आजादी के पहले भारतीयों का फेवरिट था आस्ट्रिया सुभाष को यहीं मिलीं उनकी पत्नी
आजादी के पहले भारतीयों का फेवरिट था आस्ट्रिया सुभाष को यहीं मिलीं उनकी पत्नी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूरोप के देश आस्ट्रिया के दौरे पर हैं. ये ऐसा देश है जहां यूरोप में सबसे पहले भारतीय केंद्र बना. सुभाष चंद्र बोस निर्वासित होकर यहां आए. यहां उनको उनकी पत्नी मिलीं. नेहरू के लिए भी ये खास था.
हाइलाइट्स जवाहर लाल नेहरू ने इस देश की आजादी और संप्रभु में खास भूमिका अदा की सुभाष चंद्र बोस 30 के दशक में यहां आकर रहे, यहीं की थीं उनकी पत्नी सरदार पटेल के बड़े भाई विट्टल भाई पटेल समेते कई भारतीयों के लिए आदर्श जगह थी ये
आस्ट्रिया का भारत से खास रिश्ता है. जब 150 साल पहले दुनिया में भारत के अलावा कहीं संस्कृत नहीं पढ़ाई जा रही थी तो ये आस्ट्रिया की राजधानी वियना में यूनिवर्सिटी ने करना शुरू किया. सुभाष बोस से लेकर नेहरू तक के इस देश से खास रिश्ते रहे हैं.
सवाल – आस्ट्रिया अंग्रेजों के समय में क्यों भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं के लिए पसंदीदा जगह थी?
– दरअसल अंग्रेज सरकार समय समय पर कुछ भारतीय स्वाधीनता संग्राम के नेताओं को भारत से कुछ समय के लिए निर्वासित कर देती थी. ये कुछ महीने से लेकर साल दो साल तक का होता था. ऐसे में कई भारतीय नेता यूरोप में आस्ट्रिया में जाकर प्रवास बनाते थे. इसमें दो नेता कई बार वहां गए और रहे, जिसमें एक हैं सुभाष चंद्र बोस और दूसरे हैं सरदार वल्लभ भाई पटेल के बड़े भाई विट्टल भाई पटेल. ये लोग अक्सर वहां प्रवास किया करते थे. इसके अलावा भारत के और भी नेता वहां आते जाते और रहते थे.
सवाल – सुभाष चंद्र बोस के लिए आस्ट्रिया क्यों सबसे खास रहा?
– उसकी दो वजहें थीं. एक तो भारत से निर्वासित होने के बाद सुभाष दो बार आस्ट्रिया आए. स्वास्थ्यगत कारणों से ये जगह उन्हें बहुत माकूल लगती थी. सुभाष चंद्र बोस ने मध्य यूरोप और भारत के बीच वाणिज्यिक और सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए वियना में भारत-मध्य यूरोपीय सोसायटी की स्थापना की.
यहीं उनकी पहली भेंट अपनी भविष्य की पत्नी एमिलि शेंकल से हुई. जो यहीं पैदा हुईं. सुभाष से शादी के बाद यहीं रहीं. यहीं 1996 में उनका निधन भी हुआ. सुभाष के परिवार के सारे लोग उनसे मिलने यहां आते रहे थे. नेहरू जी जब प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने वियना स्थित भारतीय दूतावास के जरिए उन्हें लगातार मदद देना सुनिश्चित कराया.
सवाल – क्या ये सही जब दुनिया के किसी देश में संस्कृत को कॉलेज के कोर्स में शामिल नहीं किया गया था तो ये काम आस्ट्रिया की राजधानी वियना में हो चुका था?
– हां, ये बिल्कुल सही है. 1845 में यूनिवर्सिटी ऑफ वियना में संस्कृत की पढ़ाई शुरू हुई थी. बाद में इसे और बढ़ाया गया. 1880 में इसमें केवल संस्कृत ही नहीं बल्कि दूसरी भारतीय भाषाओं को इंडोलॉजी डिपार्टमेंट बनाकर उसमें शामिल कर लिया गया. जिसमें खासतौर तिब्बती का अध्ययन भी शामिल था. ये बाद इंस्टीट्यूट ऑफ साउथ एशियन के नाम से इंडिपेंडेंट डिपार्टमेंट बना, जिसमें दक्षिण एशिया, तिब्बती और बौद्ध शिक्षाएं दी जाने लगीं.
सवाल – भारत के नोबल पुरस्कार विजेता रविंद्र नाथ टैगोर को खासतौर पर आस्ट्रिया बहुत पसंद आता था?
– बिल्कुल ये बात सही है. भारत के दार्शनिक, कवि और साहित्यकार रविंद्र नाथ टैगोर ने 1921 औऱ 1926 में यहां प्रवास किया. जिन्होंने दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और बौद्धिक आदान-प्रदान में खास भूमिका अदा की.
सवाल – भारत और आस्ट्रिया के बीच राजनयिक रिश्ते कब से बने और क्या वाकई आस्ट्रिया की आजादी में नेहरू की भूमिका थी?
– दरअसल जब भारत आजाद हुआ तभी से देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और आस्ट्रिया के बीच बेहतर संबंध बनने लगे. दोनों देशों में 1949 में राजनयिक रिश्ते शुरू हुए.
1938 में नाजी जर्मनी ने कब्जा कर लिया था. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भी आस्ट्रिया की स्थिति स्पष्ट नहीं थी, लिहाजा 1953 में नेहरू ने सोवियत संघ से कहकर आस्ट्रिया की आजादी के लिए कोशिश की. नतीजे में 1955 में ऑस्ट्रियाई राज्य संधि पर मित्र देशों (फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका, सोवियत संघ) और ऑस्ट्रियाई सरकार के बीच 15 मई, 1955 को वियना में हस्ताक्षर हुए. इससे ऑस्ट्रिया एक “संप्रभु, स्वतंत्र और लोकतांत्रिक राज्य” के रूप में फिर से स्थापित हो गया. तभी नेहरू ने आस्ट्रिया का दौरा किया.
“प्रसिद्ध ऑस्ट्रियाई शिक्षाविद डॉ. हंस कोचलर ने द्वितीय विश्व युद्ध में विजयी शक्तियों के एक दशक के कब्जे के बाद एक संप्रभु और तटस्थ ऑस्ट्रिया के उदय में जवाहरलाल नेहरू द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में लिखा है.
सवाल – आस्ट्रिया के पूर्व चांसलर ब्रूनो क्रास्की और नेहरू के बीच कैसे रिश्ते थे?
– दोनों एक दूसरे के प्रशंसक थे. कांग्रेस नेता जयराम रमेश का कहना है कि नेहरू के सबसे प्रबल वैश्विक प्रशंसकों में एक महान ब्रूनो क्रेस्की थे, जो 1970-83 के दौरान ऑस्ट्रिया के चांसलर थे.
“1989 में डॉ. क्रेस्की ने नेहरू को इस तरह याद किया: ‘जब इस सदी का इतिहास लिखा जाएगा, और उन लोगों का इतिहास जिन्होंने इस पर अपनी मुहर लगाई है, तो सबसे महान और बेहतरीन अध्यायों में से एक पंडित जवाहरलाल नेहरू की कहानी होगी
ब्रूनो ने बाद में भारत का दौरा भी किया.
सवाल – आस्ट्रिया में कितने भारतीय रहते हैं?
– आस्ट्रिया स्थित भारतीय दूतावास के अनुसार ऑस्ट्रिया में भारतीय समुदाय की संख्या बीस हज़ार से ज़्यादा है. वो वहां विभिन्न क्षेत्रों में योगदान दे रहे हैं. कुछ स्थायी तौर पर बस चुके हैं तो कुछ काम के चलते वहां रह रहे हैं. भारतीय वहां बिजनेस से लेकर मेडिकल, एजुकेशन, साइंस, रिसर्च, मैनेजमेंट और इंजीनियरिंग प्रोफेशन में शामिल हैं.
Tags: Austria vs north macedonia, European union, Jawahar Lal Nehru, Jawaharlal Nehru, Netaji Subhash Chandra Bose, Vienna treatyFIRST PUBLISHED : July 10, 2024, 14:38 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed