बेहतरीन थे दुश्मन के हथियार हमारे पास थे पुराने खिलौने न होता इजराइल तो
बेहतरीन थे दुश्मन के हथियार हमारे पास थे पुराने खिलौने न होता इजराइल तो
BSF: बीएसएफ को राज्य सशस्त्र पुलिस की कुछ बटालियन के साथ उनके पुराने हथियार विरासत में मिले थे. 1965 के भारत पाक युद्ध के दौरान, पाकिस्तानी सेना के पास मौजूद हथियारों के सामने हमारे हथियार खिलौने लग रहे थे. कैसी थी शुरूआत में बीएसएफ के शस्त्रागार की स्थिति, जानने के लिए पढ़ें आगे...
Border Security Force: जनवरी 1965 में कंजरकोट की घटना के बाद लगभग यह तय हो चुका था कि बॉर्डर सिक्योरिटी को राज्य सशस्त्र बलों से लेकर एक डेडिकेटेड फोर्स को सौंपा जाए. इस फैसले पर आगे बढ़ते हुए मई 1965 को नई फौज का ऐलान कर दिया गया और बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (बीएसएफ) के नाम से एक नई फोर्स अस्तित्व में आ गई. इस फोर्स को गढ़ने की जिम्मेदारी मध्यप्रदेश के तत्कालीन आईजीपी खुसरो फ़रामुर्ज़ रुस्तमजी को सौंपी गई.
बीएसएफ के पहले महानिदेशक खुसरो फ़रामुर्ज़ रुस्तमजी ने भारतीय सेना, वायु सेना और नेवी से बेहतरीन जाबांजों को चुनकर बीएसएफ के कुनबे को बढ़ाने की कवायद शुरू की. इसी कवायद के तहत, बॉर्डर पर पहले से तैनात राज्य सशस्त्र पुलिस की कुछ अच्छी बटालियन को भी बीएसएफ में शामिल किया गया. इन बटालियन के साथ बीएसएफ को उनके दशकों पुराने हथियार भी विरासत में मिले. उस समय, बीएसएफ के कोथ (शस्त्रागार) की हालत बहुत अच्छी थी. जवानों को पर्सनल वैपन के तौर पर एमकेआई-4 राइफल, .303 राइफल, एमके-1 राइफल जैसे हथियार उपलब्ध कराए जा रहे थे.
वहीं, सेक्शन और प्लाटून के लिए कार्बाइन मशीनगन और स्टेन 9 एमएम एमके-2 सब मशीनगन ही उपलब्ध थे. इसके अलावा, कमांडरों को ब्राउजिंग 9एमएम पिस्टल उपलब्ध कराई गई थी. सेक्शन वैपन के तौर पर मशीन गन और .303 ब्रेन दी गई थी. ओएमएल 2 मोर्टार को प्लाटून हथियार के तौर पर शामिल किया गया था. इसके अलावा, बटालियन लेबल पर पर जवानों को 7.92 एमएम एचएमजी सीजेड और मोर्टार उपलब्ध कराया गया था. यह भी पढ़ें: सरहद पर तैनात थे उम्रदराज जवान, चीन-पाकिस्तान ने दिया तगड़ा झटका, आंखें खुलने के बाद BSF… भारत की तमाम सरहदों पर खानापूर्ति के लिए सूबों ने उम्रदराज पुलिस कर्मियों की तैनाती कर दी गई थी. सूबों की इसी लापरवाही का फायदा पहले चीन और फिर पाकिस्तान ने उठाया. जिसके बाद बीएसएफ के… क्या है पूरा मामला, जानने के लिए क्लिक करें.
बेहतर हथियारों के लिए करना पड़ा छह साल का इंतजार
1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध की बात करें तो जहां एक तरफ पाकिस्तान के जवानों के हाथों में उस समय के सबसे अत्याधुनिक हथियार थे, वहीं हमारे पास मौजूद हथियार उनके सामने खिलौनों की तरह दिख रहे थे. दुश्मन को मुंह तोड़ जवाब देने के लिए अब जरूरत थी बेहतरीन हथियारों की. हालांकि इस जरूरत को पूरा होने में करीब छह साल से अधिक का वक्त लग गया. 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध के बाद बीएसएफ को नए हथियार मुहैया कराने की कवायद शुरू हुई.
1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के बाद बीएसएफ को ऑटोमैटिक और सेमी-ऑटोमैटिक हथियार मुहैया कराने की कवायद शुरू की गई. बीएसएफ ने अपने जवानों को.303 राइफल की जगह 7.62 एमएम 2ए, 2ए1, 1ए1 और एल1ए1 राइफल मुहैया कराई. ये ऐसे हथियार थे, जिनका निशाना नकेवल अचूक था, बल्कि ये लंबी दूरी तक मार करने में भी सक्षम थे. इसके अलावा, ये अत्याधुनिक हथियार एक मिनट में 60 राउंड के साथ ग्रेनेड भी फायर की भी क्षमता रखते थे. यह भी पढ़ें: कंजरकोट में हुई कायराना हरकत, तो रुस्तमजी ने किया ऐसा इलाज, आज भी कांप उठती है पाकिस्तान की रुह… कंजरकोट में हुई घटना भारत के लिए एक आई ओपनर की तरह थी. इस घटना के बाद उपसेना प्रमुख के नेतृत्व में एक कमेटी बनी और एक नई फौज के गठन का फैसला हो गया. बीएसएफ के नाम से गठित इस फौज की कमान मध्य प्रदेश कॉडर के खुसरो फ़रामुर्ज़ रुस्तमजी को सौंपी गई थी. कैसे हुआ बीएसएफ का गठन, जानने के लिए क्लिक करें.
मदद के लिए आगे आए रूस और इजराइल, और फिर
समय के साथ देश का माहौल भी तेजी से बदलना शुरू हो चुका था. बीएसएफ के कंधों पर इंटरनेशनल बॉर्डर के साथ इंटरनल सिक्योरिटी का जिम्मा आ गया था. इस नई जिम्मेदारी की वजह थी पंजाब, उत्तर-पूर्व और जम्मू एवं कश्मीर में तेजी से फैल रहा आंतकवाद. इन राज्यों से आतंकवाद को मिटाने के लिए बीएसएफ को बेहद महतवपूर्ण भूमिका सौंपी गई थी. इस वक्त, एके-47 और 5.56 एमएम इंसास राइफल जैसी अत्याधुनिक हथियारों से बीएसएफ को लैस किया गया था.
साथ ही, क्लोज क्वार्टर बैटल (सीक्यूबी) के लिए अचूक हथियार सब मशीन गन कार्बाइन 9एमएम 1ए1 को भी फोर्स में शामिल किया गया था. बीएसएफ की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए 5.56 कैलिबर की 1B1 इंसास असॉल्ट राइफल तैयार की गई. रूस से एके सीरीज राइफल और इजरायल से 5.56 एमएम X-95 असॉल्ट राइफल खरीदी गईं. स्नाइपर्स के लिए खास तौर इस्तेमाल की जाने वाली राइफलों की खरीद भी इसी दौर में की गई. इसके अवाला, बीएसएफ को 5.56 एमएम इंसास लाइट मशीन गन (एलएमजी) और एमएजी 7.62 एमएम मशीन गन से भी लैस किया गया.
Tags: BSF, Indo Pakistan War 1965FIRST PUBLISHED : December 4, 2024, 08:53 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed