Explainer : कैसे हुई PFI की उत्पत्ति और क्यों तेज हो गई इस पर बैन की मांग

देश की जांच एजेंसी नेशनल इनवेस्टिगेटिव एजेंसी यानि एनआईए ने गुरुवार में एक बड़े आपरेशन में देशभर में एक साथ 40 जगहों पर छापा मारा और 100 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया. ये छापे पीएफआई के खिलाफ मारे गए थे. आखिर क्या है पीएफआई जो देखते ही देखते इतना चर्चित हो चुका है.

Explainer :  कैसे हुई PFI की उत्पत्ति और क्यों तेज हो गई इस पर बैन की मांग
हाइलाइट्सकैसे और कब हरकत में आ गया पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानि पीएफआईक्या ये प्रतिबंधित संगठन सिमी का ही दूसरा अवतार हैक्यों कई राज्य सरकारें और एनआईए इसके खिलाफ कार्रवाई की मांग करती रहीं हैं देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी एनआईए ने 22 सितंबर को देशभर में सबसे बड़ा आपरेशन पीएफआई के खिलाफ किया. पीएफआई यानि पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया. पिछले कुछ समय से चाहे हिजाब मामले को लेकर उकसाने की घटनाएं हों या तनाव पैदा करने की घटनाएं या कानपुर में आगजनी की घटना – हर जगह पीएफआई का नाम सुर्खियों में उभरा है. उसके खिलाफ प्रतिबंध की मांग लगातार हो रही है. जानते हैं कैसे हुई इसकी पैदाइश. इसके पीछे कौन लोग हैं और ये क्या करता है. सवाल – क्या है PFI और कैसे हुई इसकी शुरुआत? – बेंगलुरु में 19 दिसंबर 2006 में एक मीटिंग हुई जिसमें पीएफआई फॉर्म किया गया. इसे तीन संगठनों को मिलाकर बनाया गया. ये संगठन थे द नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट – ये केरल में सक्रिय था मनीता नीति पसरई – ये तमिलनाडु में सक्रिय था कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी – कर्नाटक में एक्टिव इसमें द नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट यानि एनडीएफ को केरल में सीपीआईएम और बीजेपी के विरोध के कारण बिस्तर समेटना पड़ रहा था. उस पर केरल में सांप्रदायिक तनाव पैदा करने के आऱोप थे. सवाल – क्या पीएफआई का जन्म सिमी के ही लोगों के जरिए हुआ था? – काफी हद तक काफी हद तक ऐसा ही था. क्योंकि पीएफआई के शुरुआती लोगों में सिमी के लोग ही मुख्य पदों पर थे. उन्होंने इस संगठन की स्थापना में खास भूमिका अदा की. इसका जन्म भी सिमी के खत्म होने के बाद हुआ. सिमी यानि स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया को तब बैन कर दिया गया जबकि उसका नाम कई बम धमाकों में सामने आया. ये माना गया कि पीएफआई दरअसल सिमी का ही नया अवतार है. इसके फाउंडिंग मेंबर्स सिमी के नेता ही थे. जिसमें सिमी का महासचिव ईएम रहीमन, केरल में सिमी इकाई का प्रेसीडेंट ई अबूबकर और प्रोफेसर पी कोया शामिल थे. कोया पीएफआई का बड़ा नेता था. कोया उन 19 लोगों में था, जिन्होंने सिमी और एनडीएफ की स्थापना में खास भूमिका अदा की. सवाल – पीएफआई खुद को क्या बताता है? – पीएफआई खुद को ऐसा संगठन बताता है जो सामाजिक आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक ताकत और बेहतरी के लिए काम करता है. मुख्य तौर पर वह दबे कुचले लोगों और वंचितों की मदद का काम करता है. 2019 में इसने गोवा सिटीजेंस फोरम, राजस्थान के कम्युनिटी सोशल एंड एजुकेशन सोसायटी से हाथ मिलाया. इसी तरह इसका टाईअप पश्चिम बंगाल में नागरिक अधिकार सुरक्षा समिति, मणिपुर में लीलांग सोशल फोरम और आंध्र प्रदेश में एसोसिएशन ऑफ सोशल जस्टिस से हुआ. सवाल – इसकी सियासी पार्टी और दूसरे संगठन भी हैं? – इसने 2009 में एक सियासी पार्टी सोशल डेमोक्रेटिप पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) की स्थापना भी की. जिसका उद्देश्य मुस्लिमों, दलितों और दबेकुचले लोगों की मदद था. अबूबकर इस सियासी पार्टी का प्रमुख था पीएफआई ने स्टूडेंट्स पॉलिटिक्स में पैठ बनानी शुरू की. इसके लिए उसने स्कूलों और कॉलेजों में द कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (CFI) संगठन भी इसी साल खड़ा किया. सवाल – इस पर कब से आरोप लगने शुरू हुए? – जैसे जैसे इसकी लोकप्रियता बढ़नी शुरू हुई, उसके साथ इसके कैडर और संगठन पर तमाम सांप्रदायिक घटनाओं और आपराधिक गतिविधियों के लिए आरोप लगने शुरू हो गए औऱ ये कम नहीं हुए बल्कि लगातार बढ़ते गए. इसकी गतिविधियां कर्नाटक और केरल में तेजी से बढ़ रही थीं उसी के साथ उसका नाम भी कई गलत चीजों में आने लगा था, बल्कि उसकी मौजूदगी भी उसमें साफ नज़र आने लगी थी. सवाल – इसकी आपराधिक गतिविधियां और विवाद क्या हैं, जिससे इसका नाम जुड़ा? – शुरुआत के साथ कई राज्यों की पुलिस और केंद्रीय एजेंसियों ने पीएफआई की संलिप्तता हथियारों के जमा करने, हिंसा को उकसाने, घृणा अभियान फैलाने, दंगों और इसी तरह की हरकतों के जिम्मेदार ठहराया. मसलन, 2013 में केरल पुलिस ने उत्तरी केरल में पीएफआई कार्यकर्ताओं के खिलाफ एक के बाद एक छापे मारे. इसमें उन्हें काफी गंभीर किस्म के हथियार भी मिले, जिसमें बम, विस्फोटकों के लिए कच्चा माल, गन पाउडर और दूसरी चीजें शामिल थीं. 2020 में पीएफआई के शीर्ष नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर दिल्ली दंगों में फंडिंग करने का आरोप लगाया गया, इसमें 53 लोगों की जान गई. सवाल – कब पीएफआई पर आतंकवाद का टैग लगा? – पहली बड़ी घटना जब पीएफआई पर आतंकवाद का टैग लगा, वो जुलाई 2010 की बात थी, जब उसके कार्यकर्ताओ ने केरल में मलयालम के प्रोफेसर टीजे जोसेफ का दायां हाथ काट दिया था. इन कार्यकर्ताओं ने प्रोफेसर पर पैगंबर के अपमान का आरोप लगाया. उनका कहना था कि उन्होंने जानबूझकर ऐसा पेपर सेट किया, जिससे पैंगबर का अपमान हुआ. 2012 में केरल सरकार की ओमेन चांडी की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार ने केरल हाईकोर्ट को सूचित किया कि दरअसल पीएफआई प्रतिबंधित संगठन सिमी का ही दूसरा रूप है और 27 हत्याओं में इसकी संलिप्तता है, जिसमें अधिकार मरने वाले सीपीआईएम और आरएसएस के लोग रहे हैं. वर्ष 2012 में ही तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि केरल के साथ दूसरे राज्यों जिसमें जम्मू-कश्मीर भी शामिल हैं, उसमें धार्मिक अतिवाद बढ़ रहा है. इसके बाद पीएफआई केंद्र सरकार के रडार पर भी आ गया. सवाल – इसके बाद पीएफआई की गतिविधियां किस तरह बढ़ीं? – पीएफआई एक ओर तो केंद्र सरकार के रडार पर आ चुका था. साथ ही केरल और कई राज्यों की सरकारें उसकी गतिविधियों पर नजर रखने लग गईं थीं लेकिन इसके बाद भी ये संगठन देश भर में फैलाव करता रहा. खासकर ये झारखंड में तेजी से फैला. जहां इसने हिंदू संगठनों पर हमले बोलने शुरू किए. वहीं केरल में इसके द्वारा हथियारों की ट्रेनिंग देने और आईएस जैसे आतंकवादी संगठन के लिए भर्ती की भी रिपोर्ट आने लगीं. ओपन मैगजीन में 2017 में एक आर्टिकल प्रकाशित किया, जिसमें केरल पुलिस के एक सीनियर इंटैलीजेंस अफसर ने जर्नलिस्ट से बताया कि राज्य से कम से कम लोगों ने आईएस ज्वाइन किया और उसमें से ज्यादातर पीएफआई के सदस्य हैं. लेकिन इस पर पीएफआई के नेताओं ने यही कहा कि जो भी लोग आईएस में गए हैं, उनके रिश्ते अब उसके साथ नहीं हैं. वर्ष 2017 में एनआई ने गृह मंत्रालय को पीएफआई और एसडीपीआई को बैन करने संबंधी एक बड़ी रिपोर्ट दी, क्योंकि इन दोनों संगठनो के खिलाफ आतंकवाद गतिविधियों संबंधी कई मामलों में इनवाल्वमेंट नजर आ रहा था. एनआईए का दावा था कि पीएफआई राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है और इस मामले में उसने केरल और कर्नाटक में इसके सीधे तौर पर आतंक की घटनाओं में संलिप्त होने का ब्योरा भी दिया था. सवाल – पीएफआई पर प्रतिबंध की मांग अब किसकी ओर से तेज हो रही है? – पीएफआई को प्रतिबंधित करने की मांग हाल में फिर बीजेपी शासित राज्यों में तेज हुई है. ताजा मांग कर्नाटक में इस साल फरवरी में शिवमोगा जिले में बजरंग दल के 28 वर्षीय कार्यकर्ता की हत्या के बाद तेज हुई. हालांकि अभी ये साफ नहीं हो पाया कि इस हत्या के पीछे पीएफआई का कितना हाथ था या नहीं. वर्ष 2020 में जब देश में सीएए विरोधी माहौल बनना शुरू हुआ तब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी पीएफआई पर बैन की मांग की और दावा किया जो विरोध हो रहा है उसके पीछे यही संगठन है. ईडी ने भी गृह मंत्रालय को भेजी अपनी रिपोर्ट में भी यही बात कही. सवाल – क्या देश के किसी राज्य में इस संगठन को बैन किया गया है? – झारखंड में इसको बैन किया गया है. जहां राज्य सरकार ने कहा कि पीएफआई पर देश विरोधी गतिविधियों और आईएस जैसे कुख्यात अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन से इसके रिश्ते के चलते इस पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है. ये बैन 2019 से ही लगा हुआ है. ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी | Tags: Karnataka, Kerala, NIA, PFI, SIMI, Terrorism In IndiaFIRST PUBLISHED : September 23, 2022, 17:12 IST