क्यों रूस गए मोदी क्या इसके मायने यूक्रेन युद्ध के बाद कैसे साध रहे संतुलन

Modi Russia Visit: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिनों की रूस यात्रा पर गए हैं. उनकी ये यात्रा इसलिए खास है क्योंकि ये यूक्रेन युूद्ध शुरू होने के बाद पहली बार रूस में हो रही है. क्या है इस यात्रा के मायने, इससे क्या मिलेगा. साथ ही ये भी जानें कि कैसे भारत रूस के साथ यूरोप के साथ संतुलन बनाकर चल रहा है.

क्यों रूस गए मोदी क्या इसके मायने यूक्रेन युद्ध के बाद कैसे साध रहे संतुलन
हाइलाइट्स यूक्रेन युद्ध के बाद ये भारतीय प्रधानमंत्री का पहला रूसी दौरा इस दौरे के जरिए भारत और रूस के बीच मजबूत संबंधों पर फिर मुहर लगेगी बढ़ते व्यापार घाटे को लेकर कोई हल निकाला इस दौरे की प्राथमिकता होगी ये भी एक संयोग है कि जिस दिन रायबरेली की आर्डिंनेस फैक्ट्री से जिस दिन एके -203 रायफल की पहली खेप निकली, उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन के बुलावे पर दो दिन के रूस दौरे पर हैं. ये यात्रा कई मायनों में अहम. रूस हमारा सबसे पुराना और सबसे विश्वसनीय भागीदार देश है. कई संकट के समय साथ निभाता रहा है. अब यूक्रेन युद्ध के समय जब ज्यादातर देश रूस के खिलाफ खड़े हैं, तब भारत एक सच्चे दोस्त की भूमिका निभाते हुए पूरी दुनिया के सामने ये कह रहा है कि हम रूस के साथ हैं. इसके बावजूद भारत ने रूस के धुर विरोधी खेमे के देशों अमेरिका और यूरोप के साथ भी संतुलन बनाए रखा है. 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद से यह मोदी की पहली रूस यात्रा है. यह यात्रा महत्वपूर्ण है क्योंकि यह 22वें भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन की प्रतीक है, जो दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझीदारी में बातचीत का सबसे बड़ा मंच बन चुका है. सवाल – इस यात्रा के दौरान मोदी और पुतिन क्या करेंगे? – यात्रा के दौरान मोदी और पुतिन द्वारा भारत-रूस संबंधों से जुड़े तमाम पहलुओं की समीक्षा करेंगे. आपसी हितों से जुड़े मुद्दों पर बात करेंगे. वैश्विक मुद्दों और इससे जुड़ी चुनौतियों पर विचारों का आदान-प्रदान करेंगे. इस यात्रा में दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग समेत कई तरह के समझौते भी होंगे. रूस भारत के लिए सैन्य उपकरणों का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता है. साथ ही व्यापार और ऊर्जा संबंधों पर समझौतों को और आगे बढ़ाया जाएगा. ये यात्रा मोदी और पुतिन को सीधी बातचीत करने और व्यापार असंतुलन जैसे रिश्ते में किसी भी मुद्दे पर किसी फैसले पर पहुंचने का अवसर देगी. इसमें दोनों दुनिया के बदलती स्थितियों पर भी चर्चा करेंगे. ये यात्रा दोनों देशों के लंबे संबंधों को और मजबूत भी करेगी. खासकर उस दौर में भी जब भारत की स्वीकार्यता और रिश्ते अमेरिका के साथ भी लगातार बेहतर हुए हैं. सवाल – क्या इस यात्रा के जरिए भारत ये भी बता रहा है कि उसके लिए रूस अहम है? – बिल्कुल जिस तरह से यूक्रेन युद्ध के बाद भारतीय प्रधानमंत्री की वहां की यात्रा हो रही है, वो ये बता रही है कि इस युद्ध के कारण दुनिया में तमाम देशों के रिश्तों में जो जटिलताएं आई हैं, उसमें मोदी का वहां जाना रूस को ये बताने के लिए काफी है कि भारत मजबूती से उसके साथ खड़ा है. साथ ही ये भी दिखाता है कि भारत की विदेश नीति में कुछ भी छिपा नहीं है, वो सामने है और साफ है. सवाल – ये कहा जा रहा है कि इस यात्रा में दोनों देशों के बीच व्यापार असंतुलन पर सबसे ज्यादा जोर हो सकता है. क्योंकि रूस के साथ भारत का व्यापार घाटा बढ़ता जा रहा है? – खबरों में भी ये बात आ रही है. मोदी और पुतिन जब मिलेंगे तो उनके बीच मुख्य फोकस व्यापार असंतुलन को बेहतर करने में होगा. रूस से भारत को तेल और ऊर्जा उत्पादों में काफी वृद्धि से व्यापार घाटा बढ़ता जा रहा है. भारत से रूस को होने वाले निर्यात को वो गति नहीं मिल पाई है. – रूस के साथ भारत का व्यापार घाटा 2022-23 में 43 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2023-24 में 57.2 बिलियन डॉलर हो गया. 2023 की पहली तिमाही में भारत को रूस के साथ 14.7 अरब डॉलर का व्यापार घाटा हुआ था – रूस भारत के लिए तेल के एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरा है, लेकिन रूस को भारत का निर्यात बढ़ते आयात के साथ तालमेल नहीं रख पाया है, जिससे एक बड़ा और बढ़ता व्यापार असंतुलन पैदा हो गया है – भारत वहां से कच्चा पेट्रोलियम ($25.5B), कोयला ब्रिकेट ($4.28B), और परिष्कृत पेट्रोलियम ($4.05B) मंगाता है जबकि भारत से फार्मास्युटिकल उत्पाद, कार्बनिक रसायन, मशीनरी और इलेक्ट्रिकल/इलेक्ट्रॉनिक उपकरण का निर्यात होता है. सवाल – व्यापार असंतुलन के मामले पर इस यात्रा में क्या होने की उम्मीद है? – भारत सरकार कृषि, उद्योग, फार्मास्यूटिकल्स और अन्य ऊर्जा सेवाओं सहित विभिन्न क्षेत्रों में रूस को निर्यात बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रही है. इसे बढाने को लेकर इस यात्रा में खास फैसला हो सकता है. निर्यात में विविधता लाने के लिए भारत यहां से कृषि उत्पाद, सिरेमिक टाइलें, ऑटो घटक, इंजीनियरिंग सामान, रासायनिक उत्पाद और फार्मास्यूटिकल्स के निर्यात को और बढ़ाएगा. नए भुगतान तंत्र पर भी बातचीत होगी. चूंकि भारत अब तक सारे भुगतान रुपए में करता रहा है लिहाजा वो रूसी संस्थाओं को भारतीय बैंकों में जमा होने वाले अतिरिक्त रुपये का उपयोग करने के लिए भारतीय पूंजी बाजारों और प्रतिभूतियों में निवेश करने की अनुमति दे सकता है, जिसकी मांग रूस से की गई है. हालांकि रूस ने कई बात ये भी कहा है कि रुपए के अलावा रूस चीनी युआन या यूएई दिरहम जैसी तीसरे देश की मुद्राओं का उपयोग भुगतान में किया जाना चाहिए, ऐसा करना भारत के लिए चुनौतीपूर्ण है. सवाल – क्या यूक्रेन युद्ध में रूस के साथ खड़ा होने के बाद भी भारत दुनिया के देशो्ं खासकर अमेरिका और यूरोपीय देशों के साथ संतुलन बनाने में सफल रहा है? – भारत ने यूक्रेन पर आक्रमण की निंदा तो की है लेकिन कई संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों में रूस के खिलाफ मतदान से खुद को दूर रखा है. इससे निश्चित तौर पर यूरोपीय देश निराश हैं, जिन्हें उम्मीद थी कि भारत रूस के खिलाफ कड़ा रुख अपनाएगा लेकिन अब तक भारत की विदेश नीति ये रही है कि वो किसी के खिलाफ नहीं है बल्कि सबको साथ लेकर चलना चाहता है. भारत अपने सिद्धांतों और हितों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है. एक तरफ, उसने संयुक्त राष्ट्र चार्टर, अंतरराष्ट्रीय कानून और संप्रभुता के सम्मान के महत्व पर जोर दिया है लेकिन ये देखना चाहिए कि ईरान और रूस पर लगे अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार में रूस से उसे काफी सस्ती दर में तेल मिल रहा है. दूसरी तरफ वह अब भी बड़े पैमाने पर सैन्य उपकरणों के लिए रूस पर निर्भर है. लिहाजा भारत ने सभी देशों को ये जता दिया है कि उसके अपने भी हित हैं, जिन्हें भी वह तवज्जो देगा. हालांकि, यूरोपीय संघ भारत की मजबूरियों और उसकी विदेश नीति की जटिलता को समझता है. वो भी भारत को नाराज़ नहीं करना चाहते, क्योंकि वह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक प्रमुख साझेदार है. भविष्य में भी यूरोपीय संघ भारत के साथ सहयोग जारी रखेगा, साथ ही उसकी स्वतंत्र विदेश नीति के दृष्टिकोण को स्वीकार करेगा. यूरोपीय संघ-भारत के बीच मजबूत संबंध बनाए रखना दोनों पक्षों की प्राथमिकता बनी हुई है. सवाल – क्या भारत दुनिया को ये दिखाने में सफल रहा है कि रूस के विरोध में नहीं जाने के बाद भी उसका रुख तटस्थता भरा है? – ये कहा जा सकता है. क्योंकि भारत ने पिछले कुछ दशकों में वैश्विक शक्ति संतुलन के बीच ये लगातार दिखाया है कि वो ना तो किसी देश का पिछलग्गू है और ना रहेगा लेकिन अपने हितों से समझौता भी नहीं करेगा. इसी वजह से अमेरिका से लेकर यूरोप के तमाम देशों यहां तक कि यूक्रेन के साथ भी भारत के संबंध सामान्य और कामकाजी बने हुए हैं. उसकी नीतियों का सम्मान है. सवाल – भारत क्यों हमेशा से रूस के साथ संबंधों को एक अलग अहमियत देता है? – रूस ने कश्मीर जैसे मुद्दों पर भारत को हमेशा साथ दिया है और भारत के पक्ष में अपने यूएनएससी वीटो का इस्तेमाल किया है. दोनों ही देशों ने एक दूसरे की निंदा करने से परहेज किया है और गुटनिरपेक्षता की नीति को बनाए रखा है. सवाल – किस तरह अब भी भारत रूस के सैन्य उपकरणों पर निर्भर है? – रूसी सैन्य उपकरणों पर भारत की निर्भरता काफी ज्यादा है, जिसमें उन्नत सैन्य प्रणालियाँ भी शामिल हैं. रूस से दुश्मनी मोल लेने से यह आपूर्ति ख़तरे में पड़ सकती है. रूस के साथ संबंध बनाए रखने से भारत को चीन के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने में मदद मिलती है, जो विशेष रूप से यूक्रेन पर आक्रमण के बाद रूस के साथ अधिक निकट हो गया है. Tags: India russia, India Russia bilateral relations, India Russia defence deal, PM Modi, Russia crude oil, Russia ukraine war, Vladimir PutinFIRST PUBLISHED : July 8, 2024, 17:43 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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