कैसे आई वायनाड में तबाही खिसकने लगी जमीनगांव हो गए अलगकैसे होता है भूस्खलन

केरल के वायनाड जिले में 30 जुलाई की रात तबाही लेकर आई. लगातार भारी बारिश के बाद ये पहाड़ी इलाका भयंकर भूस्खलन का शिकार हो गया. जमीन खिसकने लगी. कम से कम तीन जगहों पर भूस्खलन के बाद ऐसी तबाही आई कि किसी ने सोचा भी नहीं था. अब तक कम से कम 166 लोगों की मौत हो गई, मरने वालों की तादाद निश्चित रूप से इससे ज्यादा होगी.

कैसे आई वायनाड में तबाही खिसकने लगी जमीनगांव हो गए अलगकैसे होता है भूस्खलन
हाइलाइट्स पहाड़ी ढलाव वाले क्षेत्र में कई दिनों की भारी बारिश ने मिट्टी को कमजोर कर दिया वनकटाव, भारी निर्माण और जलवायु बदलाव ने केरल के इलाकों को आपदा संवेदनशील बना दिया देश में पिछले दस सालों में सबसे ज्यादा भूस्खलन की घटनाएं केरल में ही हुई हैं उत्तर पूर्वी केरल का अकेला पठारी जिला है वायनाड. पश्चिमी घाट पर्वत श्रृंखला में बसा हुआ ये जिला कर्नाटक और तमिलनाडु की सीमा पर है. चायबागानों वाला ये इलाका लोकप्रिय हिल स्टेशन है. 30 जुलाई की रात जब यहां पर लोग चैन की नींद सोए हुए थे. तभी तेज आवाज आई. भारी बारिश के बीच जमीन सरकने लगी. लोग सुरक्षित जगहों की ओर भागे. सुबह 06 बजे तक यहां मुंडक्कई, मेप्पडी और चूरलमाला नूलपुझा कस्बे में जबरदस्त लैंडस्लाइड हो चुका था. आखिर वायनाड में इतनी बड़ी तबाही की वजहें क्या हैं. ये इलाका अक्सर बाढ़ और भूस्खलन का शिकार होता रहा है. आइए जानते हैं कि भूस्खलन क्या होता है और वायनाड में ये तबाही किन कारणों से आई. जब एक ढलान से पहाड़ का हिस्सा या मिट्टी खिसकने लगती है तो उसे भूस्खलन कहते हैं. भूस्खलन तब होता जब पहाड़, ढलान या मिट्टी की पकड़ कमजोर पड़ जाती है. जब चट्टान या मिट्टी के कणों को आपस में जोड़ने वाले ‘गोंद’ जैसी शक्ति कम हो जाती है. वायनाड आपदा में अब तक 174 लोगों की मौत हो चुकी है. भारी वर्षा एक बड़ी वजह वायनाड में कई दिनों से बारिश हो रही थी. ये बारिश काफी ज्यादा और तेज थी. इससे पूरा इलाका जलमग्न हो गया. कीचड़ और पानी की धारा बहने लगी, जिससे स्थानीय घर, इलाका और चाय बागान डूबने लगे. जब ये स्थिति काफी देर तक रही तो भारी वर्षा ने मिट्टी को खासा नरम और कमजोर कर दिया, ये ऊपर का भार संभालने में असमर्थ हो गई, जिससे भूस्खलन हुआ. भौगोलिक स्थिति केरल के लगभग 50% भूभाग में 20 डिग्री से अधिक ढलान है, जो विशेष रूप से मिट्टी के कटाव और भूस्खलन के लिए अतिसंवेदनशील है. वायनाड तो पूरा ही इसी तरह बसा हुआ है. इन इलाकों में बारिश की वजह से मिट्टी ढीली हो जाती है, फिर अस्थिर होकर फिसलने लग सकती है. जुलाई 2022 में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने लोकसभा को बताया कि पिछले सात सालों में केरल में देश में सबसे ज़्यादा भूस्खलन हुए हैं. 2015 से 2022 के बीच हुए 3,782 भूस्खलनों में से 2,239 (करीब 59.2 प्रतिशत) केरल में हुए. देशभर में भूस्खलनों की स्थिति (news18 gfx) निर्माण गतिविधियां भी जिम्मेदार इस संवेदनशील इलाके में पिछले कुछ सालों में काफी निर्माण हुआ. हिल स्टेशन होने की वजह से होटल और अन्य संरचनाओं का निर्माण हुआ, इसने हालत को खराब किया. प्राकृतिक जल निकासी को बाधिक करके मिट्टी के कटाव को बढ़ा दिया. बारिश का पैटर्न जलवायु परिवर्तन के कारण बदला जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून पैटर्न में बदलाव आया है, जिसके परिणामस्वरूप कम अवधि में अधिक तेज और एकजगह पर केंद्रीत बारिश होनी लगी. बेशक मौसमी वर्षा में ज्यादा बदलाव नहीं हुआ लेकिन उसका वितरण असमान हो गया है, कम दिनों में भारी बारिश हो रही है. पानी का अचानक तेज प्रवाह मिट्टी पर हावी हो जाता है, जिससे भूस्खलन की आशंका बढ़ जाती है. अरब सागर का गर्म होना अरब सागर के गर्म होने से गहरे बादल प्रणालियों का बनना शुरू हुआ, जो ज्यादा बारिश लेकर चलते हैं और एक जगह ही बरस जाते हैं. वायुमंडलीय अस्थिरता तीव्र बारिश की घटनाओं की अनुमति देती है, ये भी वायनाड के विनाशकारी भूस्खलन से जुड़ी हुई है. वनों की कटाई और भूमि उपयोग में बदलाव केरल में, विशेष रूप से वायनाड में वन आवरण कम होने से भूस्खलन को लेकर संवेदनशीलता बढ़ी है. वनों की कटाई से मिट्टी की स्थिरता और पानी को अवशोषित करने की क्षमता कम हो जाती है, जिससे भारी बारिश के दौरान भूभाग कटाव और ढहने के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है. 20 डिग्री की ढलान क्या रोल निभाती है. पुणे में भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान के जलवायु वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल का अनुमान है कि पूरे भारत में और केरल से महाराष्ट्र तक पश्चिमी घाटों पर अत्यधिक बारिश तेज हो जाएगी. केरल का लगभग आधा हिस्सा पहाड़ियों और पर्वतीय क्षेत्रों से बना है, जिनकी ढलान 20 डिग्री से अधिक है, जिससे भारी बारिश के दौरान इन क्षेत्रों में भूस्खलन की आशंका बनी रहती है. केरल में इस तरह की आपदाएं बढ़ी हैं केरल में पिछले एक दशक में विनाशकारी बाढ़ और भूस्खलन सहित चरम मौसम की घटनाएं काफी हद तक बढ़ी हैं. 2018 में भयंकर बाढ़ आई, जिसे इतिहास की सबसे भयंकर बाढ़ कहा जाता है. क्या ये अनदेखी का नतीजा है कई एक्सपर्ट्स का कहना है कि ये सब संकेतों की अनदेखी का नतीजा है. क्योंकि ये पूरा इलाका इकोलॉजिकल रूप से संवेदनशील है. यहां हल्के फुल्के भूस्खलन हमेशा होते रहे हैं. पूरा का पूरा पश्चिमी केरल सीधी ढलान वाला पहाड़ी इलाका है, जहां भूस्खलन की प्रबल संभावना रहती है. केरल समेत पूरे पश्चिमी घाट के संरक्षण के लिए एक रणनीति बनाने के लिए 2010 में भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया. जाने माने इकोलॉजिस्ट माधव गाडगिल के नेतृत्व में बनी इस समिति ने पूरे पश्चिमी घाट को तीन ईकोलॉजिकली सेंसिटिव एरिया (ईएसए) क्षेत्रों में बांटा. उन्होंने रिपोर्ट में कहा, इस क्षेत्र में किसी भी तरह की विकास परियोजनाओं की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए.ना खनन, ना ऊर्जा संयत्र और ना कोई बांध बनने चाहिए. उद्योगों से जुड़े लोगों ने और राज्य सरकारों ने इसका विरोध किया. बाद में केंद्र सरकार ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया. फिर वैज्ञानिक कस्तूरीरंगन की अगुवाई में एक समिति बनाई गई. अप्रैल 2013 में बनी समिति की रिपोर्ट में पश्चिमी घाट के केवल 37 प्रतिशत इलाके को ईएसए घोषित करने की जरूरत है. सिर्फ वहीं खनन जैसी गतिविधियों पर रोक लगाई जाए. Tags: Kerala, Kerala News, Natural calamity, Natural DisasterFIRST PUBLISHED : July 31, 2024, 21:25 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed