जब माउंटबेटन ने नेहरू को सौंपी सत्ता तो सेंगोल ही बना था हस्तांतरण का प्रतीक
जब माउंटबेटन ने नेहरू को सौंपी सत्ता तो सेंगोल ही बना था हस्तांतरण का प्रतीक
18वीं लोकसभा में सेंगोल को लेकर फिर विवाद हो गया है. दरअसल इसकी शुरुआत राष्ट्रपति के अभिभाषण से पहले उनके आगे सेंगोल लेकर चलने की वजह से हुई. कहा जा रहा है कि सेंगोल की जगह संसंद में प्रतीक के तौर पर भारतीय संविधान की कॉपी को स्थापित किया जाए.
हाइलाइट्स चोल वंश के राजा सत्ता हस्तांतरण में इस राजदंड का इस्तेमाल करते थे आजादी के समय राजदंड का सुझाव सी राजगोपालचारी ने दिया था फिर उन्होंने ही इसे दक्षिण भारत में बनवाकर दिल्ली मंगाया था
18वीं लोकसभा में जब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू अभिभाषण के लिए जब दिल्ली आईं तो सेंगोल थामे एक मार्शलउनके आगे आगे चलता रहा. उन्हें उनकी तय सीट तक ले गया. इसके बाद समाजवादी पार्टी ने सेंगोल को राजा का डंडा कहते हुए मांग की कि इस राजदंड की जगह संसद में भारतीय संविधान की कॉपी को स्थापित किया जाए.
सेंगोल पिछले साल मार्च के समय तब चर्चा में आया जबकि नए संसद भवन का उद्घाटन हुआ था. तब पीएम मोदी ने इसे लोकसभा कक्ष में स्थापित किया था. उसके बाद अब ये फिर चर्चा में है. विपक्षी सांसद का मानना है कि ये लोकतंत्र नहीं बल्कि राजसत्ता का प्रतीक है. बीजेपी ने भी पलटवार किया है.
चोल राजवंश के समय था इसका प्रतीकात्मक महत्व
सेंगोल को चोल राजवंश के समय से एक राजा से दूसरे राजा को सत्ता सौंपने का प्रतीक माना जाता है. चोल काल के दौरान राजाओं के राज्याभिषेक समारोहों में सेंगोल का बहुत महत्व था. यह एक औपचारिक भाले या ध्वज के दंड के रूप में कार्य करता था. इसमें बहुत ज्यादा नक्काशी और जटिल सजावटी काम शामिल होता था. सेंगोल को अधिकार का एक पवित्र प्रतीक माना जाता था, जो एक शासक से दूसरे शासक को सत्ता के हस्तांतरण के तौर पर दिया जाता था. फिर ये सेंगोल चोल राजाओं की शक्ति, वैधता और संप्रभुता के प्रतीक के रूप में उभरा.
आजाद भारत में सेंगोल का इतिहास
जब अंग्रेज आजादी के समय सत्ता का हस्तांतरण करने वाले थे, तब सी. राजगोपाचारी ने सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर सेंगोल को समारोह का अंग बनाने की बात कही थी. इसे लेकर तत्कालीन वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू सी. राजगोपालाचारी के बीच बातचीत हुई. तब राजगोपालाचारी ने चोल वंश के सत्ता हस्तांतरण के मॉडल से प्रेरणा लेने का सुझाव दिया. जिसमें जब चोल राजा सत्ता का हस्तांतरण करते थे तो सेंगोल को हस्तांतरित करते थे.
सैंगोल को प्रतीक के तौर पर तब आखिरी ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन से नेहरू के हाथों में लेने की योजना के पीछे सी राजगोपालाचारी थे, जो विद्वान थे, उन्होंने नेहरू को बताया था कि चोल राजा सत्ता के हस्तातंरण में सैंगोल एक से दूसरे हाथ में देते थे. नेहरू ने उनकी योजना पर सहमति जताई. सैंगोल बना. आजादी के समय इस्तेमाल हुआ. अगर सी राजगोपालाचारी नहीं होते तो यकीनन भारतीय संस्कृति के प्रतीक के तौर पर तब सैंगोल का इस्तेमाल भी नहीं होता.
ब्रिटिश राज से हस्तांतरण का प्रतीक भी बना सेंगोल
राजाजी की सलाह के बाद तय किया गया कि इस चोल मॉडल को ब्रिटिश राज से भारतीय हाथों में सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक बनाया जाए.
राजाजी ने इसके लिए तमिलनाडु के तंजौर जिले में स्थित एक धार्मिक मठ थिरुववदुथुराई अधीनम से संपर्क किया. अधीनम गैर-ब्राह्मण मठवासी संस्थान हैं, जो भगवान शिव की शिक्षाओं और परंपराओं का पालन करते हैं.
सेंगोल माउंटबेटन के हाथों से नेहरू को दिया गया
14 अगस्त, 1947 के ऐतिहासिक दिन पर सत्ता हस्तांतरण के प्रतीकात्मक समारोह लिए सेंगोल दिल्ली लाया गया. सबसे पहले ये उस समय भारत के वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन को भेंट किया गया. फिर उनसे सेंगोल को लेकर पंडित जवाहरलाल नेहरू को सौंपा गया. हालांकि बाद में आजादी से संबंधित ये सारी चीजें इलाहाबाद म्युजियम में भेज दी गईं थीं. ये बरसों तक वहीं रहा. उसके बाद पिछले साल दिल्ली में नए संसद भवन के लोकसभा कक्ष में स्थापित कर दिया गया.
आजाद भारत के लिए सेंगोल बनाने वाले आज भी जीवित
सेंगोल करीब पांच फीट लंबा होता है. सेंगोल के शीर्ष पर स्थित नंदी बैल होता है, जो न्याय और निष्पक्षता का प्रतीक है. सेंगोल को तैयार करने का काम चेन्नई के जाने-माने जौहरी वुम्मिदी बंगारू चेट्टी को सौंपा गया था.
वुम्मिदी परिवार का हिस्सा- वुम्मिदी एथिराजुलु (96 वर्ष) और वुम्मिदी सुधाकर (88 वर्ष) सेंगोल के निर्माण में शामिल थे. वो आज भी जीवित हैं.
Tags: Jawahar Lal Nehru, Parliament houseFIRST PUBLISHED : June 27, 2024, 15:29 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed