था, जो कभी किसी को ना तो कम पड़ा और ना ही ज्यादा हुआ.
उस युद्ध में तटस्थ रहते हुए भी उडुपी के राजा वासुदेव ने वो काम कर दिया, जो आज भी मिसाल है और इससे उडुपी का भोजन और मशहूर हो गया.
Tags: Food, Mahabharat, Prayagraj cuisineFIRST PUBLISHED : September 4, 2024, 12:52 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed