वो देवता जो सप्तर्षियों की सुंदर बीवियों पर मरमिटा फिर टूट गए ऋषियों के घर

हर घर की रसोई में एक ऐसे देवता का वास होता है, जिसके बगैर कुछ हो ही नहीं सकता. ये उन्हीं देवता की कहानी है कि जब वो सप्तर्षियों की सुंदर पत्नियों पर आसक्त हो गए तो क्या हुआ

वो देवता जो सप्तर्षियों की सुंदर बीवियों पर मरमिटा फिर टूट गए ऋषियों के घर
हाइलाइट्स भेड़ पर सवारी करता है ये देवता, ऋषि पत्नियों पर आया था दिल सुधबुध खो बैठता था ये देवता, जब ऋषियों की पत्नियों की ओर नजर डालता क्यों ऋषियों को लगा कि उनकी बीवियों से संबंध के कारण इस देवता को हुआ बेटा महाभारत में एक प्रसंग है कि किस तरह एक देवता ने ऐसा काम किया कि कोई सोच भी नहीं सकता था. उस चक्कर में नाराज सप्त ऋषियों ने अपनी सुंदर पत्नियों से रिश्ता खत्म कर दिया. क्योंकि उन्हें लगा कि इस देवता को जो बलशाली बेटा हुआ है, उसके पीछे उनकी बीवियों से इस देवता के संबंध हैं, ये देवता हमारे जीवन में इतना महत्वपूर्ण है रसोई में इसके बगैर कुछ हो ही नहीं सकता. इस कथा का जिक्र महाभारत के वन पर्व में ऋषि मार्कंडेय पांडवों से किया. स्वाहा दक्ष की पुत्री थीं. वह अग्निदेव से प्रेम करने लगी. उनका पीछा करने लगीं. अग्नि उन पर ध्यान ही नहीं देते थे. वह सप्तर्षियों के यज्ञ अनुष्ठानों की अध्यक्षता करते थे. फिर एक दिन ऐसा आया कि वह सप्तर्षियों की पत्नियों पर ही फिदा हो गए, वो इतनी आकर्षक थीं कि वो देखते ही रह गए. सप्तऋषियों की पत्नियों के प्रति आकर्षित थे अग्नि देव इन ऋषियों की पत्नियों की लालसा रखने लगे. एक दिन उनकी भावनाएं बेकाबू ही हो गईं. सप्तऋषि जब यज्ञ कर रहे थे तो अग्नि देवता कुंड से बाहर निकले तो उन्होंने देखा ऋषियों की अपूर्व सुंदरी पत्नियां आसन पर बैठीं है और कुछ सो रही हैं. चूंकि बहुत दिनों से अग्नि इन सुंदरियों पर फिदा थे लेकिन उस दिन तो वह इतने कामासक्त हुए कि खुद को संभालना कठिन हो गया. अग्निदेव और उनकी पत्नी स्वाहा. (विकीकामंस) अग्निदेव को दिल मसोसकर रह गए क्योंकि उन्हें मालूम था कि इन सुंदर पत्नियों के पति ऋषि हैं और उन्हें पाना असंभव है. उन्होंने तय किया कि अब वो वन में जाकर देह त्याग देंगे. उन्होंने इस बात पर भी अपराधबोध था कि वो बार- बार क्यों इन ऋषि पत्नियों के लिए गलत सोच रहे हैं. अग्नि देव का वाहन भेड़ है. कुछ छवियों में अग्नि देव को एक रथ पर सवारी करते हुए भी दिखलाया गया है जिसे बकरियों और तोतों द्वारा खींचा जा रहा होता है. स्वाहा करती थी उनसे प्यार अग्निदेव को प्यार करने वाली दक्षकन्या स्वाहा को बहुत बुरा लगता था कि अग्निदेव उसकी भावनाओं की ओर ध्यान नहीं देते. अब तो वह सबकुछ छोड़कर वन की ओर चले गए हैं. चूंकि वह किसी भी हालत में उन्हें पाना चाहती थी लिहाजा रूप बदलकर ऋषियों की पत्नियां बनकर उनके पास जाने के बारे में सोचा. कम से कम ऐसे तो अग्निदेव के करीब आ पाएगी. कैसे ऋषियों की पत्नियां देवता के पास पहुंचीं वह महर्षि अंंगिरा की पत्नी शिवा का रूप धारण करके अग्नि के पास आई. उनके साथ मिलन किया. उसके पास अग्नि का वीर्य लेकर कैलाशपर्वत के एक कांचनकुंड में डाल आई.इसी तरह उसने अन्य ऋषियों की पत्नियों का रूप लेकर भी अग्नि के साथ मिलन किया. बस इसमें वशिष्ठ ऋषि की पत्नी नहीं थीं. हर बार वीर्य को कैलाशपर्वत के उसी कुंड में डालती रही. इससे विलक्षण बालक का जन्म हुआ. और तब ऋषियों ने बीवियों से तोड़ लिये संबंध ऋषियों को कहीं से पता लगा कि उनकी पत्नियां अग्नि के पास गईं थीं, जिससे ये स्कंद नाम का पुत्र पैदा हुआ है. एक ऋषि को छोड़कर सभी ने अपनी पत्नियों को छोड़ दिया. सभी ने उनको समझाया लेकिन उन पर कोई असर नहीं पड़ा. बाद में अग्नि ने समझ लिया कि ये सब स्वाहा की चाल थी. अब वह उससे शादी के लिए सहमत हो गए. उसी दिन से अग्नि को कोई भी भेंट बगैर स्वाहा कहे पूरी नहीं मानी जाती. कौन हैं सप्तऋषि सप्तर्षि या सप्तऋषि उन सात ऋषियों को कहते हैं जिनका उल्लेख वेद और अन्य हिन्दू ग्रंथों में बार-बार हुआ है. हालांकि इनके नाम अलग वेदों, पुराणों और ग्रंथों में अलग हैं. वेदों का अध्ययन करने पर जिन सात ऋषियों या ऋषि कुल के नामों का पता चलता है वे इस तरह हैं – 1.वशिष्ठ, 2.विश्वामित्र, 3.कण्व, 4.भारद्वाज, 5.अत्रि, 6.वामदेव 7.शौनक। विष्णु पुराण के सातवें मन्वन्तर में सप्तऋषि के नाम ये हैं – वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज. इसके अलावा अन्य पुराणों के अनुसार सप्तऋषि की नामावली इस तरह है – क्रतु, पुलह, पुलस्त्य, अत्रि, अंगिरा, वसिष्ठ और मरीचि हर धर्म में ये देवता महत्वपूर्ण हिंदू धर्म में अग्नि अनुष्ठानों और पूजा का केंद्र है. अग्नि का उपयोग होम या यज्ञ जैसे समारोहों में किया जाता है, जहां शुद्धिकरण और आशीर्वाद प्राप्त करने के साधन के रूप में अग्नि में आहुतियां दी जाती हैं. प्राचीन फ़ारसी धर्म पारसी धर्म में अग्नि को पवित्रता और दिव्यता का प्रतीक माना जाता है. अग्नि मंदिर को “अताश बेहराम” या “अताश कादेह” के नाम से जाना जाता है, ये उनकी पूजा का सबसे पवित्र स्थान हैं, जहां एक पवित्र लौ लगातार जलती रहती है. यहूदी धर्म में भी पूजा घरों में लगातार लौ जलती है. कई अफ्रीकी पारंपरिक धर्मों में, अग्नि जीवन शक्ति, जीवन शक्ति, शुद्धि और पूर्वजों के साथ संचार से जुड़ी है. ईसाई धर्म में बपतिस्मा के संस्कार में अग्नि का उपयोग किया जाता है. बौद्ध धर्म में अग्नि का उपयोग नकारात्मक ऊर्जाओं को शुद्ध करने के लिए किया जाता है. इस्लाम में सूफी प्रथाओं में अग्नि का उपयोग आरती में होता है, जो शुद्धि और दिव्य उपस्थिति का प्रतीक है. Tags: Beauty and the beast, MahabharatFIRST PUBLISHED : June 15, 2024, 09:10 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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