तीसरे साल सेना में भर्ती के लिए नहीं आए गोरखाक्या खत्म हो जाएगी उनकी रेजिमेंट
तीसरे साल सेना में भर्ती के लिए नहीं आए गोरखाक्या खत्म हो जाएगी उनकी रेजिमेंट
ये तीसरा साल है जबकि नेपाल से गोरखा सैनिक भारतीय सेना में भर्ती के लिए नहीं आए. वहीं दूसरी ओर भारतीय सेना की गोरखा रेजिमेंट में सैनिकों की कमी हो रही है. यही हाल रहा तो आने वाले समय में शुद्ध गोरखा रेजिमेंट खत्म हो जाएगी.
हाइलाइट्स भारत और नेपाल के बीच सेना में गोरखाओं की भर्ती के लिए त्रिपक्षीय समझौता अग्निवीर योजना से नेपाल सरकार नाराज है, इसी वजह से उसने सैनिकों को रोका गोरखा रेजिमेंट में अब लगातार सैनिकों की कमी हो रही है
ये लगातार तीसरा साल है जबकि नेपाल से भारतीय सेना में शामिल होने के लिए एक भी गोरखा सैनिक नहीं आए. दरअसल ये कदम नेपाल सरकार ने ही उठाया है. उसने कूटनीतिक तनाव के चलते नेपाल ने अपने यहां गोरखाओं को भारतीय सेना में भर्ती के लिए भेजना बंद कर दिया है. दरअसल नेपाल सरकार अग्निपथ भर्ती योजना से नाराज है.वह इसमें बदलाव चाहती है. भारत और नेपाल के बीच सेना में भर्ती को लेकर क्या समझौता है. भारत में आना रुकने के बाद अब गोरखा सैनिक कहां जा रहे हैं. लेकिन ये भी तय है कि भारतीय सेना की गोरखा रेजिमेंट में इसका खासा असर पड़ रहा है, वहां सैनिकों की कमी पड़ने लगी है.
भारतीय थल सेनाध्यक्ष उपेंद्र द्विवेदी अगले हफ्ते नेपाल के दौरे पर जा रहे हैं. माना जा रहा है कि इस दौरे में सबसे बड़ा मुद्दा ये भी होगा कि नेपाल के गोरखाओं का भारतीय सेना में आना शुरू हो इसके लिए कोई रास्ता निकाला जाए.
जून 2022 में इस योजना की शुरुआत के बाद से नेपाल से कोई भी नया भर्ती नहीं किया गया है. इसका असर साफतौर पर गोरखा रेजिमेंट पर पड़ रहा है, जिसे भारतीय सेना की शान माना जाता है. वीरता में जिस रेजिमेंट की तमाम कहानियां हैं.
क्यों नेपाल अग्निपथ योजना से नाराज
दरअसल नेपाली सरकार ने 1947 के त्रिपक्षीय समझौते किया था. ये त्रिपक्षीय समझौता भारत, नेपाल और यूनाइटेड किंगडम के बीच एक महत्वपूर्ण संधि है जो नेपाल के गोरखा सैनिकों की भारत और ब्रिटेन में सैन्य सेवा से संबंधित है. इसमें ये सुनिश्चित किया गया था कि भारत की आजादी के बाद भी नेपाली गोरखा सैनिक भारत और ब्रिटेन की सेना में अबाध तरीके से भर्ती होते रहें. गोरखा रेजिमेंट में पिछले तीन सालों में करीब 12000 सैनिक रिटायर हुए लेकिन नए गोरखा सैनिक आए नहीं.
नेपाल का कहना है कि अग्निवीर योजना 1947 के त्रिपक्षीय समझौते का उल्लंघन करता है जो विदेशी सेनाओं में सेवारत नेपाली सैनिकों के लिए समान व्यवहार और शर्तें सुनिश्चित करता है, जिसमें पेंशन और नौकरी की सुरक्षा शामिल है.
कब से भारतीय सेना में भर्ती हो रहे गोरखा
19वीं शताब्दी की शुरुआत से ही गोरखाओं को अंग्रेजों द्वारा भर्ती किया जाता रहा है. खासकर एंग्लो-नेपाली युद्ध के बाद जिसके कारण उन्हें विभिन्न सैन्य बलों में शामिल किया गया.
अंग्रेजों ने साल 1815 में हुई सुगौली संधि के जरिए गोरखा सैनिकों को ब्रिटिश फौज में शामिल करना शुरू किया. ईस्ट इंडिया कंपनी के आने से पहले भी तमाम रियासतों की फौज में गोरखा तैनात थे. महाराजा रणजीत सिंह ने गोरखाओं की एक बटालियन बनाई जो 1809 से 1814 तक सिख सेना का अंग थी.
जब भारत को आजादी मिली तो समझौते में तय किया गया कि मौजूदा गोरखा रेजिमेंटों को ब्रिटिश और भारतीय सेनाओं के बीच विभाजित किया जाएगा. तब 10 गोरखा रेजिमेंट थीं, इसमें चार रेजिमेंट ब्रिटिश सेना को सौंपी गईं जबकि छह भारतीय सेना के पास रहीं. बाद में इंडियन आर्मी में इनकी रेजिमेंट को 06 से बढ़ाकर 07 कर दिया गया. इसमें नेपाल से भेजे गए गोरखाओं को भर्ती किया जाता रहा है.
क्या थीं गोरखा सैनिकों की सेवा शर्तें
संधि ने सुनिश्चित किया कि दोनों सेनाओं में सेवारत गोरखाओं को ब्रिटिश और भारतीय सैनिकों के बराबर ही सेवा की शर्तें मिलेंगी यानि समान वेतन, लाभ और पेंशन योजनाएं. इस समझौते ने नेपाली युवाओं के लिए दोनों सेनाओं में भर्ती के अवसर सुगम बनाए, जिससे उन्हें विदेश का रोजगार का महत्वपूर्ण मौका मिला.
तो अब क्या हो गया है
भारत ने जब अग्निवीर योजना लागू किया तो इस समझौते पर असर पड़ा. नेपाल ने इस बात पर चिंता व्यक्त की है कि ये परिवर्तन त्रिपक्षीय समझौते के तहत गारंटीकृत अधिकारों और शर्तों को प्रभावित करते हैं. नेपाल की चिंता ये भी है अग्निपथ योजना की शर्तों के कारण इसकी संप्रभुता और सुरक्षा पर असर पड़ता है. ये सैन्य भर्ती योजना सीमित स्थायी पदों के साथ केवल चार साल का अनुबंध प्रदान करती है.
क्या है अग्निपथ योजना विवाद
अग्निपथ योजना को अल्पकालिक आधार पर सैनिकों की भर्ती के लिए डिज़ाइन किया गया था, जिसमें चार साल के बाद केवल 25 फीसदी भर्तियां ही रखी गई हैं. इस मॉडल का नेपाल से विरोध हुआ है, क्योंकि ये योजना सैनिकों की नौकरी की सुरक्षा के बारे में चिंताएं पैदा करता है. गोरखाओं की पारंपरिक भर्ती प्रथाओं को रोकता है.
गोरखा रेजिमेंट पर इसका क्या असर
नेपाल से नए रंगरूटों को भर्ती के लिए नहीं भेजने से भारतीय सेना की गोरखा रेजिमेंटों के भीतर मैनफोर्स यानि सैनिकों की कमी ला दी है. 2021 से करीब 12,000 गोरखा सैनिक रिटायर हो चुके हैं,
नेपाल से आए गोरखाओं की सालाना 1,500 से 1,800 भर्तियां भारतीय सेना में होती थी. अनुमान बताते हैं कि अगर भर्ती रुक गई तो सात वर्षों में, गोरखा बटालियनों की ताकत आधी हो जाएगी और 2037 तक भारतीय सेना में शुद्ध गोरखा बटालियन ही खत्म हो जाएगी. ब्रिटिश सेना में हर साल 300 गोरखा सैनिकों की भर्ती होती है.
असर तो नेपाल पर भी
नेपाल के लोगों के लिए भारत में सेना की नौकरी मायने रखती थी. क्योंकि ये उनकी आजीविका के लिए बहुत खास भूमिका निभाती रही है. वह भारतीय सेना में भर्ती होते थे और पूरी सेवा के बाद रिटायरमेंट सुविधाओं के हकदार बनते थे, जिसमें मुख्यरूप से पेंशन शामिल थी लेकिन अग्निवीर की वजह से नेपाल को महसूस हो रहा है कि अब अपने लोगों को भारत भेजना उनकी स्थायी सेना नौकरी की गारंटी नहीं देता. इससे नेपाल में बेरोजगारी और आर्थिक दिक्कतें बढ़ेंगी.
नेपाली सरकार चिंतित है कि अग्निपथ अनुबंधों की अल्पकालिक प्रकृति के कारण उसके यहां प्रशिक्षित सैनिकों की अधिकता हो सकती है, जो अपनी सेवा समाप्त होने के बाद बेरोजगार हो सकते हैं, जिससे विद्रोही समूहों या विदेशी भाड़े के सैनिकों द्वारा भर्ती किए जाने पर सुरक्षा जोखिम पैदा हो सकता है.
कहां जा रहे हैं अब गोरखा सैनिक
गोरखा सैनिक अब चीन और रूसी सेना की ओर रुख कर सकते हैं. आशंका है अगर गोरखा भारत नहीं आए तो नेपाल सरकार उन्हें चीन की सेना में जाने की अनुमति दे सकती है. ये खबरें भी हैं कि गोरखा सैनिक बड़े पैमाने पर रूस की ओर रुख कर रहे हैं.
नेपाल के करीब 15,000 गोरखा सैनिक रूस की तरफ से यूक्रेन से युद्ध लड़ रहे हैं. eurasiantimes की एक ताजा रिपोर्ट में यह दावा किया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि रूसी सरकार द्वारा आकर्षक पैकेज की घोषणा के बाद आर्मी में शामिल होने वाले गोरखा जवानों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. रूस ने ऐलान किया था कि उनकी तरफ से लड़ने वाले जवानों को 2000 डॉलर (167,020 रुपये) प्रतिमाह सैलरी के साथ-साथ रूस की नागरिकता और तमाम दूसरी सुविधाएं मिलेंगी.
क्या कोई विकल्प भी है
नेपाल से भर्ती रुकने के जवाब में भारतीय सेना के भीतर भारतीय मूल के गोरखाओं विशेष रूप से उत्तर बंगाल और उत्तराखंड जैसे क्षेत्रों से भर्ती बढ़ाने के लिए चर्चाएं चल रही हैं. हालांकि ये बदलाव अनुभवी नेपाली सैनिकों के नुकसान की पूरी तरह से भरपाई नहीं कर सकता है, जो ऐतिहासिक रूप से गोरखा ब्रिगेड का मुख्य हिस्सा रहे हैं.
दुनिया के सबसे खतरनाक लड़ाके
भारतीय सेना के भूतपूर्व चीफ ऑफ स्टाफ जनरल सैम मानेकशॉ ने कहा था कि यदि कोई कहता है कि मुझे मौत से डर नहीं लगता, वह या तो झूठ बोल रहा है या गोरखा है.
गोरखा अपने साहस और वफादारी के लिए पहचाने जाते हैं. शारीरिक और मानसिक तौर पर बहुत मजबूत होते हैं. गोरखा सैनिकों की पहचान उनका एक खास पारंपरिक हथियार खुखरी है. यह करीब 18 इंच की एक तेज धारदार चाकू जैसा है. ऐसी कहावत है कि एक बार खुखरी म्यान से निकल गई तो उसे हर हाल में दुश्मन का खून चाहिए होता है. वरना म्यान में वापस रखने से पहले मालिक को अपना देना होता है.
Tags: Indian army, NepalFIRST PUBLISHED : November 19, 2024, 15:53 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed