कुवैत में भारतीयों की संख्या 10 लाख के करीब लेकिन मजदूरों की हालत खराब

कुवैत ऐसी जगह है जहां करीब दस लाख भारतीय नौकरियां करते हैं. पेशेवर भारतीयों की हालत तो तब भी ठीक है लेकिन मजदूरों के रहने की स्थितियां बहुत खराब हैं. वैसे कुवैत को खाड़ी देशों में काम करने के लिहाज सबसे खराब देश माना जाता है.

कुवैत में भारतीयों की संख्या 10 लाख के करीब लेकिन मजदूरों की हालत खराब
हाइलाइट्स कई भारतीय मजदूर वहां एक कमरे में रहते हैं ये रिहायशी जगहों से दूर मामूली बस्तियों में रहते हैं सर्वे में कुवैत को काम करने के लिहाज से सबसे खराब माना गया कुवैत के अहमदी प्रांत के मंगफ ब्लॉक की एक बिल्डिंग में लगी आग से 40 से ज्यादा भारतीय मजदूरों की मौत हो गई. कुवैत में करीब 09 लाख भारतीय मजदूर काम करते हैं. काम करने और रहने के लिहाज से ये खाड़ी देशों में सबसे खराब जगह मानी जाती है. अक्सर इसे लेकर रिपोर्ट्स छपती रहती है. हालत ये रहती है कि वहां एक कमरे में 10-15 मजदूर रहते हैं. जो लोग वहां गए, उन्होंने भी अपने संस्मरणों में ये बात लिखी है. कुवैत सरकार और वहां के मालिकों पर हमेशा आरोप लगता है कि वो लोग भारतीय मजदूरों से तय समय से ज्यादा घंटे तक काम कराते हैं. कम पैसा देते हैं. अक्सर उनका वेतन भी रोक देते हैं. हरासमेंट की शिकायतें इतनी ज्यादा होती हैं कि वहां भारतीय दूतावास को इसे लेकर बकायदा एक शिकायत निपटान सेल खोलना पड़ा. इंटरनेट पर सर्च करने पर इस सेल की जानकारी मिल जाएगी. मजदूरों की रहने की स्थितियां खराब वहां कई शहरों में खासकर बंदरगाह से जुड़े शहरों में ऐसी तमाम बिल्डिंग्स हैं, जो रिहायशी बस्तियों से दूर मामूली तौर पर बनाई गई हैं. हर बिल्डिंग में आए विदेशी मजदूर वहां ठसे होने की स्थिति में रहते हैं, क्योंकि ना तो यहां ज्यादा पैसा खर्च करने की स्थिति में रहते हैं और ना बेहतर रहने की जगहों को पाने की स्थिति में हैं. इसलिए हर बिल्डिंग के कमरे मजदूरों से ज्यादा तादाद से अटे रहते हैं. ये मजदूर केरल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार से वहां जाते हैं. हालांकि इनके अनुभव आमतौर पर वहां अच्छे नहीं रहते. द न्यूज मिनट में कुछ समय पहले प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार यहां रहने वाले मजदूरों की स्थिति तो खराब रहती ही है. साथ ही उन्हें नियोक्ताओं के बुरे सलूक का भी सामना करना पड़ता है. अक्सर यहां से तीन चार महीने तक भारतीय मजदूरों को वेतन नहीं मिलने की खबरें आती हैं. नियोक्ता ने उन्हें खराब जगहों पर रखते हैं. पानी की आपूर्ति काट दी जाती है. राशन बंद कर दिया जाता है. फुटबॉल की तरह लात मारने की धमकी दी जाती है. कंपनियां इन श्रमिकों को उनके पासपोर्ट तक अपने पास रखती हैं. कुवैत में हर तीन में से दो लोग विदेशी हैं. खराब स्थितियों के कारण कुवैत में प्रदर्शन करते भारतीय मजदूर> (courtesy the news minute) खाड़ी देशों में काम के लिहाज से सबसे खराब  कुछ समय पहले खाड़ी की एक जानी-मानी वेबसाइट www.agbi.com ने एक सर्वे (https://www.agbi.com/lifestyle/2022/07/welcome-to-kuwait-the-worlds-worst-expat-destination/) किया. जिसमें ज्यादातर लोगों ने कहा कि वो कुवैत में अवसरों से नाखुश हैं. वहां जीवन गुजारने की खराब गुणवत्ता से तंग आ चुके हैं. स्थानीय लोगों से उनका कोई कनेक्शन नहीं होता. कुवैत में रहने वाले प्रवासी इसे रहने और काम करने के लिए दुनिया की सबसे खराब जगह बताते हैं. प्रवासियों को लगता है कि वे खुलकर यहां अपनी राय व्यक्त नहीं कर सकते. स्थानीय निवासी मजदूरों को हिकारत से देखते हैं इस सर्वे में कहा गया कि यहां रहने वाले प्रवासी मजदूर स्थानीय निवासियों से शायद घुलते मिलते हैं, क्योंकि स्थानीय निवासी उन्हें आमतौर पर पसंद नहीं करते. ब्रिटेन से आए एक प्रवासी ने शिकायत की, “यहां के स्थानीय लोग मध्य-पूर्व के अन्य देशों की तरह मिलनसार नहीं हैं.” काम की संस्कृति नाखुश करने वाली सर्वे में ये भी कहा गया कि बाहर से यहां काम करने आए लोग कुवैत की व्यावसायिक संस्कृति से नाखुश हैं, बहुत बड़ी तादाद में लोग अपने काम और जीवन के बीच संतुलन से असंतुष्ट हैं. 26 प्रतिशत लोग अपने कार्य घंटों से असंतुष्ट हैं. आधे से भी कम लोगों का मानना ​​है कि उन्हें उनके काम के लिए उचित भुगतान किया जाता है. बाहर से आने वाले यहां अचल संपत्ति नहीं खऱीद सकते. लिहाजा बाहर से यहां काम के लिए आने वाले लोग यहां लंबा नहीं रह पाते. कुवैत के लोग काफी हद भारतीय कामगारों पर निर्भर कुवैत में भारतीय दूतावास की वेबसाइट के अनुसार, कुवैत काफी हद तक भारतीय मजदूरों और स्टाफ पर निर्भर है. भारतीय समुदाय यहां की कुल आबादी का 21 फीसदी है और जितने लोग कामगार हैं, उसमें भारतीयों का हिस्सा 30फीसदी है. कभी मामूली अर्थव्यवस्था वाला देश  19वीं से 20वीं सदी की शुरुआत में कुवैत एक छोटा व्यापारिक बंदरगाह था. भारत से इसका ब़ड़े पैमाने पर व्यापार होता था. अर्थ व्यवस्था बहुत मामूली थी. 1970 और 1980 के दशक के बीच कुवैत ने तेजी से अपने तेल के भंडार के जरिए आर्थिक तरक्की की. भारतीय समुदाय ने इस विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. कुवैत की कुल जनसंख्या 50 लाख के आसपास है. भारतीय डॉक्टर और नर्स बहुतायत में  कुवैत के चिकित्सा व्यवस्था एक तरह से भारतीय पेशेवर डॉक्टर और पैरामेडिकल के लोग संभालते हैं. कुवैत में करीब 1,000 भारतीय डॉक्टर, 500 भारतीय दांत चिकित्सक और करीब 24,000 भारतीय नर्स मौजूद हैं. पेशेवर लोगों की स्थिति मजदूरों की तुलना में बेहतर है. यहां बड़े पदों पर भी बहुत से भारतीय हैं, उनका जीवन भी बेहतर है लेकिन मजदूर तबका खराब स्थितियों में ही रहता है. FIRST PUBLISHED : June 12, 2024, 22:03 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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