जब छीन लिया गया बाल ठाकरे का वोट का अधिकार राष्ट्रपति को क्यों देनी पड़ी सजा

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए डॉ. रमेश प्रभु का चुनाव तो रद्द कर दिया, लेकिन उनका चुनाव जिन बाल ठाकरे के भाषणों की वजह से रद्द हुआ, उनकी सजा पर पेंच फंस गया.

जब छीन लिया गया बाल ठाकरे का वोट का अधिकार राष्ट्रपति को क्यों देनी पड़ी सजा
लोकसभा चुनाव (Loksabha Election 2024) का तीन चरण संपन्न हो चुका है. अभी चार चरणों का मतदान बाकी है. इस बीच तमाम राज्यों से आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct) के उल्लंघन की खबरें भी आ रही हैं. चुनाव आयोग ने तमाम दलों और उनके नेताओं को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है. आचार संहिता के उल्लंघन और उसके एवज में मिली सजा का एक किस्सा बहुत मशहूर है, जो साल 1987 का है. तब चुनाव आयोग ने शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे से वोट देने का अधिकार ही छीन लिया था. 1987 का वो उप-चुनाव साल 1987 में महाराष्ट्र में विले पार्ले विधानसभा सीट पर उप-चुनाव हो रहा था. इस सीट पर कांग्रेस की तरफ से प्रभाकर काशीनाथ कुंटे खड़े थे. तो दूसरी तरफ, डॉ रमेश यशवंत प्रभु निर्दलीय मैदान में थे. उन्हें शिवसेना का समर्थन था. उस वक्त तक शिवसेना एक राजनीतिक पार्टी नहीं बनी थी, लेकिन महाराष्ट्र में दबदबा था. शिवसेना के फायर ब्रांड नेता बाल ठाकरे खुद डॉ. रमेश प्रभु के लिए वोट मांगने मैदान में उतर पड़े. उनकी रैली और सभाओं में भारी भीड़ उमड़ने लगी. 13 दिसंबर 1987 को वोटिंग हुई और अगले दिन यानी 14 दिसंबर को रिजल्ट आया. रमेश प्रभु (Ramesh Prabhu) ने कांग्रेस उम्मीदवार प्रभाकर कुंटे को हराकर जीत हासिल की. इससे पहले तक यह सीट कांग्रेस के पास ही हुआ करती थी. फिर शुरू हुई असली कहानी यहां तक सब कुछ ठीक था, लेकिन असली कहानी इसके बाद शुरू हुई. उपचुनाव में हार के बाद कांग्रेस नेता प्रभाकर कुंटे हाई कोर्ट पहुंच गए. उन्होंने आरोप लगाया कि डॉ. रमेश प्रभु ने भड़काऊ और नफरत फैलाने वाले बयानों की वजह से जीत हासिल की. इसलिये चुनाव रद्द किया जाना चाहिए. करीब 2 साल कोर्ट में सुनवाई चलती रही और 7 अप्रैल 1989 को हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया. ये भी पढ़ें: बिहार का वो चुनाव जिसमें टीएन शेषन को उतारने पड़े कमांडो, लालू यादव हो गए थे आग-बबूला हाईकोर्ट ने डॉ. रमेश प्रभु और बाल ठाकरे दोनों को लोक प्रतिनिधित्व कानून 1951 के उल्लंघन का दोषी पाया और उप-चुनाव रद्द कर दिया. डॉ रमेश प्रभु, सुप्रीम कोर्ट भी गए लेकिन उन्हें राहत नहीं मिली. उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा. राष्ट्रपति के पास गया केस सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए डॉ. रमेश प्रभु का चुनाव तो रद्द कर दिया, लेकिन उनका चुनाव जिन बाल ठाकरे के भाषणों की वजह से रद्द हुआ, उनकी सजा पर पेंच फंस गया, क्योंकि वह किसी सार्वजनिक पद पर थे ही नहीं. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने बाल ठाकरे का मामला राष्ट्रपति को भेजा. उस वक्त के. आर. नारायणन राष्ट्रपति हुआ करते थे और डॉ. मनोहर सिंह गिल मुख्य चुनाव आयुक्त थे. 6 साल के लिए मिली सजा राष्ट्रपति ने बाल ठाकरे का मामला चुनाव आयोग को भेजा और चुनाव आयोग ने 22 सितंबर 1998 को अपनी सिफारिश भेजी. जिसमें लिखा गया कि बाल ठाकरे को 6 साल के लिए मताधिकार से वंचित कर दिया जाए. राष्ट्रपति ने चुनाव आयोग की सिफारिश को मंजूरी देते हुए 28 जुलाई 1999 को बाल ठाकरे का मताधिकार का अधिकार 6 साल के लिए छीन लिया. यह सजा 10 दिसंबर 2001 तक लागू रही. इस सजा के चलते बाल ठाकरे 1999 के लोकसभा चुनाव और महाराष्ट्र विधानसभा में अपना वोट नहीं डाल पाए थे. Tags: 2024 Loksabha Election, Loksabha Election 2024, Loksabha ElectionsFIRST PUBLISHED : May 12, 2024, 11:26 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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