क्यों बांग्लादेश नहीं बनने देना चाहता था अमेरिका फिर तब से चल रहा है ये चालें
क्यों बांग्लादेश नहीं बनने देना चाहता था अमेरिका फिर तब से चल रहा है ये चालें
क्यों अमेरिका साउथ एशिया में मौजूदगी के लिए बेचैन है अमेरिका. बैचेनी ये भी है कि भारतीय उपमहाद्वीप में उसका कोई सैन्य बेस नहीं है. उसके खेल की चालें आखिर चाहती क्या हैं.
हाइलाइट्स अमेरिका नहीं चाहता था कि बांग्लादेश बने, इसके लिए उसने भरपूर कोशिश की अब साउथ एशिया में आखिर क्यों नहीं है अमेरिका का कोई सैन्य बेस बांग्लादेश क्यों पिछले कुछ सालों से उसकी चालों का केंद्र बन गया था
15 अगस्त 1947 में जब अंग्रेजों ने भारत छोड़ा तो इस मुल्क के दो नहीं बल्कि तीन टुकड़े किए. पूर्वी और पश्चिम छोर पर पाकिस्तान के दो हिस्सों को इस तरह बनाया कि भारत सैंडविच की तरह फंसकर परेशान होता रहे. अंग्रेजों की मंशा आने वाले समय में भी भारतीय महाद्वीप को तनाव का अखाड़ा बनाकर रखने की थी. बाद में इसी खेल में अमेरिका भी शामिल हो गया. ना तो कभी ब्रिटेन ने चाहा होगा और अमेरिका ने तो बिल्कुल नहीं कि पूर्वी पाकिस्तान की जगह बांग्लादेश जैसा कोई नया देश बनकर खड़ा हो जाए. इसे ग्रेटगेम को जब भारत ने मौका मिलते ही तोड़ा तो सबसे ज्यादा बेचैनी अमेरिका को हुई थी, क्योंकि एशिया में उसके बड़े खेल पर ये बड़ा आघात था.
ये सर्वविदित है कि अमेरिका कभी नहीं चाहता था कि पूर्वी पाकिस्तान की जगह बांग्लादेश के रूप में नया देश बने और वो भी भारत की सरपरस्ती में. बनकर फिर भारत की सरपरस्ती करे. ये स्थिति अगर पाकिस्तान के लिए सदमे वाली थी तो अमेरिका के लिए बेचैन करने वाली. क्योंकि एशिया में भौगोलिक तौर पर दो ही ताकतें ऐसी हैं, जिनका असर समय के साथ बढ़ता चला गया.
1970 में जब पाकिस्तानी फौजों का दमनचक्र पूर्वी पाकिस्तान में बढ़ने लगा. बांग्ला भाषियों पर जुल्मोशितम होने लगा तो बड़े पैमाने पर शरणार्थी भाग-भागकर भारत आने लगे. लाखों की संख्या में. उसके आंतरिक हालात इससे प्रभावित होने लगे थे. वहीं पाकिस्तान में याह्या खान का सैन्य शासन अमेरिका और चीन से पींगे बढाए हुए था. वैसे ये वो स्थिति थी, जब दोनों ओर से उसे लपेटने वाली भुजाओं में एक को काट सके.
तब अमेरिका ने इंदिरा गांधी को धमकी दी थी
अमेरिका को इसकी भनक लग चुकी थी. जब इंदिरा गांधी 1971 में अमेरिका जाती हैं ताकि उन्हें बताया जा सके कि असल में पूर्वी पाकिस्तान में हो क्या रहा है, तो बदले में उन्हें अमेरिकी प्रेसीडेंट रिचर्ड निक्सन से साफ धमकी मिलती है कि वो पूर्वी पाकिस्तान से दूर रहे. ये चेतावनी भी कि अमेरिका किसी भी हाल में पूर्वी पाकिस्तान में नया देश नहीं बनने देगा.
निक्सन को अंदाज था कि इंदिरा क्या करने वाली हैं
शायद निक्सन को अंदाज हो चला था कि इंदिरा गांधी सरकार किस योजना को अंजाम दे सकती है. रिचर्ड निक्सन मानते थे कि अगर पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा पाकिस्तान के पास से निकला तो भारतीय उपमहाद्वीप की जियो पॉलिटिक्स ही बदल जाएगी. पूर्वी पाकिस्तान के हाथ से निकलने का मतलब होगा चीन और भारत को रिलैक्स कर देना.
13 दिनों में बदल गया खेल
अमेरिका की लाख धमकियों के बाद भी इंदिरा गांधी ने वो कर दिया जो दुनिया में कहीं कोई सोच ही नहीं सकता था. याह्या खान को तो सपने में भी गुमान नहीं था कि भारतीय सेना अमेरिकी चेतावनी के बाद भी पूर्वी पाकिस्तान में घुस सकती हैं. इसी वजह से वह उन दिनों भी सुरा और शराब की महफिलें सजाते थे. भारतीय फौजें पूर्वी पाकिस्तान में घुसीं और केवल 13 दिनों में सारा खेल ही बदल गया.
1. अमेरिका को सबसे बड़ा झटका देता हुआ बांग्लादेश बन गया
2. चीन ने इस युद्ध में पाकिस्तान का दोस्त होने के बाद भी तटस्थतता बनाए रखी
3. सोवियत संघ ने अमेरिका को घुड़की दे दी, वो दक्षिण एशिया से दूर ही रहे
चीन क्यों चुपचाप बैठा रहा, सोवियत संघ आकर खड़ा हो गया पीछे
क्या आपने कभी सोचा कि भारत ने ये काम क्यों किया. चीन क्यों चुपचाप बैठा रहा. सोवियत संघ क्यों भारत के पीछे आकर खड़ा हो गया
जवाब सीधा सा है – सबको मालूम था कि पूर्वी पाकिस्तान जिस दिन हाथ से निकलेगा, उसी दिन अमेरिका की दक्षिण एशिया की रणनीति पर सबसे ज्यादा झटका लगेगा, क्योंकि उसके रहने तक अमेरिका कभी भी वहां सैन्य बेस बनाकर सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हिंद महासागर, भारत और चीन पर नजर बनाए रखेगा.
फिर नए देश से अमेरिकी संबंध असहज ही रहे
इसी वजह से बांग्लादेश बनने के बाद भी नए देश के साथ अमेरिकी संबंध कभी सहज नहीं रहे. खासकर प्रधानमंत्री शेख हसीना के नेतृत्व वाली सरकार के दौरान. बांग्लादेश बनने के बाद जब आधी दुनिया नए देश को मान्यता दे चुकी थी, उसके चार महीने बाद अमेरिका ने इसको मान्यता दी
फिर दक्षिण एशिया से अमेरिकी बोरिया बिस्तर समेटने लगा
हालात तब ज्यादा बदलने लगे जब बदली स्थितियों में अफगानिस्तान से अमेरिका को अपने सभी दस सैन्य बेस का बिस्तर बोरिया समेटना पड़ा तो पाकिस्तान का सैन्य बेस भी बंद करना पड़ा. इसी दौरान भूराजनीतिक हालात में चीन सुपर पॉवर की तरह उभरा और भारत भी कहीं ज्यादा ताकतवर बनकर उभरने लगा.
अमेरिका की जहां दाल नहीं गलती है वहां वह मानवाधिकार से लेकर लोकतंत्र और भ्रष्टाचार के मुद्दे बनाकर स्वांग रचता है. विरोध प्रदर्शन और असंतोष को हवा देता है. बांग्लादेश में खेल भी 70 के दशक में ही शुरू हो गया था. बहुत से लोग अब भी मानते हैं कि शेख मुजीबुर्रहमान के पूरे परिवार की हत्या केवल तख्तापलट नहीं बल्कि ग्रेटगेम का हिस्सा थी.
ग्रामीण बैंक के पीछे फोर्ड फाउंडेशन का जुड़ना बड़ा सवाल था
इसी गेम के तहत बांग्लादेश के सामाजिक और धार्मिक तानेबाने को तोड़ने का काम इस धर्मनिरपेक्ष देश को इस्लाम बनाकर किया गया. फिर प्रतिबंधित जमात ए इस्लामी को फिर पिछले दरवाजे से दाखिल करा दिया गया. विकास की आड़ में होने वाला खेल अमेरिकी फाउंडेशन भी खूब खेलते हैं. इसलिए 1976 में जब मुहम्मद युनूस ने बांग्लादेश में ग्रामीण बैेंक खोले तो इसके पीछे फोर्ड फाउंडेशन के साथ ने भी सवाल उठाए. आलोचकों का कहना है कि बैंक का फोर्ड फाउंडेशन के साथ जुड़ना एक अजीबोगरीब घटना थी.
क्यों ये जगह खास रणनीतिक बिंदू है
शेख हसीना ने तो हमेशा ही अमेरिका पर बांग्लादेश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया. अब उन्होंने ये रहस्योदघाटन भी किया कि अमेरिका की निगाह सेंट मार्टिन द्वीप पर थी, जहां दक्षिण एशिया के सबसे अहम स्ट्रैटजिक पाइंट पर अपना सैन्य बेस बनाना चाहता था. जो नहीं हो पा रहा था.
बांग्लादेश दक्षिण एशिया और पूर्वी एशिया के बीच एक पुल के रूप में महत्वपूर्ण भू-रणनीतिक महत्व रखता है, जो इसे अमेरिकी और चीनी दोनों के हितों के लिए केंद्र बिंदु बनाता है. अमेरिका यहां से दुनिया में उभरती दोनों ताकतों चीन और भारत पर नजर रख सकता है और इस क्षेत्र में अपना प्रभाव भी बनाए रख सकता है. खासकर तब जबकि चीन बांग्लादेश में निवेश और ऋण के माध्यम से अपनी उपस्थिति का विस्तार कर रहा है.
दरअसल दूसरे विश्व युद्ध के बाद शीत युद्ध के दौरान महाशक्तियों ने तीसरे देशों में चूहे-बिल्ली के खेल को विस्तार ही दिया. प्रधानमंत्री के रूप में शेख हसीना ने कई मौकों पर एक ‘श्वेत व्यक्ति’ का जिक्र किया, जो बंगाल की खाड़ी में छोटे से कोरल द्वीप सेंट मार्टिन में अमेरिकी हितों को बताने के लिए उनसे मिला था. अमेरिका मलक्का जलडमरूमध्य के रणनीतिक आठ किलोमीटर के हिस्से पर एक बेस स्थापित करना चाहता है. हालांकि इस बात में कितना दम है, ये नहीं मालूम लेकिन बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना मौजूदा अंतरिम सरकार के प्रशासक मुहम्मद युनूस पर हमेशा अमेरिका परस्त होने का आरोप लगाया.
ये बेस उत्तर में चीन के लिए एक महत्वपूर्ण सुनवाई चौकी भी होगी. जाहिर सी बात है कि यहां से चीन पर नजर रखने के साथ भारत को भी दबाव में रखने की मंशा थी. अमेरिका से भारत के संबंध चाहे जितने सुधर गए हों लेकिन उसने उसे वैसा भरोसेमंद सहयोगी कभी नहीं माना, जिसकी वह तलाश कर रहा था.
Tags: Bangladesh, Bangladesh Liberation War, Bangladesh news, Sheikh hasinaFIRST PUBLISHED : August 14, 2024, 22:39 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed