क्या बंगाल बना सकता है कि रेप दोषी के लिए मौत का कानून जिसमें तुरंत हो फैसला
क्या बंगाल बना सकता है कि रेप दोषी के लिए मौत का कानून जिसमें तुरंत हो फैसला
कोलकाता डॉक्टर रेप एंड मर्डर केस के बाद दबाई में आई बंगाल सरकार ने कहा कि वह ऐसा कानून लाएगी, जिसमें रेप के दोषी को मौत की सजा मिले और वो भी जल्दी से जल्दी. क्या बंगाल की सरकार ऐसा कानून बना सकती है.
हाइलाइट्स राज्य और केंद्र के बीच कानून को लेकर शक्तियां बंटी हुई हैं राज्य रेप से संबंधित कानून नहीं बना सकते अलबत्ता बस इन्हें प्रभावित प्रस्ताव पेश करके केंद्र को भेज सकते हैं
कोलकाता में महिला डॉक्टर के साथ रेप और मर्डर मामले में देशभर में जिस तरह उसके खिलाफ गुस्सा झलका. उससे बंगाल की ममता बनर्जी सरकार दबाव में दिखी. इसके बाद बंगाल की मुख्यमंत्री ने कहा कि हम बंगाल में रेप मामले में ऐसा कानून बनाने जा रहे हैं जिसमें रेप करने की सजा केवल मौत हो. इसके लिए बंगाल सरकार 02 सितंबर से शुरू हो रहे दो दिनों के विशेष विधानसभा सत्र में इस बिल को पास करेगी. भाजपा ने रेप मामलों में मृत्युदंड संबंधी विधेयक का विरोध करने का निर्णय लिया है.
अब सवाल ये है कि क्या बंगाल सरकार को रेप मामले में इतना कड़ा कानून बनाने का अधिकार हासिल है. हम इसको जानेंगे लेकिन ये पहले जानते हैं कि बीजेपी इसका विरोध क्यों कर रही है.
बंगाल की बीजेपी यूनिट का कहना है, केंद्र सरकार के पास पहले से ही बलात्कार और हत्या के खिलाफ़ एक कानून है. उस कानून में भी मृत्युदंड का प्रावधान है. केंद्र ने इसे बनाया है. राज्य सरकारों को फास्ट-ट्रैक कोर्ट स्थापित करने का निर्देश दिया है. बेहतर को कि राज्य सरकार (टीएमसी सरकार) इसके लिए फास्ट-ट्रैक कोर्ट स्थापित करके तेजी से वहां मुकदमा चलाए. इसकी बजाए वह अपनी विफलताओं को दबाने के लिए ये कानून ला रही है.
क्या राज्य सरकार रेप मामले में कानून बना सकती है
अब जानते हैं कि क्या राज्य सरकार के पास कोई कानून बनाने का हक है. इसका जवाब ये है कि देश में जितने राज्य हैं. उन सभी के पास अपने राज्य के सबंधित कुछ मामलों पर कानून बनाने का हक है लेकिन बहुत से मामले ऐसे होते हैं, जिसमें कानून बनाने का अधिकार उनके पास नहीं है बल्कि केंद्र को ही है.
ऐसे में राज्य सरकार अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर के कानून को केवल विधानसभा में पेश करके उसे केंद्र को ही भेज सकती है. आमतौर पर कई राज्य सरकारें दबाव के तौर पर अपने यहां से कोई भी कानून विधानसभा में पेश और पास करके उसे केंद्र सरकार के पास भेजती है.
केंद्र के पास कानून बनाने की कौन सी शक्ति
भारत में रेप कानूनों से संबंधित मामलों पर कानून बनाने की शक्ति मुख्य रूप से केंद्र सरकार के पास है, क्योंकि ये कानून भारतीय दंड संहिता और अन्य राष्ट्रीय कानूनों का हिस्सा हैं. हालाँकि, राज्य सरकारें यौन हिंसा के विशिष्ट पहलुओं से संबंधित संशोधनों का प्रस्ताव कर सकती हैं या कानून बना सकती हैं, बशर्ते वे केंद्रीय कानूनों द्वारा स्थापित ढांचे के अनुरूप हों.
केंद्र बनाम राज्य विधायी शक्तियां
केंद्रीय विधान – रेप से संबंधित कानून और उनमें प्रमुख संशोधन राष्ट्रीय स्तर पर ही किये जा सकते हैं. राज्य स्वतंत्र रेप कानून नहीं बना सकते हैं जो केंद्रीय कानूनों का खंडन करते हों, वे ऐसे कानून बना सकते हैं जो विशिष्ट स्थानीय मुद्दों को संबोधित करते हैं या दंड बढ़ाते हैं. उदाहरण के लिए, कुछ राज्यों ने नाबालिगों के साथ रेप के लिए मौत की सजा देने वाले कानून पेश किए हैं, जो केंद्रीय कानून के अनुरूप है लेकिन बंगाल की सरकार हर तरह के रेप में केवल मौत की सजा और फटाफट फैसले से संबंधित जो कानून बनाने की बात कर रही है, वो उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं है.
रेप कानूनों पर क्या कर सकती हैं राज्य सरकारें
भारत में राज्य सरकारों के पास रेप कानूनों को सीधे प्रभावित करने की सीमित क्षमता है, क्योंकि रेप पर प्राथमिक कानून भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) का हिस्सा है, जो एक केंद्रीय कानून है. हालाकि, राज्य सरकारें अब भी बलात्कार कानूनों को प्रभावित कर सकती हैं:
संशोधन का प्रस्ताव – राज्य सरकारें केंद्रीय रेप कानूनों में संशोधन का प्रस्ताव अपनी विधानसभा से पास करके केंद्र सरकार को दे सकती हैं. उदाहरण के लिए, कुछ राज्यों ने नाबालिगों के साथ रेप के लिए मौत की सजा देने का सुझाव दिया है, जो केंद्रीय कानून के अनुरूप है लेकिन पीड़ितों की कुछ श्रेणियों के लिए सख्त दंड जोड़ता है.
पूरक कानून बनाना – राज्य स्वतंत्र रेप कानून नहीं बना सकते हैं जो केंद्रीय कानूनों का खंडन करते हैं, वे पूरक कानून बना सकते हैं जो विशिष्ट स्थानीय मुद्दों को संबोधित करते हैं या दंड बढ़ाते हैं.
जनमत को प्रभावित करना – राज्य सरकारें जागरूकता अभियानों, नीतिगत निर्णयों और राजनीतिक बयानबाजी के माध्यम से बलात्कार कानूनों पर जनता की राय को प्रभावित कर सकती हैं. यह वैवाहिक रेपऔर लिंग-तटस्थ कानूनों की जरूरत जैसे मुद्दों पर चर्चा को आकार दे सकता है.
तो रेप को परिभाषित करने और कानूनी ढांचा तय करने का प्राथमिक अधिकार केंद्र सरकार के पास है. राज्य सरकारें स्वतंत्र रूप से आईपीसी से हटकर बलात्कार कानून नहीं बना सकती हैं.
क्या है रेप पर सजा
आपराधिक कानून (संशोधन) अध्यादेश, 2018 के जरिए सरकार ने भारतीय दंड संहिता, 1860 में संशोधन करके महिलाओं के साथ बलात्कार के लिए न्यूनतम सजा को सात वर्ष से बढ़ाकर दस वर्ष कर दिया है.
– 12 वर्ष से कम आयु की लड़कियों के साथ बलात्कार या सामूहिक बलात्कार के लिए न्यूनतम बीस वर्ष का कारावास होगा, जिसे आजीवन कारावास या मृत्युदंड तक बढ़ाया जा सकता है।
– 16 वर्ष से कम आयु की लड़कियों के साथ बलात्कार के लिए बीस वर्ष या आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है.
लड़कों से रेप पर सजा
जहां संशोधन अध्यादेश 2018 के जरिए लड़कियों से रेप की सज़ा बढ़ाने के लिए IPC, 1860 में संशोधन किया है. वहीं लड़कों से बलात्कार के लिए सज़ा में कोई बदलाव नहीं किया गया है. जिससे नाबालिग लड़कों और लड़कियों से रेप की सज़ा की मात्रा में काफ़ी अंतर आ गया है.
Tags: Brutal rape, Gangrape and murder, Kolkata News, West Bengal GovernmentFIRST PUBLISHED : September 2, 2024, 22:41 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed