Explainer: क्या है समान नागरिक संहिता जिसकी रिपोर्ट उत्तराखंड में हो रही पेश

UCC : उत्तराखंड राज्य में यूसीसी यानि समान नागरिक संहिता बिल पेश होने जा रहा है. अगर सबकुछ ठीक रहा और इसे विधानसभा ने पास कर दिया तो ये राज्य में अक्टूबर - नवंबर से कानून का रूप ले लेगा. क्या है ये कानून, जिसे लेकर देश में कभी एकमत राय नहीं रही है.

Explainer: क्या है समान नागरिक संहिता जिसकी रिपोर्ट उत्तराखंड में हो रही पेश
हाइलाइट्स यूसीसी कई देशों में लागू है, जिसमें पड़ोसी देश भी हैं पिछले टर्म में एनडीए सरकार इसको लाना चाहती थी इसके लागू होने पर धार्मिक कानून के बहुत से प्रावधान एक समान हो जाएंगे आजादी के बाद पहले जनसंघ और अब बीजेपी के मुख्‍य तीन एजेंडा रहे हैं. इनमें पहला जम्‍मू-कश्‍मीर से अनुच्‍छेद-370 को हटाना था. दूसरा, अयोध्‍या में राममंदिर का निर्माण कराना और तीसरा पूरे देश में समान नागरिक संहिता लागू कराना. पहले दो एजेंडा पर काम खत्‍म करने के बाद अब बीजेपी यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने पर जोर दे रही है. इसी के पहले कदम के तौर पर उत्तराखंड में समान नागरिक संंहिता की रिपोर्ट विधानसभा में पेश की जाएगी. राज्य सरकार का इरादा इसे अक्टूबर नवंबर तक राज्य में लागू कर देना है. अगर ये काम उत्तराखंड में हो गया तो इसी क्रम में देश के दूसरे राज्यों में ये लागू करने की कोशिश हो सकती है. हालांकि बीजेपी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार पिछले टर्म में ही इसे लाना चाहती थी. केंद्र सरकार ने तब 21वें विधि आयोग से यूसीसी पर सुझाव मांगे थे. विधि आयोग ने 2018 में ‘पारिवारिक कानून में सुधार’ नाम से सुझाव पत्र प्रकाशित किया. इसमें कहा गया था कि अभी देश में समान नागरिक संहिता की जरूरत नहीं है. उसके बाद 22वें विधि आयोग ने कहा इस पर फिर से विचार करना जरूरी है. यूनिफॉर्म सिविल कोड या यूसीसी है क्‍या? यूनिफॉर्म सिविल कोड का मतलब है कि हर धर्म, जाति, संप्रदाय, वर्ग के लिए पूरे देश में एक ही नियम. दूसरे शब्‍दों में कहें तो समान नागरिक संहिता का मतलब है कि पूरे देश के लिए एक समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने के नियम एक ही होंगे. सं विधान के अनुच्छेद-44 में सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू करने की बात कही गई है. अनुच्छेद-44 संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में शामिल है. इस अनुच्छेद का उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य’ के सिद्धांत का पालन करना है. बता दें कि भारत में सभी नागरिकों के लिए एक समान ‘आपराधिक संहिता’ है, लेकिन समान नागरिक कानून नहीं है. सुप्रीम कोर्ट कई बार अपने फैसलों में समान नागरिक संहिता को लागू करने पर जोर दे चुका है. पहली बार कब हुआ यूसीसी का जिक्र समान नागरिक कानून का जिक्र 1835 में ब्रिटिश सरकार की एक रिपोर्ट में भी किया गया था. इसमें कहा गया था कि अपराधों, सबूतों और ठेके जैसे मुद्दों पर समान कानून लागू करने की जरूरत है. इस रिपोर्ट में हिंदू-मुसलमानों के धार्मिक कानूनों से छेड़छाड़ की बात नहीं की गई. हालांकि, 1941 में हिंदू कानून पर संहिता बनाने के लिए बीएन राव समिति का गठन किया गया. राव समिति की सिफारिश पर 1956 में हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और सिखों के उत्तराधिकार मामलों को सुलझाने के लिए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम विधेयक को अपनाया गया. हालांकि, मुस्लिम, ईसाई और पारसियों लोगों के लिये अलग कानून रखे गए थे. डॉ. अंबेडकर ने यूसीसी पर क्‍या कहा था भारतीय संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कहा था कि हमारे पास पूरे देश में एक समान और पूर्ण आपराधिक संहिता है. ये दंड संहिता और आपराधिक प्रक्रिया संहिता में शामिल है. साथ ही हमारे पास संपत्ति के हस्तांतरण का कानून है, जो संपत्ति और उससे जुड़े मामलों से संबंधित है. ये पूरे देश में समान रूप से लागू है. इसके अलावा नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट हैं. उन्‍होंने संविधान सभा में कहा कि मैं ऐसे कई कानूनों का हवाला दे सकता हूं, जिनसे साबित होगा कि देश में व्यावहारिक रूप से समान नागरिक संहिता है. इनके मूल तत्व समान हैं और पूरे देश में लागू हैं. डॉ. अंबेडकर ने कहा कि सिविल कानून विवाह और उत्तराधिकार कानून का उल्लंघन करने में सक्षम नहीं हैं. अभी क्या है समान नागरिक संहिता का हाल भारतीय अनुबंध अधिनियम-1872, नागरिक प्रक्रिया संहिता, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम-1882, भागीदारी अधिनियम-1932, साक्ष्य अधिनियम-1872 में सभी नागरिकों के लिए समान नियम लागू हैं. वहीं, धार्मिक मामलों में सभी के लिए कानून अलग हैं. इनमें बहुत ज्‍यादा अंतर है. हालांकि, भारत जैसे विविधता वाले देश में इसको लागू करना इतना आसान नहीं है. देश का संविधान सभी को अपने-अपने धर्म के मुताबिक जीने की पूरी आजादी देता है. संविधान के अनुच्छेद-25 में कहा गया है कि कोई भी अपने हिसाब धर्म मानने और उसके प्रचार की स्वतंत्रता रखता है. अब तक देश में क्‍यों लागू नहीं हो पाया यूसीसी भारत का सामाजिक ढांचा विविधता से भरा हुआ है. हालात ये हैं कि एक ही घर के सदस्‍य अलग-अलग रीति-रिवाजों को मानते हैं. अगर आबादी के आधार पर देखें तो देश में हिंदू बहुसंख्‍यक हैं. लेकिन, अलग राज्‍यों के हिंदुओं में ही धार्मिक मान्‍यताएं और रीति-रिवाजों में काफी अंतर देखने को मिल जाएगा. इसी तरह मुसलमानों में शिया, सुन्‍नी, वहावी, अहमदिया समाज में रीति रिवाज और नियम अलग हैं. ईसाइयों के भी अलग धार्मिक कानून हैं. वहीं, किसी समुदाय में पुरुष कई शादी कर सकते हैं. कहीं विवाहित महिला को पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं मिल सकता तो कहीं बेटियों को भी संपत्ति में बराबर का अधिकार दिया गया है. समान नागरिक संहिता लागू होते ही ये सभी नियम खत्म हो जाएंगे. हालांकि, संविधान में नगालैंड, मेघालय और मिजोरम के स्‍थानीय रीति-रिवाजों को मान्यता व सुरक्षा देने की बात कही गई है. शीर्ष अदालत का समान नागरिक संहिता पर रुख – ट्रिपल तलाक से जुड़े 1985 के चर्चित शाह बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अनुच्छेद 44 एक ‘मृत पत्र’ जैसा हो गया है. साथ ही कोर्ट ने देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की जरूरत पर जोर दिया था. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि समान नागरिक संहिता विरोधी विचारधाराओं वाले कानून के प्रति असमान वफादारी को हटाकर राष्ट्रीय एकीकरण में मदद करेगी. – बहुविवाह से जुड़े सरला मुद्गल बनाम भारत संघ मामले में शीर्ष अदालत ने कहा था कि पं. जवाहर लाल नेहरू ने 1954 में संसद में समान नागरिक संहिता के बजाय हिंदू कोड बिल पेश किया था. इस दौरान उन्‍होंने बचाव करते हुए कहा था कि यूसीसी को आगे बढ़ाने की कोशिश करने का यह सही समय नहीं है. – गोवा के लोगों से जुड़े 2019 के उत्तराधिकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, ‘राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों की चर्चा करने वाले भाग चार के अनुच्छेद-44 में संविधान के संस्थापकों ने अपेक्षा की थी कि राज्य भारत के सभी क्षेत्रों में नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करने की कोशिश करेगा. लेकिन, आज तक इस पर कोई कदम नहीं उठाया गया. किस राज्‍य में लागू है यूनिफॉर्म सिविल कोड समान नागरिक संहिता के मामले में गोवा अपवाद है. गोवा में यूसीसी पहले से ही लागू है. बता दें कि संविधान में गोवा को विशेष राज्‍य का दर्जा दिया गया है. वहीं, गोवा को पुर्तगाली सिविल कोड लागू करने का अधिकार भी मिला हुआ है. राज्‍य में सभी धर्म और जातियों के लिए फैमिली लॉ लागू है. इसके मुताबिक, सभी धर्म, जाति, संप्रदाय और वर्ग से जुड़े लोगों के लिए शादी, तलाक, उत्‍तराधिकार के कानून समान हैं. गोवा में कोई भी ट्रिपल तलाक नहीं दे सकता है. रजिस्‍ट्रेशन कराए बिना शादी कानूनी तौर पर मान्‍य नहीं होगी. संपत्ति पर पति-पत्‍नी का समान अधिकार है. हालांकि, यहां भी एक अपवाद है. जहां मुस्लिमों को गोवा में चार शादी का अधिकार नहीं है. वहीं, हिंदुओं को दो शादी करने की छूट है. हालांकि, इसकी कुछ शर्तें भी हैं. दुनिया के किन देशों में लागू है यूसीसी दुनिया के कई देशों में समान नागरिक संहिता लागू है. इनमें हमारे पड़ोसी देश पाकिस्‍तान और बांग्‍लादेश भी शामिल हैं. इन दोनों देशों में सभी धर्म और संप्रदाय के लोगों पर शरिया पर आधारित एक समान कानून लागू होता है. इनके अलावा इजरायल, जापान, फ्रांस और रूस में भी समान नागरिक संहिता लागू है. हालांकि, कुछ मामलों के लिए समान दीवानी या आपराधिक कानून भी लागू हैं. यूरोपीय देशों और अमेरिका में धर्मनिरपेक्ष कानून है, जो सभी धर्म के लोगों पर समान रूप से लागू होता है. दुनिया के ज्‍यादातर इस्लामिक देशों में शरिया पर आधारित एक समान कानून है, जो वहां रहने वाले सभी धर्म के लोगों को समान रूप से लागू होता है. यूसीसी के बाद भारत में क्या होंगे बदलाव भारत में अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होता है तो लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ा दी जाएगी. इससे वे कम से कम ग्रेजुएट तक की पढ़ाई पूरी कर सकेंगी. वहीं, गांव स्‍तर तक शादी के पंजीकरण की सुविधा पहुंचाई जाएगी. अगर किसी की शादी पंजीकृत नहीं होगी तो दंपति को सरकारी सुविधाओं का लाभ नहीं मिलेगा. पति और पत्‍नी को तलाक के समान अधिकार मिलेंगे. एक से ज्‍यादा शादी करने पर पूरी तरह से रोक लग जाएगी. नौकरीपेशा बेटे की मौत होने पर पत्‍नी को मिले मुआवजे में माता-पिता के भरण पोषण की जिम्‍मेदारी भी शामिल होगी. उत्‍तराधिकार में बेटा और बेटी को बराबर का हक होगा. ये बड़े बदलाव भी किए जाएंगे लागू पत्‍नी की मौत के बाद उसके अकेले माता-पिता की देखभाल की जिम्‍मेदारी पति की होगी. वहीं, मुस्लिम महिलाओं को बच्‍चे गोद लेने का अधिकार मिल जाएगा. उन्‍हें हलाला और इद्दत से पूरी तरह से छुटकारा मिल जाएगा. लिव-इन रिलेशन में रहने वाले सभी लोगों को डिक्लेरेशन देना पड़ेगा. पति और पत्‍नी में अनबन होने पर उनके बच्‍चे की कस्‍टडी दादा-दादी या नाना-नानी में से किसी को दी जाएगी. बच्‍चे के अनाथ होने पर अभिभावक बनने की प्रक्रिया आसान हो जाएगी. Tags: Uniform Civil Code, Uttarakhand assembly, Uttarakhand big newsFIRST PUBLISHED : July 12, 2024, 08:53 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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