मुसीबत में कांग्रेस की तारनहार रहीं सोनिया गांधी अब मल्लिकार्जुन खड़गे को दिया पार्टी संवारने का जिम्मा
मुसीबत में कांग्रेस की तारनहार रहीं सोनिया गांधी अब मल्लिकार्जुन खड़गे को दिया पार्टी संवारने का जिम्मा
मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस मुख्यालय में स्थित कांग्रेस अध्यक्ष के कार्यालय में ले जाते वक्त सोनिया गांधी के चेहरे पर खुशी और राहत साफ दिखाई दे रही थी. यह दफ्तर कभी उनका हुआ करता था, लेकिन अब वह सियासत को पूरी तरह अलविदा कहकर पहाड़ों पर रिटायरमेंट गुजारने की योजना बना रही हैं. माना जा रहा है कि वह यहां शिमला के पास अपनी बेटी प्रियंका वाड्रा के बनाए घर में रह सकती हैं.
नई दिल्ली. सोनिया गांधी साफ-सफाई की कुछ ज्यादा ही पाबंद हैं. कई साल पहले एक पुस्तक विमोचन समारोह में जहां ज्यादातर लोगों ने किताब पर लगे रैपिंग पेपर को फाड़कर वहीं लापरवाही से फेंक दिया था, तब सोनिया गांधी ने अपना पेपर उठाकर बड़े करीने से मोड़कर अपने बैग में रख लिया था. अब उन्होंने कांग्रेस को भी उसी तरह संभालने के लिए पार्टी की बागडोर मल्लिकार्जुन खड़गे के हवाले कर दी है.
खड़गे को कांग्रेस मुख्यालय में स्थित कांग्रेस अध्यक्ष के कार्यालय में ले जाते वक्त सोनिया गांधी के चेहरे पर खुशी और राहत साफ दिखाई दे रही थी. यह दफ्तर कभी उनका हुआ करता था, लेकिन अब वह सियासत को पूरी तरह अलविदा कहकर पहाड़ों पर रिटायरमेंट गुजारने की योजना बना रही हैं. माना जा रहा है कि वह यहां शिमला के पास अपनी बेटी प्रियंका वाड्रा के बनाए घर में रह सकती हैं.
हालांकि उनका यह कदम कुछ ऐसा है जो उन्होंने भाग्य पर छोड़ दिया है, क्योंकि पिछली बार जब उन्होंने ऐसा करने की योजना बनाई थी, तब उन्हें फिर से कार्यभार संभालने के लिए मजबूर होना पड़ा, क्योंकि उनके बेटे राहुल गांधी ने अचानक कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था.
सोनिया गांधी के जीवन में नियति का रोल
नियति ने सोनिया गांधी के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. यह नियति ही थी, जिसने उन्हें एक गृहिणी के रूप में अपना आरामदायक जीवन छोड़ने के लिए मजबूर किया, जो ‘गाजर का हलवा’ बनाना और अपने बगीचे की देखभाल करना पसंद करती थीं. उनके पति राजीव गांधी की हत्या और कांग्रेस के संकट ने सोनिया गांधी को उनके ‘अंतर्मन की आवाज’ सुनने और सक्रिय राजनीति में प्रवेश करने के लिए मजबूर किया.
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सोनिया गांधी ने तब सियासत में अपने प्रवेश को सही ठहराते हुए कहा था, ‘मैं अपनी सास और पति द्वारा बनाई गई पार्टी को बिखरते हुए नहीं देख सकती थी.’ एक कम बोलने वाली शर्मीली राजनेता के रूप में शुरुआत सोनिया गांधी को भले ही शरद पवार और पीए संगमा जैसे कुछ वरिष्ठ नेताओं ने विदेशी मूल का होने के कारण खारिज कर दिया था. लेकिन सोनिया गांधी इससे डगमगाई नहीं और अपनी सास इंदिरा गांधी की रूल बुक के जरिये ‘सियासी रणनीतियों’ में महारत हासिल की.
जब अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को दी मात
यहां तक कि पार्टी के भीतर और बाहर मौजूद सोनिया गांधी के आलोचकों ने भी स्वीकार किया कि उन्होंने 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी को हराते हुए कांग्रेस को सत्ता में वापस लाकर अपनी हिंदी बाधा और ‘विदेशी मूल’ के मुद्दे पर काबू पा लिया.
जिन लोगों ने उनका तिरस्कार किया था, वे उनके द्वारा बनाए गए गठबंधन – यूपीए का हिस्सा बनने के लिए दौड़ पड़े. सोनिया गांधी के ‘विदेशी मूल’ को लेकर कांग्रेस छोड़ने के बाद शरद पवार द्वारा बनाई गई एनसीपी आज तक उनकी सहयोगी बनी हुई है. यहां तक कि डीएमके, जिन्हें सोनिया गांधी अपने पति के हत्यारों को खोजने में न्याय नहीं करने का दोष देती थीं, अब तक कांग्रेस की पक्की सहयोगी बनी हुई है.
यह फिर से नियति ही थी – और वास्तविक राजनीति की उनकी समझ – जिसने उन्हें वर्ष 2004 में प्रधानमंत्री नहीं बनने पर मजबूर किया. वह जानती थीं कि एनसीपी और अन्य सहयोगियों ने उनके विदेशी मूल के सवाल को भुला दिया है, लेकिन उनकी इतालवी जड़ें हमेशा पसंदीदा पंचिंग बैग होंगी, खासकर राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर… जिम्मेदारी के बिना सत्ता सोनिया गांधी के अनुकूल थी. इसने उन्हें फोर्ब्स और न्यूजवीक के अनुसार, दुनिया की 10 सबसे शक्तिशाली महिलाओं की सूची में भी ला खड़ा किया.
कांग्रेस की बागडोर छोड़ने के बाद फिर लौटना पड़ा
नियति ने एक बार फिर सोनिया गांधी के जीवन में अपनी भूमिका निभाई. उन्होंने कांग्रेस पार्टी का प्रभार छोड़ दिया, जो नरेंद्र मोदी की जादूगरी के आगे नाकाम साबित होती दिख रही थी. हालांकि, राहुल गांधी के कार्यभार संभालने के बाद पार्टी धीरे-धीरे और कमजोर होती गई और इस कारण सोनिया गांधी को अपनी रिटायरमेंट वाली जिंदगी को छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा.
गोवा के एक रिजॉर्ट में साइकिल चलाती सोनिया गांधी की खुशनुमा तस्वीरें कांग्रेस पर छाए संकट के बादल के पीछे खो गईं और उन्हें पार्टी को संभालने के लिए एक बार फिर से पार्टी की बागडोर संभालने के लिए वापस आना पड़ा.
हालांकि, इस बीच सोनिया गांधी दो बार कोविड-19 से संक्रमित हुईं और उनकी सेहत और भी खराब हो गई थी. इससे उनके बच्चों को भी एहसास हुआ कि अब उन्हें पूरी तरह रिटायर हो जाना चाहिए.
ऐसे में कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष ने स्वतंत्र और खुले चुनाव पर जोर दिया. चुनाव प्रक्रिया को लेकर जनता की धारणा और शशि थरूर के खेमे द्वारा खुलकर निराशा व्यक्त करने के बावजूद सोनिया गांधी खुशी-खुशी सेवानिवृत्त हो गईं. वह अपने पीछे एक ऐसी पार्टी छोड़कर जा रही हैं जो कमजोर है और उसे बहुत काम करने की जरूरत है. लेकिन उनके सबसे बड़े आलोचक, यहां तक कि बीजेपी के लोग भी, स्वीकार करते हैं कि उन्होंने खुद को एक राजनेता के रूप में साबित किया है. उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि सभी को सुनने और समझौता करने की उनकी शैली का अनुसरण उनके उत्तराधिकारी खड़गे द्वारा किया जाएगा.
सोनिया गांधी ने बदलाव के लिए इस गंदगी को किसी और के द्वारा साफ करने के लिए छोड़ दिया है. और अब, उन्होंने आखिरकार अपने भाग्य की जिम्मेदारी खुद संभाल ली है.
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Tags: Congress, Mallikarjun kharge, Sonia GandhiFIRST PUBLISHED : October 26, 2022, 19:16 IST