कैसे थे डॉ अंबेडकर के आखिरी कुछ घंटे शाम तक भले चंगेरात में फिर क्या हो गया

Dr Bhimrao Ambedkar Mahaparinirvan Diwas: 06 दिसंबर को डॉ. भीमराव अंबेडकर का सोते सोते निधन हो गया. मृत्यु के पहले उनके आखिरी घंटे कैसे थे, वो किससे

कैसे थे डॉ अंबेडकर के आखिरी कुछ घंटे शाम तक भले चंगेरात में फिर क्या हो गया
हाइलाइट्स डॉ. अंबेडकर का निधन 6 दिसंबर 1956 को हुआ था शाम तक थे बिल्कुल स्वस्थ, रात में सोते समय हो गया निधन शाम को जैन प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की, फिर कुछ लिखा-पढ़ी पांच दिसंबर 1956 की सुबह डॉ. भीमराव आंबेडकर देर से सोकर उठे. 16 वर्षों से उनके सहायक रहे नानक चंद रत्तू उनके उठने का इंतजार कर रहे थे. उनके जागने के बाद उन्होंने दफ्तर जाने की इजाजत मांगी. अब घर पर रह गए पत्नी सविता आंबेडकर और डॉक्टर मालवंकर, जो मुंबई से उनके स्वास्थ्य की जांच के लिए आए हुए थे. दोपहर में सविता और डॉ. मालवंकर सामान की ख़रीदारी के लिए बाजार चले गए. घर लौटने में देर हो गई. आंबेडकर घर पर ही थे. जब शाम छह बजे रत्तू ऑफिस से वापस लौटे तब तक श्रीमती आंबेडकर बाजार से नहीं लौटी थीं. आंबेडकर नाराज थे. उन्हें लग रहा था कि उनका ध्यान नहीं रखा जा रहा. रत्तू ने उनकी नाराजगी महसूस की. डॉ. आंबेडकर ने रत्तू को टाइप करने के लिए कुछ काम दिया. जैसे ही रत्तू लौटने वाले थे, तभी श्रीमती आंबेडकर लौट आईं. आंबेडकर गुस्से पर काबू नहीं रख सके. उन्होंने कुछ सख्त बातें कहीं. जब श्रीमती आंबेडकर ने पति को आपे से बाहर होते देखा तो उन्हें लगा कि उनका कुछ भी कहना आग में घी डालेगा, लिहाजा वो शांत रहीं. उन्होंने रत्तू से कहा कि वह डॉ. आंबेडकर को शांत करने की कोशिश करें. रत्तू ने कोशिश की. थोड़ी देर में वह शांत हो गए. जैन धर्म के प्रतिनिधिमंडल से मिले उसी रात करीब आठ बजे जैन मतावलंबियों का एक प्रतिनिधिमंडल तय समय के अनुसार उनसे मिला. आंबेडकर को महसूस हो रहा था कि वह आज मिलने की स्थिति में नहीं हैं लिहाजा मुलाकात को अगले दिन के लिए टाल दिया जाए. चूंकि वो लोग आ चुके थे, तो उन्हें लगा कि अब मिल लेना चाहिए. इसके 20 मिनट बाद वह बाथरूम गए. फिर रत्तू के कंधे पर हाथ रखकर वापस ड्राइंगरूम में लौटे. सोफे पर निढाल हो गए. आंखें बंद थीं. कुछ मिनटों पर शांति पसरी रही. जैन नेता उनके चेहरे की ओर देखे जा रहे थे. फिर आंबेडकर ने सिर हिलाया. कुछ देर बातचीत की. बौद्धिज्म और जैनिज्म को लेकर सवाल पूछे. प्रतिनिधिमंडल ने बुद्ध पर एक किताब भेंट की. वास्तव में वह उन्हें अगले दिन के एक समारोह में आमंत्रित करने आए थे. डॉ आंबेडकर ने आमंत्रण स्वीकार कर लिया. भरोसा दिलाया कि अगर स्वास्थ्य अनुमति देता है तो वह जरूर आएंगे. जब वह जैन प्रतिनिधिमंडल से बात कर रहे थे तभी डॉक्टर मालवंकर ने उनका चेकअप किया. फिर मालवंकर पूर्व निर्धारित प्रोग्राम के अनुसार मुंबई रवाना हो गए. Shri B.R. Ambedkar in his office. रात में बिस्तर के पास कुछ किताबें रखने को कहा जैन प्रतिनिधिमंडल के जाने के बाद रत्तू ने उनके पैर दबाए. डॉ. आंबेडकर ने सिर पर तेल लगाने को कहा. अब वह कुछ बेहतर महसूस कर रहे थे. अचानक रत्तू के कानों में गाने की आवाज आनी शुरू हो गई. आंबेडकर आंखें बंद करके गा रहे थे. उनके दाएं हाथ की अंगुलियां सोफे पर थिरक रही थीं. धीरे धीरे गाना स्पष्ट और तेज हो गया. डॉ. आंबेडकर बुद्धम शरणम गच्छामी को पूरी तन्मयता से गा रहे थे. उन्होंने इसी गाने का रिकार्ड रेडियोग्राम पर बजाने के लिए कहा. साथ ही रत्तू से कुछ किताबें और द बुद्धा एंड द धम्मा का परिचय और भूमिका लाने को कहा. उन्होंने इस सबको अपने बिस्तर की बगल में टेबल पर रखा ताकि रात में इन पर काम कर सकें. रात में थोड़ा चावल खाया और फिर कुछ लिखा कुछ समय बाद रसोइया सुदामा खाना तैयार होने की बात बताने आया. आंबेडकर ने कहा कि वह केवल थोड़ा चावल खाएंगे और कुछ भी नहीं. वह अब भी गाना बुदबुदा रहे थे. रसोइया दूसरी बार आया. वह उठे और डाइनिंग रूम में गए. वह अपना सिर रत्तू के कंधे पर रखकर वहां तक गए. जाते हुए अलमारियों से कुछ किताबें भी निकालते गए. उन्हें भी टेबल पर रखने को कहा. रात के खाने के बाद वह फिर कमरे में आए. वहां वह कुछ देर तक कबीर का गाना, ”चल कबीर तेरा भव सागर” देर तक बुदबुदाते रहे. फिर बेडरूम में चले गए. अब उन्होंने टेबल पर रखी उन किताबों की ओर देखा, जिसे उन्होंने रत्तू से रखने को कहा था. किताब द बुद्धा एंड हिज धम्मा की भूमिका पर कुछ देर काम किया. फिर किताब पर ही हाथ रखकर सो गए. छह दिसंबर की सुबह 06.30 बजे सुबह जब श्रीमती आंबेडकर हमेशा की तरह उठीं तो उन्होंने बिस्तर की ओर देखा. पति के पैर को हमेशा की तरह कुशन पर पाया. कुछ ही मिनटों में उन्हें महसूस हुआ कि डॉ. आंबेडकर के प्राण पखेरू उड़ चुके हैं. उन्होंने तुरंत अपनी कार नानक चंद रत्तू को लेने भेजी.जब वह आए तो श्रीमती आंबेडकर सोफे पर लुढ़क गईं. वो बिलख रही थीं कि बाबा साहेब दुनिया छोड़कर चले गए. रत्तू ने छाती पर मालिश कर हृदय को हरकत में लाने की कोशिश की. हाथ-पैर हिलाया डुलाया. उनके मुंह में एक चम्मच ब्रांडी डाली, लेकिन सब कुछ विफल रहा. वह शायद रात में सोते समय ही गुजर चुके थे. दुखद सूचना तेजी से फैली अब श्रीमती आंबेडकर के रोने की आवाज तेज हो चुकी थी. रत्तू भी मालिक के पार्थिव शरीर से लगकर रोए जा रहे थे- ओ बाबा साहेब, मैं आ गया हूं, मुझको काम तो दीजिए. कुछ देर बाद रत्तू ने करीबियों को दुखद सूचना देनी शुरू की. फिर केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्यों को बताया. खबर जंगल में आग की तरह फैली. लोग तुरंत नई दिल्ली में 20, अलीपुर रोड की ओर दौड़ पड़े. भीड़ में हर कोई इस महान व्यक्ति के आखिरी दर्शन करना चाहता था. तुरंत मुंबई खबर भेजी गई. बताया गया कि उसी रात में उनका पार्थिव शरीर मुंबई लाया जाएगा, जहां बौद्ध रीतिरिवाजों से अंतिम संस्कार किया जाएगा. पत्नी चाहती थीं कि अंतिम संस्कार सारनाथ में हो हालांकि इस पर विवाद भी है. कुछ लोगों का कहना है कि श्रीमती आंबेडकर ने इस बारे में बेटे यशवंतराव को कोई सूचना नहीं दी. वह सारनाथ ले जाकर उनका अंतिम संस्कार करना चाहती थीं. दरअसल चार साल पहले डॉ. आंबेडकर को लगने लगा था कि वह अब ज्यादा जीवित नहीं रहेंगे. इस बारे में उन्होंने अपने खास सहायक बाहुराव गायकवाड़ को पत्र भी लिखा था कि वह ऐसी घटना की तैयारी पहले से करके रखें. मुंबई में चौपाटी में हजारों लोगों ने उनके अंतिम संस्कार में हिस्सा लिया. Tags: Ambedkar Jayanti, B. R. ambedkar, Dr. Bhim Rao Ambedkar, Dr. Bhimrao AmbedkarFIRST PUBLISHED : December 6, 2024, 08:46 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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