लोगों को पता तो चले कि हमारा भी वजूद हैCJI चंद्रचूड को ऐसा क्यों कहना पड़ा
लोगों को पता तो चले कि हमारा भी वजूद हैCJI चंद्रचूड को ऐसा क्यों कहना पड़ा
देशभर की जिला अदालतों में 4 करोड़ से ज्यादा मुकदमें पेंडिंग हैं. सालों से तारीख पर तारीख मिल रही है. ऐसे में CJI चंद्रचूड़ को कहना पड़ा कि लोगों को पता लगना चाहिए कि हमारा भी वजूद है.
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को कहा कि डिस्ट्रिक्ट ज्यूडिशियरी न्यायपालिका की रीढ़ की हड्डी है. उन्हें कमतर आंकना बंद करना करना चाहिए. CJI ने कहा कि जिला अदालतें ऐसी जगह हैं, जहां आम आदमी सबसे पहले न्याय की आस में आता है. ऐसे में हम उसे न्याय देकर समाज को एक पॉजिटिव मैसेज दे सकते हैं. लोगों को पता चलना चाहिए कि हमारा भी वजूद है. चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ दिल्ली में डिस्ट्रिक्ट ज्यूडिशियरी पर आयोजित एक कॉन्फ्रेंस में अपनी बात रख रहे थे. उन्होंने अक्सर आम आदमी न्याय के लिए ऊपरी अदालतों तक नहीं पहुंच पाता है. इसलिए जरूरी है कि उसको पहले ही पायदान पर यानी निचली अदालत में न्याय मिले.
CJI को क्यों करनी पड़ी वजूद की बात?
आखिर क्यों CJI डीवाई चंद्रचूड़ को निचली अदालतों को अपना वजूद याद दिलाने के लिए कहना पड़ा? निचली अदालतों में केसेज की पेंडेंसी से लेकर बेल रिजेक्शन की प्रवृत्ति भी CJI की बात की तस्दीक करती है. नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड (National Judicial Data Grid) के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता लगता है कि देशभर की डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में 1 सितंबर 2024 तक 4 करोड़ से ज्यादा मुकदमे लंबित हैं. जिसमें 64% केसेज सालभर से पुराने हैं.
डिस्ट्रिक्ट कोर्ट्स में कितने पेंडिंग केसेज?
NJDG के ताजा डाटा पर नजर डालें तो पता लगता है कि देशभर की जिला अदालतों में कुल 44662216 करोड़ केसेज पेंडिंग हैं. जिसमें 10978130 सिविल मैटर्स हैं और 33684086 क्रिमिनल मैटर्स हैं. नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड से पता लगता है कि निचली अदालतों में जो केसेज पेंडिंग हैं, उसमें 64.15% साल भर से पुराने हैं. इसमें 6698442 लाख सिविल केसेज और 21951844 क्रिमिनल केसेज हैं. साल दर साल पेंडिंग केसेज की संख्या बढ़ती जा रही है. डिस्ट्रिक्ट कोर्ट्स में पेंडेंसी की वजहें (सोर्स- https://njdg.ecourts.gov.in/)
बेल खारिज करने की प्रवृत्ति
डिस्ट्रिक्ट कोर्ट्स में जो मुकदमे पेंडिंग हैं, उसमें 75 फीसदी से ज्यादा क्रिमिनल केसेज हैं. आपराधिक मुकदमों का बोझ बढ़ने की एक बड़ी वजह रिजेक्शन की टेंडेंसी भी है. खासकर ऐसे मामले जहां बेल दी जा सकती है और निपटारा किया जा सकता है, उसमें भी जज पीछे हट जाते हैं. खुद CJI डीवाई चंद्रचूड़ तमाम मौके पर यह कह चुके हैं. कुछ वक्त पहले ही उन्होंने कहा कि निचली अदालतें ‘बेल इज द रूल, जेल इज द एक्सेप्शन’ प्रिंसिपल को फॉलो नहीं कर रही हैं.
CJI चंद्रचूड़ ने बेल रिजेक्ट करने की वजह भी बताई. CJI ने कहा कि जिला न्यायालय के जजों के अंदर एक डर है कि अगर उन्होंने गंभीर मामलों में जमानत दे दी तो उन्हें निशाना बनाया जाएगा. इस डर से निकलने की जरूरत है. सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व सचिव रोहित पांडे hindi.news18.com से बातचीत में कहते हैं ‘निचली अदालतों के जज रेप, मर्डर, बड़े धोखाधड़ी के केसेज और पॉलिटिकल मामलों में बेल देने से हिचकते हैं. उन्हें अपना नाम खराब होने का डर रहता है. केसेज की पेंडेंसी की ये एक बड़ी वजह है…’
हाईकोर्ट का क्या हाल?
पेंडेंसी के मामले में हाईकोर्ट का भी बुरा हाल है. नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड पर 1 सितंबर 2024 को उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक देशभर के हाईकोर्ट में 5943054 लाख केसेज पेंडिंग हैं. जिसमें 4332001 लाख सिविल केसेज और 1611053 लाख क्रिमिनल केसेज हैं. अगर पेंडेंसी पीरियड पर नजर डालें तो हाईकोर्ट में करीब 75 फीसदी मुकदमे साल भर से ज्यादा समय से लंबित हैं. 3729033 (75.69%) सिविल केसेज और 1133363 (70.35%) क्रिमिनल केसेज साल भर से ज्यादा समय से पड़े हैं.
सुप्रीम कोर्ट का भी बुरा हाल
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) का भी यही हाल है. NJDG के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग केसेज की संख्या 82,989 हजार हो गई है, जो अब तक सर्वाधिक है. इसमें से 27729 केसेज साल भर से ज्यादा पुराने हैं. हालांकि सुप्रीम कोर्ट का डिस्पोजल रेट अन्य अदालतों से कहीं बेहतर है. डाटा से पता चलता है कि सुप्रीम कोर्ट का डिस्पोजल 95% के आसपास है. इसके बावजूद लंबित मुकदमों की संख्या बढ़ती जा रही है. उच्चतम न्यायालय में पेंडेंसी के पीछे सबसे बड़ी वजह कोविड पीरियड है, जब न्यायालय में कामकाज बहुत कम हो पाया.
Tags: DY Chandrachud, Justice DY Chandrachud, Supreme Court, Supreme court of indiaFIRST PUBLISHED : September 1, 2024, 12:02 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed