मुस्लिमों में पति क्यों देते हैं मेहर क्यों माना जाता है बीवियों का अधिकार

Mehr in Muslim Marriage: मुस्लिमों में शादी एक करार होती है. इस शादी में हक मेहर की भी महत्वपूर्ण भूमिका है. इस रस्म के अनुसार दूल्हे को शादी के समय दुल्हन को पैसे, गहने या कोई संपत्ति देनी होती है.

मुस्लिमों में पति क्यों देते हैं मेहर क्यों माना जाता है बीवियों का अधिकार
Mehr in Muslim Marriage: ऑस्कर पुरस्कार विजेता सिंगर और म्युजिक कंपोजर एआर रहमान और उनकी पत्नी सायरा बानू ने तलाक लेने का फैसला कर लिया है. दोनों की यह अरेंज मैरिज थी और लगभग 29 साल पहले हुई थी. एआर रहमान और सायरा बानू के तीन बच्चे हैं. उनके दो बेटियां खतीजा-रहीमा और एक बेटा अमीन है. यह शादी टूटने की वजह ‘इमोशनल स्ट्रेन’ बताया जा रहा है.   मुस्लिमों में शादी एक कॉन्ट्रैक्ट की तरह होती है. हालांकि अब बदले हुए हालात में इस बात को लेकर विवाद है कि मुस्लिमों में शादी केवल एक कॉन्ट्रैक्ट नहीं है, बल्कि यह एक संस्कार भी है. मुस्लिम शादी को कॉन्ट्रैक्ट की तरह पेश करने में शायद हक मेहर की बड़ी भूमिका है, जो इसका एक जरूरी हिस्सा है. इस रस्म के अनुसार दूल्हे को  शादी के समय दुल्हन को मेहर के रूप में पैसे, गहने या कोई संपत्ति देनी होती है. जाहिर है कि तलाक के बाद एआर रहमान भी अपनी पत्नी सायरा बानू को मेहर की रकम अदा करेंगे.   ये भी पढ़ें- गुजरात में है ‘एशिया का सबसे अमीर गांव’, क्या है इसकी संपन्नता का राज एक सिक्योरिटी है मेहर वैसे आम तौर पर इस रस्म में मेहर में कोई रकम ही अदा करने की बात की जाती है. लेकिन मेहर सोना या कोई दूसरी कीमती चीजें देने का भी प्रचलन है. इसे दुल्हन के जीवन के सुरक्षा के तौर पर भी जाना जाता है. अगर भविष्य में किसी वजह से रिश्ता न चल सके तो वह मेहर की रकम से अपना जीवन यापन कर सके. मेहर की रकम कितनी हो इसकी कोई लिमिट नहीं है. यह दोनों की आर्थिक स्थिति के हिसाब से तय किया जाता है. कुछ इस्लामिक विद्वानों ने मेहर को एक सिक्योरिटी की तरह पेश किया है. क्योंकि मुस्लिम शादी में दिया जाने वाला मेहर मुअज्जल और मुवज्जल दोनों होता है अर्थात तुरंत दिया जाता है और तलाक या मृत्यु के समय भी दिया जाता है. ये भी पढ़ें- Explainer: क्या सुप्रीम कोर्ट दे सकता है राष्ट्रपति को निर्देश? इस बारे में क्या कहता है संविधान  कितनी तरह के मेहर निश्चित मेहर (मेहर ए मुसम्मा) उचित मेहर (मेहर ए मिस्ल) यदि शादी में मेहर में दी जाने वाली धनराशि या संपत्ति का जिक्र हो तो ऐसा मेहर निश्चित मेहर होता है. यदि शादी करने वाले वयस्क हैं तो वह मेहर की धनराशि शादी के समय तय कर सकते हैं. यदि किसी नाबालिग की शादी का कॉन्ट्रैक्ट उसके गार्जियन द्वारा किया जाता है तो ऐसा गार्जियन शादी के समय धनराशि तय कर सकता है, लेकिन भारत में वयस्क होने पर ही शादी करने की अनुमति है और बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम के तहत नाबालिग द्वारा विवाह करना अपराध है.  निश्चित मेहर को दो भागों में बांटा गया है. मेहर ए मुअज्जल और मेहर ए मुवज्जल मुअज्जल मेहर यह शादी के बाद मांग पर तत्काल देय होता है. पत्नी मेहर के मूल भाग के भुगतान के समय तक पति के साथ दांपत्य जीवन में प्रवेश करने से इनकार कर सकती है. विवाह हो जाने पर मुअज्जल मेहर तत्काल देय होता है और मांग पर तत्काल अदायगी जरूरी है. यह विवाह के पहले या बाद किसी भी समय वसूल किया जा सकता है. अगर शादी नहीं हुई है और मुअज्जल मेहर की अदायगी न होने के कारण पत्नी पति के साथ नहीं रहती है. तो ऐसे में पति द्वारा लाया गया दांपत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना का वाद खारिज कर दिया जाएगा. ये भी पढ़ें- नवसारी के दस्तूर परिवार को कैसे मिला टाटा सरनेम, बेहद रोचक है इसकी कहानी मुवज्जल मेहर यह मृत्यु या तलाक हो जाने पर अथवा करार द्वारा निर्धारित किसी निश्चित घटना के घटित होने पर देय होता है. विवाह का पूर्ण पालन कराने के लिए पति को विवश करने के उद्देश्य से भारत में मुवज्जल मेहर की राशि सामान्यता अत्यधिक होती है. मुवज्जल मेहर में मृत्यु या तलाक होने पर देय होता है इसलिए पत्नी मुवज्जल मेहर की मांग विवाह के पूर्व सामान्यता नहीं कर सकती है. परंतु अगर शादी टूटने के पहले उसके भुगतान किए जाने का कोई करार हो तो ऐसा करार मान्य और बंधनकारी होता है. शादी के समय अथवा निश्चित घटना के घटित होने के पहले पत्नी मुवज्जल मेहर की मांग नहीं कर सकती है, परन्तु पति इसके पूर्व भी ऐसा मेहर उसे अदा कर सकता है. मुवज्जल मेहर में पत्नी का हित निहित होता है. उसकी मृत्यु के बाद भी वह बदल नहीं सकता. उसके मर जाने पर उसके उत्तराधिकारी उसका दावा कर सकते हैं. उचित मेहर hindi.livelaw.in के अनुसार इसका उस स्थिति में उपयोग किया जाता है जब मेहर तय नहीं हो. ऐसे में उचित मेहर के सिद्धांत को प्रयोग में लिया जाता है. तत्कालीन परिस्थितियां, पति की आर्थिक स्थिति, सामाजिक स्थिति और समाज में अन्य महिलाओं को प्राप्त होने वाले मेहर इत्यादि नियमों को देखकर विवाह के अनुबंध में मेहर तय नहीं होने के कारण उचित मेहर रखा जाता है.  ये भी पढ़ें- Explainer: क्या मणिपुर के बाद सुलगेगा नागालैंड? अलगाववादियों की धमकी नॉर्थईस्ट के लिए नया सिरदर्द मेहर न मिलने पर पत्नी के अधिकार पति के साथ संभोग करने से इनकार करना. कर्ज के रूप में मेहर की धनराशि का अधिकार. मृतक पति की संपत्ति पर कब्जा रखना. यदि किसी मुस्लिम स्त्री को उसके मेहर का भुगतान नहीं किया जाता है और मेहर मुवज्जल रखा गया था या बाद में देने का कह दिया गया था और नहीं दिया गया तो ऐसी स्थिति में संकट उत्पन्न होता है.  इस स्थिति में मुस्लिम स्त्री क्या अधिकार रखती है… यदि पति द्वारा मेहर की अदायगी नहीं की जाती है तो पत्नी उसके साथ दांपत्य जीवन जीने से इनकार कर सकती है. पति तब तक दांपत्य जीवन की शुरुआत के लिए कोई मुकदमा नहीं कर सकता, जब तक वो मेहर अदा नहीं कर देता. ये भी पढ़ें- ट्रंप की रैलियों में साये की तरह रहती थीं कैरोलिन लेविट, बनीं व्हाइट हाउस की सबसे युवा प्रेस सेक्रेटरी विधवा की मृत्यु के पश्चात मेहर के लिए केस दायर करने का अधिकार उस स्त्री के उत्तराधिकारियों या वैध प्रतिनिधियों को प्राप्त हो जाता है. मेहर प्राप्त करने हेतु केस करने की सीमा पत्नी या विधवा को अपने मेहर की राशि की वसूली पति या उसके उत्तराधिकारियों के विरुद्ध केस दायर करके प्राप्त करने का अधिकार है. पत्नी की मृत्यु हो जाने पर उसके उत्तराधिकारी केस दायर कर सकते है और पति की मृत्यु की दशा में पति के उत्तराधिकारियों के विरुद्ध केस कर सकते है. परंतु मेहर की वसूली के लिए भारतीय मर्यादा अधिनियम 1963 के अंतर्गत निर्धारित अवधि के अंदर ही मामला पेश हो जाना आवश्यक है, अन्यथा केस खारिज हो जाता है.  मेहर यदि तुरंत देय है तो पत्नी द्वारा इसकी मांग करने की तिथि से 3 वर्ष के अंदर ही वसूली का केस न्यायालय में प्रस्तुत हो जाना चाहिए. शादी टूट जाने के बाद देय मेहर तुरंत देय हो जाता है. परिणामस्वरूप मेहर की वसूली का केस करने की परिसीमा अवधि शादी टूटने की तिथि से 3 वर्ष तक है. पति की मृत्यु के कारण पत्नी यदि उस स्थिति में नहीं हो कि उसे सूचना नहीं है तो 3 वर्ष की अवधि तब से प्रारंभ मानी जाएगी जब विधवा को पति की मृत्यु की सूचना मिलती है. ये भी पढ़ें- बांग्लादेश क्यों बन रहा मुस्लिम देश, क्यों नहीं रहना चाहता सेक्युलर, क्या होगा वहां हिंदुओं का हाल मेहर और दहेज दोनों अलग शरीयत के हिसाब से बाप की जायदाद में बेटे के मुकाबले बेटी का हिस्सा कम होता है. मिसाल के तौर पर जैसे कि पिता के इंतकाल के बाद अगर उनके पास एक लाख रुपये हैं, तो उसमें से बेटे को दो तिहाई और बेटी को एक तिहाई हिस्सा मिलेगा. इसी अंतर को पूरा करने के लिए लड़की की शादी के दौरान उसके शौहर के द्वारा मेहर की रकम दी जाती है, ताकि उसके पास भी उसके भाई के बराबर का हिस्सा हो. बहुत से लोग इस मेहर की रस्म को दहेज से जोड़ते हैं जो गलत है. मेहर और दहेज दोनों अलग-अलग हैं. Tags: AR Rahman, Islam religion, Marriage Law, Muslim MarriageFIRST PUBLISHED : November 20, 2024, 13:11 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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