किस देश में पहली बार हुए थे आम चुनाव किन देशों में अनिवार्य है मतदान करना
किस देश में पहली बार हुए थे आम चुनाव किन देशों में अनिवार्य है मतदान करना
आज 13 राज्यों की 88 लोकसभा सीटों के लिए मतदान जारी है. आजाद भारत में पहले लोकसभा चुनाव 1951-52 में हुए थे. लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुनिया में सबसे पहले आम चुनाव किस देश में हुए थे. मौजूदा समय में दुनिया के किन देशों में मतदान अनिवार्य है.
चुनाव सार्वजनिक पद के लिए किसी व्यक्ति का चयन या मतदान के जरिये किसी राजनीतिक प्रस्ताव को स्वीकार या अस्वीकार करने की औपचारिक प्रक्रिया को कहा जाता है. मौजूदा दौर में दुनिया के ज्यादातर देशों में चुनाव के जरिये जनप्रतिधियों का चयन होता है. प्राचीन एथेंस, रोम में पोप व सम्राटों के चयन में चुनाव प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जाता था. वहीं, आम चुनाव की बात करें तो दुनिया में ये प्रक्रिया 17वीं शताब्दी की शुरुआत में यूरोप और उत्तरी अमेरिका में हुई थी. पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमेरिका में 1920 तक करीब-करीब हर जगह वयस्क पुरुष के लिए मताधिकार सुनिश्चित किया गया था. कुछ समय बाद तक महिलाओं को मताधिकार नहीं मिल पाया था.
ब्रिटेन में 1928 में महिलाओं को मतदान का अधिकार मिला. इसके बाद फ्रांस में 1944, बेल्जियम में 1949 और स्विट्जरलैंड में 1971 में महिलाओं को भी मताधिकार हासिल हुआ. लोकतांत्रिक प्रणाली के तहत नागरिकों को मिले सभी अधिकारों में मताधिकार को सबसे बड़ा माना गया है. बावजूद इसके बड़ी तादाद में लोग चुनावी महापर्व में मतदान करने से कतराते हैं. मतदान के दिन को काफी लोग छुट्टी का दिन मान लेते हैं. लिहाजा, दुनिया के 33 देशों ने मतदान को अनिवार्य कर दिया है. कुछ देशों में तो वोट नहीं करने वालों से मताधिकार ही छीन लिया जाता है. वहीं, कुछ देशों में मतदान करने के लिए नहीं निकलने वालों का पासपोर्ट जब्त कर लिया जाता है.
कितने फीसदी मतदाता नहीं डालते वोट
स्वतंत्र चुनाव वाले कई देशों में बड़ी संख्या में नागरिक मतदान नहीं करते हैं. स्विट्जरलैंड और अमेरिका में होने वाले ज्यादातर चुनावों में आधे से भी कम मतदाता वोट करते हैं. ऐसे में सार्वभौमिक मताधिकार प्रतिस्पर्धी चुनावी राजनीति के लिए आवश्यक शर्त नहीं रह गया है. 18वीं शताब्दी में राजनीतिक क्षेत्र तक पहुंच काफी हद तक अभिजात वर्ग की सदस्यता पर निर्भर थी. चुनावों में भागीदारी मुख्य रूप से स्थानीय रीति-रिवाजों और व्यवस्थाओं से नियंत्रित होती थी. हालांकि, अमेरिकी और फ्रांसीसी क्रांतियों ने औपचारिक रूप से हर नागरिक को एकदूसरे के बराबर घोषित कर दिया. इसके बाद वोट राजनीतिक शक्ति का साधन बना रहा, जो बहुत कम लोगों के पास था.
कुछ वर्गों को एक से ज्यादा वोट का अधिकार
मताधिकार मिलने के बाद भी सभी देशों में ‘एक व्यक्ति, एक वोट’ का आदर्श हासिल नहीं किया जा सका था. इससे कुछ सामाजिक समूहों को चुनावी लाभ मिलता रहा. ब्रिटेन में 1948 तक विश्वविद्यालय के स्नातकों और कारोबारियों को अपने निर्वाचन क्षेत्रों के अलावा दूसरे क्षेत्रों में एक से अधिक मतदान करने की छूट थी. प्रथम विश्व युद्ध से पहले ऑस्ट्रिया और प्रशिया में वोटों की तीन श्रेणियां थीं. इससे उच्च सामाजिक स्तर वाले लोगों के हाथों में चुनावी तातक सीमित रही. अमेरिका में 1965 में मतदान अधिकार अधिनियम के पारित होने तक ज्यादातर अफ्रीकी अमेरिकियों और खास तौर पर दक्षिण में रहने वाल लोगों को मतदान करने से रोक कर रखा था.
ये भी पढ़ें – मंगलसूत्र क्या है, इसकी शुरुआत कहां से हुई, भारत ही नहीं सीरिया समेत कई देशों में पहनती हैं महिलाएं
अमेरिका में मध्यावधि चुनाव क्या होता है
अमेरिका में राष्ट्रपति के कार्यकाल के दो साल बाद मध्यावधि चुनाव निर्धारित करते हैं कि कांग्रेस की कई सीटों पर कौन काम करेगा. पश्चिमी यूरोप में 19वीं और 20वीं शताब्दी में बढ़ते प्रतिस्पर्धी आम चुनावों का मकसद उस क्षेत्र के देशों में मौजूद विविधता को संस्थागत बनाना था. हालांकि, दूसरे विश्व युद्ध के अंत से लेकर 1989-90 तक पूर्वी यूरोप और सोवियत संघ के एक दलीय कम्युनिस्ट शासन के तहत बड़े पैमाने पर चुनावों के काफी अलग उद्देश्य और परिणाम थे. हालांकि, इन सरकारों में प्रतिस्पर्धी चुनाव नहीं हुए. दरअसल, मतदाताओं के पास मतदान करने के लिए विकल्प ही नहीं होते थे. इन देशों में चुनाव 19वीं सदी के नेपोलियन जनमत संग्रह के जैसे ही थे. इनका मकसद लोगों की विविधता के बजाय एकता दिखाना होता था.
ये भी पढ़ें – Explainer – दुनिया में कहां सबसे महंगा टोल, कहां घर से गाड़ी निकालते ही लगता है कंजेशन चार्ज
मतदाता कैसे जता सकते हैं सहमति
पूर्वी यूरोप में मतपत्र पर उम्मीदवार का नाम काटकर असहमति दर्ज की जा सकती थी. सोवियत संघ में 1989 से पहले लाखों नागरिक हर चुनाव में इसका इस्तेमाल करते थे. लेकिन, गुप्त मतदान नहीं होने के कारण इस व्यवस्था की वजह से प्रतिशोध का माहौल बनने लगा. वहीं, पोलैंड में पदों के मुकाबले मतपत्रों पर प्रत्याशियों के ज्यादा नाम आए. इससे मतदाताओं को कुछ हद तक चुनावी विकल्प मिले. उपनिवेशवाद से मुक्ति के बाद 1950 और 60 के दशक में कई देशों में चुनाव हुए. हालांकि, उनमें से कई शासन के सत्तावादी रूपों में वापस आ गए. हालांकि, बोत्सवाना और गाम्बिया जैसे कुछ अपवाद भी थे.
कब-कब कहां शुरू हुए आम चुनाव
1970 के दशक के आखिर में जब सैन्य तानाशाही और दक्षिणी अफ्रीका के देशों में उपनिवेशवाद खत्म हुआ तो कुछ देशों में चुनाव शुरू हुए. शीत युद्ध खत्म होने और विकसित देशों से सैन्य व आर्थिक सहायता में कमी के कारण 1990 के दशक की शुरुआत में बेनिन, माली, दक्षिण अफ्रीका और जाम्बिया समेत एक दर्जन से ज्यादा अफ्रीकी देशों में प्रतिस्पर्धी चुनाव हुए. लैटिन अमेरिका में भी चरणों में प्रतिस्पर्धी चुनाव शुरू किए गए. अर्जेंटीना, चिली, कोलंबिया और उरुग्वे में 1828 के बाद चुनाव हुए. हालांकि, चिली को छोड़कर सभी अधिनायकवाद की ओर लौट गए. बाकी देशों में करीब 1943 से 1962 की अवधि में चुनाव शुरू हुए. हालांकि, फिर भी कई देशों में लोकतांत्रिक सरकारें बरकरार नहीं रहीं. 1970 के दशक के मध्य में धीरे-धीरे लैटिन अमेरिका में प्रतिस्पर्धी चुनाव शुरू किए गए.
ये भी पढ़ें – मिनिमम 33% पर ही क्यों होते हैं पास? क्या ऐसा भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान में ही, क्या पासिंग मार्क्स बढ़ाने की जरूरत
एशिया में कब शुरू किए गए आम चुनाव
एशिया में दूसरा विश्व युद्ध खत्म होने के बाद प्रतिस्पर्धी चुनाव हुए. भारत, इंडोनेशिया, मलेशिया और फिलीपींस में उपनिवेशवाद खत्म होने के बाद चुनाव हुए. इनमें फिलीपींस फिर अधिनायकवाद की ओर लौट गया. हालांकि, 1970 के दशक की शुरुआत में फिलीपींस और दक्षिण कोरिया समेत कई देशों में प्रतिस्पर्धी चुनाव फिर से शुरू किए गए. तुर्की, इराक और इजराइल को छोड़कर मध्य पूर्व के देशों में प्रतिस्पर्धी चुनाव दुर्लभ हैं. कई देशों में सत्तावादी शासन ने वैधता हासिल करने के तरीके के तौर पर चुनावों का इस्तेमाल किया. तानाशाही में विपक्ष का दमन करने के बाद चुनाव कराए गए क्योंकि उनका विरोध संभव ही नहीं था.
ये भी पढ़ें – शोध में दावा, कागज पर लिखकर फाड़ दें वजह तो खत्म हो जाएगा गुस्सा, आखिर क्यों आता है क्रोध
किन देशों में है अनिवार्य मतदान का नियम
मतदान को शत-प्रतिशत बनाने के लिए कुछ देशों ने अनिवार्य मतदान का नियम लागू किया. इसका मतलब है कि कानून के अनुसार किसी चुनाव में मतदाता को अपना मत देना या मतदान केंद्र पर मौजूद होना जरूरी है. इनमें बेल्जियम, स्विटजरलैंड, आस्ट्रेलिया, सिंगापुर, अर्जेंटीना, आस्ट्रिया, साइप्रस, पेरू, ग्रीस और बोलीविया शामिल हैं. सिंगापुर में अगर वोट नहीं करते हैं तो मतदान के अधिकार तक छीन लिए जाते हैं. ब्राजील में मतदान नहीं करने पर पासपोर्ट जब्त कर लिया जाता है. बोलिविया में मतदान नहीं करने पर तीन माह का वेतन वापस ले लिया जाता है. बेल्जियम में तो 1893 से ही वोटिंग नहीं करने पर जुर्माने का प्रावधान है.
19 देशों में मतदान नहीं करने पर सजा
दुनिया में 19 देश ऐसे भी हैं, जहां मतदान नहीं करने पर सजा का प्रावधान है. इनमें ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, बेल्जियम, ब्राजील, चिली, साइप्रस, कांगो, इक्वाडोर, फिजी, पेरू, सिंगापुर, तुर्की, उरुग्वे और स्विट्जरलैंड शामिल हैं. अनिवार्य मतदान नियम लागू करने वाले 33 में 19 देशों में इस नियम को तोड़ऩे पर सजा भी दी जाती है. आस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, ब्राजील, सिंगापुर, तुर्की, बेल्जियम समेत 19 देशों में चुनावी प्रक्रिया करीब-करीब भारत जैसी ही है.
.
Tags: 2024 Lok Sabha Elections, European Union Countries, General ElectionFIRST PUBLISHED : April 26, 2024, 14:56 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed