इस नस्ल की बकरियों का करें पालन विदेशों में भी है जबरदस्त डिमांड

इटावा के पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ.राजेंद्र सिंह यादव बताते हैं कि दुनिया में एकमात्र उत्तर प्रदेश का इटावा जिला ही इस बकरी का उद्गम क्षेत्र है. चंबल घाटी में जमुनापारी बकरी बड़े पैमाने पर पाई जाती है, इसके संरक्षण के लिए योजनाएं शुरू की गई है. यह दुग्ध उत्पादन में भी मुफीद है. एक जमुनापारी बकरी डेढ़ से दो किलो दूध देती है. इसकी कीमत 5 लाख तक होती है. 

इस नस्ल की बकरियों का करें पालन विदेशों में भी है जबरदस्त डिमांड
इटावा. ग्रामीण इलाके में रहने वाले लोगों के लिए बकरी पालन हमेशा से बेहतर कमाई का जरिया रहा है. बकरियों की कई ऐसी नस्ल है, जिसको पालकर किसान मोटी कमाई कर सकते हैं. जमुनापारी नस्ल की बकरियां इसी श्रेणी में आती है. जमुनापारी बकरी इटावा जिले के चंबल इलाके में हीं पाई जाती है. जमनापारी बकरियाें की डिमांड इंडोनेशिया, मलेशिया, वियतनाम, श्रीलंका, भूटान, बांग्लादेश आदि देशों में है. जमुनापारी को तोतापरी के नाम से भी पुकारा जाता है. विदेशों में जमुनापारी बकरी को कितना सम्मान मिलता उसका अंदाजा इसी बात से लगाया जाता है कि उसे गुडलक बकरी का दर्जा तो मिला हुआ है. साथ ही सम्मान के रूप में उनके स्टेचू भी इंडोनेशिया में लगाए गए हैं. इस वजह से जमनापारी को कहा जाता है गुडलक बकरी इंडोनेशिया के तत्कालीन राष्ट्रपति सुकर्णो 1947 में भारत दौरे पर जब आए थे तो उनकी नजर जमनापारी बकरियाें पर पड़ी. वे अपने साथ कुछ बकरियों के बच्चे को अपने साथ ले गए थे. इंडोनेशिया के किसानों को जमनापारी बकरी का दूध बेहद पौष्टिक लगा. यहां के किसान इस बकरी को सौभाग्य और शांति का प्रतीक मानने लगे. 1956 में जब इंडोनेशिया में ज्वालामुखी विष्फोट हुआ तो एक हजार लोगों की अकाल मौत हो गई. इस विष्फोट में वही लोग बच गए जनके पास जमुनापारी बकरियां थी. तभी से जमनापारी बकरी को गुडलक बकरी माना जाने लगा. जमनापारी बकरी भारत से निकलकर इंडोनेशिया के अलावा मलेशिया, ब्रिटेन, वियतनाम सहित कई देशों में पहुंच गया है. संरक्षण के लिए सरकार चला रही है कई योजनाएं  इटावा के पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ.राजेंद्र सिंह यादव बताते हैं कि दुनिया में एकमात्र उत्तर प्रदेश का इटावा जिला ही इस बकरी का उद्गम क्षेत्र है. कुख्यात डाकुओं के आतंक से जूझती रही चंबल घाटी में पाई जाने वाली जमुनापारी बकरी के कारण इटावा को एक खासी पहचान मिली है. इटावा जिले की चंबल घाटी में जमुनापारी बकरी बड़े पैमाने पर पाई जाती है, लेकिन एक समय विलुप्त होने के कगार पर पहुंचने के बाद इसके संरक्षण के लिए योजनाएं शुरू की गई है. दो लीटर तक दूध देती है जमनापारी बकरी पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ.राजेंद्र सिंह यादव बताते हैं कि जमुनापारी बकरी कटीली हरी पत्तियों का सेवन करती है और कटीली हरी पत्तियां चंबल इलाके में बड़े तादाद में पाई जाती है. यह दुग्ध उत्पादन में भी मुफीद है. एक जमुनापारी बकरी डेढ़ से दो किलो दूध देती है. इटावा की चकरनगर तहसील क्षेत्र के दर्जनाें गांव में जमुनापारी बकरी पाली जाती है. अब पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश और पाकिस्तान में भी इनका पालन किया जाता है. Tags: Animal husbandry, Etawa news, Local18, Uttarpradesh newsFIRST PUBLISHED : August 6, 2024, 11:29 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed