Blog: सूरजपाल जैसे बाबाओं पर सख्त एक्शन जरूरी ठोस नियम बनाने चाहिए

अगर कोई बाबा अतार्किक दावे करता है तो उस पर एक्शन की व्यवस्था होनी चाहिए. इसके लिए अलग से कानून जरूरी है. जब तक इस तरह के दावों को रोकने के सख्त कानून नहीं बन जाते, इसके लिए जिला मैजिस्ट्रेट अपने विशेष अधिकारों का इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके तहत उन सभी बाबाओं को लाने की जरूरत है जो भी अतार्किक दावेदारी करते हैं.

Blog: सूरजपाल जैसे बाबाओं पर सख्त एक्शन जरूरी ठोस नियम बनाने चाहिए
हाइलाइट्स भगवान होने का दावा करने सभी बाबाओं पर तुरंत एक्शन जरूरी संत समाज को भी इस दिशा में पहल करने की आवश्यता प्रवचन के जरिए श्रद्धालुओं से लाखों की कमाई की निगरानी होनी चाहिए संतरी से सूट बूट चश्मे के साथ बाबा की गद्दी पर बैठ जाने वाले सूरजपाल के समर्थक उसे विशेष शक्तियों वाला मानते हैं. अपने मन से नारायण साकार विश्वहरि भोले बाबा का नाम धारण कर लेने वाला ये तथाकथित बाबा 2000 में एक परिवार से 16 साल की लड़की का शव छीन लेने के आरोप में जेल भी गया था. उसका कहना था कि वो लड़की को जिंदा कर देगा. लड़की तो जिंदा नहीं हुई, होना भी नहीं था, लेकिन बाबा जेल से जल्द ही छूट गया. इसकी एक बड़ी वजह है देश में अंधविश्वास के विरुद्ध कोई सख्त केंद्रीय कानून नहीं है. अलग अलग राज्यों में तो है, लेकिन वो भी बहुत खास मामलों में. हालांकि कई राज्यों में अंधविश्वास फैलाने वालों के खिलाफ रोक-थाम की की कार्रवाई करने के अधिकार जिला मैजिस्ट्रेट के पास भी होते हैं. संतरी से बाबा तक के सफर और करतूतों जांच जरूरी अब तक बाबा के बारे में बहुत सारी जानकारियां सामने आ रही है. उनसे पता चलता है कि बाबा बने इस सिपाही के कारनामों में बहुत सारा अंधविश्वास शामिल है. मसलन, कहा जा रहा है कि वो बीमारियों से छुटकारा दिला देता है. उसके चरण रज कहे जाने वाले रंगोली के बुरादे को घर में रखने से भूत-प्रेत नहीं आते. इसके अलावा बाबा के अभी भी बहुत से कारनामे सामने आने हैं. ऐसे में सख्ती से जांच होनी चाहिए कि वो और कौन से ऐसे काम करता था, जिनसे अंधविश्वास बढ़ता है. बाबाओं को इस तरह के सारे काम काज से अलग करने के लिए भी कानून की जरूरत है. बाबा बनने वाले श्रद्धालु पर अपनी धाक कायम करने के लिए तमाम तरह की कोशिशें करते हैं. जैसे बागेश्वर वाले धीरेंद्र शास्त्री बिना पूछे कागज पर श्रद्धालुओं के मन की बातें लिख देते हैं. इस तरह के चमात्कारिक काम पर रोक लगाने की जरूरत है. हालांकि बहुत सारे लोगों को ये काम धर्म की परिधि में लग सकता है. फिर भी इस तरह के कारनामों पर रोक के बगैर बाबाओं के प्रति अंधश्रद्धा को खत्म नहीं किया जा सकता. देश भर में ऐसे बाबा फैले हैं जो श्रद्धालुओं को अपने दबाव में लेने के लिए तरह तरह के चमत्कार दिखाते हैं. साइंस का दौर चमत्कारों को जगह क्यों साइंस के इस दौर और ‘कल’ यानी मशीनों के इस ‘युग’ में ऐसे अंधविश्वास और चमत्कार की कोई जगह नहीं होनी चाहिए. भारतीय धर्मों की भी बात की जाय तो धर्म की किसी किताब में चमत्कारों का कोई स्थान नहीं है. बल्कि धर्मदर्शन के विद्यार्थी तो ये भी जानते हैं कि जो भी बात आध्यात्म और धर्म के संदर्भ में की जाती है, अपने मूल रूप में वो तर्कों के साथ होती है. बात ईश्वर के अस्तित्व की हो, विनाशकारी ताकतों की हो, पंथों की बात हो, ये सब कुछ तार्किक आधार पर ही होती है. समाज में जातियों का जो विद्वेष फैलता है वो इन तर्कों की अनदेखी के कारण ही होता है. ये भी पढ़ें : बैंच और दरोगा ही दरोगा… उफ्फ.. पोस्टमार्टम हाउस के बाहर का ऐसा नजारा पहले कभी नहीं देखा.. जाति की सहानुभूति जातियों के इस विद्वेष का भी सूरजपाल ने खूब फायदा उठाया है. ये एक हकीकत है कि सवर्ण जातियों के बाबा अक्सर दलित और पिछड़ी जातियों के श्रद्धालुओं का तिरस्कार करते हैं. ऐसे में सूरजपाल ने अपने जाटव होने का लाभ उठाया. वो अपने समाज के भोले और धर्मभिरु लोगों को ये यकीन दिला दिया कि वही उनका कल्याण कर सकता है. इस तरह से सूरजपाल को दलित और पिछड़े लोगों का भरोसा हासिल हो गया. महिलाओं पर उसका ‘मोहनी-मंत्र’ आसानी से चल ही गया. यहां ये साफ कर देना जरूरी है कि बाबाओं के दरबार में भी उनकी जातियों का खूब असर देखा गया है. चाहे वे सवर्ण कही जानी वाली जातियों के ही बाबा क्यों न हों. मोहनी मंत्र यहां ये भी समझने वाली बात है कि मोहनी मंत्र वैसी ही एक धारण है जैसा कि पारस पत्थर और अमृत. ये होता तो नहीं है, लेकिन सभी इसमें यकीन करते हैं. धर्म से जुड़ी कुछ किताबों में मोहनी मंत्र का जिक्र आता है तो देवताओं के लिए. मनुष्यों के लिए नहीं. हां ये भी ध्यान देने लायक है कि सूरजपाल श्रद्धालुओं के बीच खुद को भगवान स्थापित करता था. कोई ऐसी व्यवस्था भी होनी चाहिए कि किसी को भी स्वयंभू भगवान नहीं बनने दिया जाय. भगवान बनने वाले सारे बाबा अब तक बड़े फ्रॉड ही निकले हैं. हिंदु परंपरा में सबसे ऊंचे स्थान पर बैठने वाले शंकराचार्य और रामानंदाचार्य को भी आचार्य का दर्जा है, ईश्वर का नहीं. इन सबसे भी जरूरी है कि चूकि बहुत सारे बाबा प्रवचन के जरिए श्रद्धालुओं से लाखों रुपये रोजना कमा रहे हैं. उनकी इस कमाई को अब कानूनी तरीके से जांचने की जरूरत है. क्योंकि पहले जब कानून बने थे उस दौर में बाबा किसी तरह से अपना पेट भर पालते थे. अब तो आश्रम के नाम पर महल बन रहे हैं और बाबा शानदार गाड़ियों पर चल भी रहे हैं. (डिसक्लेमर- ये लेखक के अपने विचार हैं. न्यूज़ 18 का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं है.) FIRST PUBLISHED : July 5, 2024, 12:16 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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