भारत क्यों बना रहा स्पेस स्टेशन जिसमें कई कमरे लैब रिक्रिएशन और कंट्रोल रूम

Bhartiya Antriksh Station: भारत ने तय किया है कि अगले 10-11 सालों में अपना अंतरिक्ष स्टेशन बनाकर वहां काम करेगा. अगर भारत की हालिया अंतरिक्ष सफलताओं और क्षमता को देखा जाए, तो उसके लिए ऐसा करना असंभव नहीं.

भारत क्यों बना रहा स्पेस स्टेशन जिसमें कई कमरे लैब रिक्रिएशन और कंट्रोल रूम
हाइलाइट्स इसे भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन कहा जाएगा, पहला हिस्सा 2028 में पहुंचेगा फिलहाल अंतरिक्ष में दो एक्टिव स्टेशन, एक कई देशों का कंबाइंड और दूसरा चीन का कई अंतरिक्ष स्टेशन रिटायर हो चुके हैं, जिसमें स्काईलैब भी था भारत 2035 तक अपना खुद का अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने की योजना बना रहा है, जिसे भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) कहा जाएगा. अभी अंतरिक्ष में दो स्पेस स्टेशन काम कर रहे हैं. हालांकि ये बहुत महंगा प्रोजेक्ट होगा. हां, अगर बात भारत की क्षमता की कि जाए तो ये पक्का इसरो इसे बनाकर अंतरिक्ष में भेज सकता है, जो आने वाले सालों में भारत के लिए बहुत काम का साबित होगा. सवाल – भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) की शुरुआत कब हो जाएगी, कब तक ये पूरी तरह काम करने लगेगा? – इसका पहला मॉड्यूल 2028 में LVM3 लॉन्च वाहन द्वारा लांच हो जाने की उम्मीद है, यानि हल्के तौर पर भारत का काम चार साल बाद अंतरिक्ष में अपने इस स्टेशन के जरिए शुरू हो जाएगा. लेकिन पूरी तरह से भारत का ये अंतरिक्ष स्टेशन 2035 में पूरा होगा, जब इसके दूसरे मॉडयूल्स सेट कर दिए जाएंगे. सवाल – ये अंतरिक्ष स्टेशन कैसा होगा. क्या इसमें पर्याप्त जगह होती है? – भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन कुल मिलाकर 27 मीटर लंबा और 20 मीटर चौड़ा होगा. आप ये कह सकते हैं कि जितना बड़ा एक फुटबाल का मैदान (100.58 मीटर लंबा और 64.01 मीटर चौड़ा) के चौथाई हिस्से के बराबर होका. यानि अगर एक बंगले के तौर पर देखें तो ये बड़ा अंतरिक्ष स्टेशन होगा लेकिन इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन जितना लंबा चौड़ा नहीं, जो 109 मीटर लंबा और 75 मीटर चौड़ा है. इसरो द्वारा बनाया गया है भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन का मॉडल (courtesy ISRO) सवाल – इसका वजन कितना होगा? – इस स्पेस स्टेशन का वजन 52 टन होगा. ये पृथ्वी की निचली कक्षा में 400 किलोमीटर ऊपर स्थापित किया जाएगा. इसकी डिजाइन इस तरह होगी कि इसमें 3 से 4 एस्ट्रोनॉट्स तीन से छह महीने तक आराम से रह सकें. मौजूदा इंटरनेशनल स्पेश स्टेशन भी 400 किमी ऊपर ही पृथ्वी के लो – आर्बिट में घूम रहा है. इसमें कई तरह की शोध सुविधाओं और रहने वाले कमरों को एकीकृत किया जाएगा. ये ऐसा होगा जिसमें सघन वैज्ञानिक रिसर्च माइक्रोग्रेविटी कंडीशन में हो सकती है. इससे भारत की अंतरिक्ष संबंधी एक्सप्लोर और साइंटिफिक योगदान संबंधी क्षमताएं बढ़ जाएंगी. लिविंग क्वार्टर्स – 03-04 एस्ट्रोनॉट के रहने की जगह लैबोरेटरी स्पेस – ये जगह पूरी तरह से साइंटिफिक प्रयोगों के लिए होगी, जिसमें मटीरियल साइंस, बॉयोलॉजी और फिजिक्स संबंधी रिसर्च हो सकेंगी. कंट्रोल सेंटर – जो स्टेशन की मॉनिटरिंग और आपरेशंस को देखने के साथ एक्सपेरिमेंट्स को चलाने के काम देखेगा. एक्सरसाइज और रिक्रेशन एरिया – ये जगह फिजिकल फिटनेस और रिलैक्सेशन के लिए होगी, ताकि लंबे मिशन के दौरान एस्ट्रोनॉट्स यहां आकर तरोताजा फील कर सकें. मेडिकल बे – यहां एक छोटी मेडिकल सुविधा होगी, जिसमें बेसिक हेल्थकेयर जरूरतों की चीजें और उपकरण होंगे. स्टोरेज एरिया – यहां उपकरण, सप्लाई में आने वाले सामान और साइंटिफिक उपकरण रखे जाएंगे. लाइफ सपोर्ट सिस्टम – यहां हवा और पानी रिसाइकिलिंग, वेस्ट मैनेजमेंट और एनवायरमेंट कंट्रोल सिस्टम होगा. इसरो देश के पहले स्पेस स्टेशन के पहले माड्यूल को 2028 तक अंतरिक्ष में लगा देगा. इसके बाद 2035 तक इसका विस्तार होगा. फिर से पूरी तरह काम करने लगेगा. (courtesy ISRO) सवाल – जब पूरा अंतरिक्ष स्टेशन बन जाएगा, तब भारत इसका क्या इस्तेमाल करेगा? – रिसर्च संबंधी इस्तेमाल तो होगा ही साथ ही वर्ष 2040 तक ये अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर भेजने के लिए एक महत्वपूर्ण हिस्से का काम करेगा. ये भारत की मानव अंतरिक्ष उड़ान क्षमताओं को आगे बढ़ाने और लंबी अवधि के मिशनों को सक्षम करने में मदद करेगा. सवाल – क्या भारत एक मुकम्मल अंतरिक्ष स्टेशन बनाने में सक्षम है? – इसरो ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में अपनी एक्सपर्टीज साबित कर दी है. उसने पिछले कुछ दशकों में इस काम में लगातार प्रगति की है, कई सैटेलाइट्स और अंतरिक्ष यान को सफलतापूर्वक लांच किया है. तीन चंद्रयान, मंगलयान और सूर्य यान को सफलतापूर्वक लांच कर चुका भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानि इसरो साबित कर चुका है कि स्पेस संबंधी तकनीक, आपरेशंस और ज्ञान में वह काफी आगे निकलकर दुनिया की बड़़ी स्पेस ताकतों में शामिल हो चुका है. नेक्स्ट जनरेशन लॉन्च व्हीकल (NGLV) और फिर से इस्तेमाल किये जाने वाले लांच वाहन भारत की स्पेस लांच क्षमताओं को और बढाएंगे. इसरो के पास अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में व्यापक अनुभव वाले अत्यधिक कुशल वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और तकनीशियनों की एक टीम है. इसरो के पास वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और सहायक कर्मचारियों सहित 17,000 से अधिक कर्मचारियों की काबिल वर्कफोर्स है. सवाल – अंतरिक्ष स्टेशन बनाने के लिए क्या भारत दूसरे देशों की मदद लेगा या ये काम खुद करेगा? – मोटे तौर पर ये पूरी तरह स्वदेशी होगा लेकिन भारत NASA, ESA और JAXA जैसी अंतरिक्ष एजेंसियों के साथ इस काम में सहयोग लेगा, जो तकनीकी सहायता और विशेषज्ञता के रूप में होगा. सवाल – अंतरिक्ष स्टेशन को बनाने में भारत को किस तरह की मुख्य चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है? – तकनीकी चुनौतियां – चूंकि अंतरिक्ष स्टेशन के निर्माण में कई तरह की बातों का ध्यान रखना होगा, जिसमें जीवन रक्षक प्रणाली, विकिरण सुरक्षा, स्ट्रक्चरल फिटिंग के साथ आर्बिट मेंटिनेंस के लिए अत्याधुनिक तकनीक की आवश्यकता होती है. जिसके लिए भारत को अपने तकनीकी बुनियादी ढांचे को बढ़ाने की जरूरत होगी. अंतरिक्ष स्टेशन का विकास पिछले उपग्रह मिशनों की तुलना में अधिक जटिल है. वित्तीय बाधाएं – अनुमान बताते हैं कि भारत को अगले दशक में लगभग ₹5,000 करोड़ (लगभग $600 मिलियन) के वार्षिक आवंटन की जरूरत होगी. भारत जो अंतरिक्ष स्टेशन बना रहा है, उसका बजट दूसरे देशों की तुलना में काफी कम रखा गया है. अमेरिका, रूस से सहयोग – चूंकि इस काम को अमेरिका और रूस पहले कर चुके हैं, लिहाजा भारत को अमेरिका, रूस और चीन जैसे अन्य अंतरिक्ष-यात्रा करने वाले देशों के साथ अपने संबंधों को भी संतुलित करना होगा. राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञता का लाभ उठाना आसान नहीं होगा. सवाल – और किस तरह की चुनौतियां भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के रास्ते में आएंगी? – चूंकि वहां हमेशा मनुष्य की मौजूदगी रहेगी लिहाजा मजबूत जीवन समर्थन प्रणालियों को विकसित करना होगा – हवा और पानी के रिसाइक्लिंग के साथ वेस्ट मैनेजमेंट तकनीक और खान-पान उत्पादन तकनीक का भी इंतिहान होगा, जो लंबे मिशन के लिए बहुत जरूरी होता है. – बीएएस के रखरखाव और तमाम कामों के लिए उन्नत रोबोटिक्स को शामिल करना होगा सवाल – अंतरिक्ष स्टेशन पर कोई विमान आकर कैसे रुकेगा और उससे लोगों का आना जाना या सामानों का पहुंचना कैसे किया जाता है? – इसको यूनिवर्सल डॉकिंग मैकेनिज्म कहते हैं. इसके लिए भारत को केवल स्पेस स्टेशन ही नहीं बल्कि अनूठा डॉकिंग पोर्ट भी विकसित करना होगा. इससे विभिन्न अंतरिक्ष यानों की डॉकिंग की सुविधा होगी, दूसरे देशों के मिशन के साथ सहयोग किया जा सकेगा. सवाल – स्पेस स्टेशन के लोग वहां से धरती पर कैसे बात करते हैं. ये क्या होता है, इसे भारत कैसे विकसित करेगा? – अंतरिक्ष स्टेशन से धरती पर बात करने के लिए, अंतरिक्ष यात्री डीप स्पेस नेटवर्क (DSN) का इस्तेमाल करते हैं. DSN बड़े रेडियो एंटेना का एक संग्रह है. इसके ज़रिए अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी पर जानकारी और तस्वीरें भेजते हैं. साथ ही एंटेना से अंतरिक्ष यान की स्थिति और कामकाज की जानकारी भी मिलती है. नासा अंतरिक्ष यान को निर्देश भी डीएसएन के ज़रिए ही भेजता है. सवाल – इसके अलावा स्पेस स्टेशन के साथ और कौन सी तकनीक, सुविधाएं जोड़ी जाती हैं? – BAS बिजली उत्पादन के लिए सौर पैनलों का उपयोग करेगा. अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) की प्रमुख ऊर्जा स्रोतें सौर ऊर्जा (सूर्य की किरणों से) और बैटरी होती हैं. भारत भी यही काम करेगा. सवाल – दुनिया में इस समय कितने स्पेस स्टेशन काम कर रहे हैं? – फिलहाल इनकी संख्या दो है इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) – नासा, रोस्कोस्मोस, ईएसए, जेएक्सए और सीएसए सहित 15 देशों की पांच अंतरिक्ष एजेंसियों के बीच एक सहयोग के तहत इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन नवंबर 2000 से लगातार काम कर रहा है.. तियांगोंग स्पेस स्टेशन – चीन का पहला स्पेस स्टेशन जून 2022 से काम कर रहा है. यह तीन मॉड्यूलों से बना है लेकिन चीन भविष्य में इसे और बड़ा करेगा इससे पहले ये स्पेस स्टेशन काम कर रहे थे लेकिन अब इन्हें खत्म किया जा चुका है – सोवियत अंतरिक्ष कार्यक्रम ने 1971 में सैल्यूत 1 से शुरुआत करते हुए छह स्टेशनों का प्रक्षेपण और संचालन किया. अब ये नहीं है – संयुक्त राज्य अमेरिका का पहला अंतरिक्ष स्टेशन स्काईलैब था, जो अब बंद किया जा चुका है – मीर – ये सोवियत स्पेस स्टेशन था, जो अब काम में नहीं है. सवाल- इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को बनाने में किस धातु का इस्तेमाल होता है? – इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में सबसे प्रमुख धातु एल्यूमीनियम और स्टील का उपयोग किया गया है. एल्यूमीनियम हलकी होती है इसलिए अच्छी होती है, लेकिन कई उपकरणों में मजबूती की अधिक जरूरत होती है इस लिहाज से स्टील का उपयोग किया गया है. इनके अलावा केवलार (ऊष्मा प्रतिरोधी सिंथेटिक फाइबर) और सिरेमिक का भी खासा उपयोग हुआ है. इनके अलावा टाइटेनियम, कॉपर, के साथ कई मिश्रधातु और पॉलीमर का भी उपयोग किया गया है. Tags: International Space Station, ISRO satellite launch, Space, Space Exploration, Space ScienceFIRST PUBLISHED : September 19, 2024, 20:47 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed