पीएम मोदी की संसदीय सीट वाराणसी का नाम बनारस और काशी भी क्यों कैसे पड़े

banaras City: एक दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी से नामांकन किया. हालांकि पिछले दो चुनावों से मोदी यहां से भारी अंतर से जीत हासिल कर रहे हैं. वाराणसी भारतीयों के लिए खास धर्म की नगरी है. इसे बनारस और काशी भी कहते हैं. इसके ये नाम कैसे पड़े.

पीएम मोदी की संसदीय सीट वाराणसी का नाम बनारस और काशी भी क्यों कैसे पड़े
हाइलाइट्स देश का अकेला शहर जिसे दो तीन नहीं बल्कि 50 नाम मिल चुके हैं जब 600 ईसा पूर्व इस शहर के बाहरी इलाके में बुद्ध आए तो इसे काशी कहा जाता था मुगलों के दौर में इस नगर को आधिकारिक तौर पर बनारस कहा जाता था वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संसदीय सीट है. वह इस पवित्र नगरी से दो बार से सांसद हैं. अब तीसरी बार यहीं से चुनाव मैदान में हैं. एक दिन पहले उन्होंने चुनावों के लिए नामांकन किया. वाराणसी के कई नाम हैं. इस शहर को कई अलग नामों से पुकारा जाता रहा है. कुल मिलाकर इस नगरी को एक दो नहीं बल्कि 08 नाम मिले हैं. हालांकि तीन सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं. ये हैं – वाराणसी, बनारस और काशी. ये सवाल भी लाजिमी है कि बनारस को वाराणसी आधिकारिक नाम कैसे मिला. वैसे आगे बढ़ने से पहले हम आपको वाराणसी के सभी 08 नामों से भी परिचित करा देते हैं, ये हैं – बनारस, काशी, अविमुक्त क्षेत्र, आनंदकानन, महाश्मशान, रुद्रावास, काशिका, तप:स्थली, मुक्तिभूमि, शिवपुरी. वैसे तो ये भी कहते हैं कि ये देश का अकेला ऐसा शहर है जिसे 50 नाम मिले हैं. वैसे दुनियाभर में इस शहर को बनारस के नाम से ज्यादा जानते हैं. हाल में इस शहर के एक उप नगरीय रेलवे स्टेशन का नामकरण बनारस के तौर पर किया गया है. यहां के मुख्य स्टेशन का नाम वाराणसी कैंट है तो एक अन्य उप नगरीय रेलवे स्टेशन का नाम काशी भी है. शहर का मुख्य वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन, जो किसी विशाल और भव्य मंदिर की संरचना लिए हुए हैं. (wiki commons) रोचक बात है कि मुगलों और अंग्रेजों के जमाने में जब इस शहर का आधिकारिक नाम बनारस था तो ये वाराणसी कैसे हो गया. इसका भी एक इतिहास है. डायना एल सेक की किताब “बनारस सिटी ऑफ लाइट” कहती है, वाराणसी का सबसे प्राचीन नाम काशी है. ये नाम करीब 3000 बरसों से बोला जा रहा है. तब काशी के बाहरी इलाकों में ईसा से 600 साल पहले बुद्ध पहुंचे थे. बुद्ध की कहानियों में भी काशी नगरी का जिक्र आता रहा है. दरअसल काशी का नाम एक प्राचीन राजा काशा के नाम पर पड़ा, जिनके साम्राज्य में बाद में प्रसिद्ध और प्रतापी राजा दिवोदासा हुए. ये भी कहा जाता है कि पहले लंबी ऐसी घास होती थी, जिसके फूल सुनहरे के होते थे. जो नदी के किनारे फैले हुए जंगलों में बहुतायत में थी. इसे कशेता कहा जाता था. सिटी ऑफ लाइट यानि काशी काशी को कई बार काशिका भी कहा गया. मतलब चमकता हुआ. ये माना गया कि भगवान शिव की नगरी होने के कारण ये हमेशा चमकती हुई थी. जिसे “कशाते” कहा गया यानि “सिटी ऑफ लाइट”. शायद इसीलिए इस नाम काशी हो गया. काशी शब्द का अर्थ उज्वल या दैदिप्यमान. इसे सिटी ऑफ लाइट कहा गया है. शिव की नगरी हमेशा उज्जवल रही है दैदिप्यमान. वाराणसी नाम कैसे आया वाराणसी भी प्राचीन नाम है. इसका उल्लेख भी बौद्ध जातक कथाओं और हिंदू पुराणों में है. महाभारत में बार बार इसका जिक्र हुआ है. दरअसल इसका पाली भाषा में जो नाम था वो था बनारसी. जो टूटते फूटते बनारस के नए नाम में आया. ये शहर बनारस के नाम से अधिक जाना जाता है. बेशक आधिकारिक तौर पर अब इसका नाम वाराणसी है. आजादी के बाद नाम वाराणसी हुआ मुगलों के शासन और फिर अंग्रेजों के शासनकाल में इसका नाम बनारस ही रहा लेकिन आजाद भारत में इसका आधिकारिक नाम हुआ वाराणसी. कोई भी बनारसी यही कहेगा कि चूंकि इस शहर के एक ओर वरुणा नदी है, जो उत्तर में गंगा में मिल जाती है और दूसरी ओर असि नदी. लिहाजा इन नदियों के बीच होने के कारण इसका नाम वाराणसी कहलाया. अगर पुराणों की बात करें तो इसमें हमेशा दो नामों का जिक्र हुआ वो है वाराणसी और काशी. हालांकि कहा जाता है वाराणसी को ही पॉली भाषा में बनारसी के नाम से संंबोधित किया गया है. पुराण क्या कहते हैं पदमपुराण कहता है, वरुणा और असि दो नदियां हैं. उन्हें भगवान ने बनाया औऱ उसके बीच ये पवित्र भूमि.दुनिया में जिससे बेहतर कोई जगह नहीं है. कुर्मा पुराण में सीधे सीधे लिखा है, वाराणसी वो शहर है जो वरुणा और असि नदियों के बीच है. हालांकि कुछ पुराना साहित्य ये भी कहता है कि वरुणा और असि नहीं बल्कि शहर के उत्तर में किसी जमाने में अकेली नदी बहती थी, जिसका नाम था रणासि , जिसका नाम हो सकता है कि बाद में वरुणा पड़ा हो. पुरातात्विक दावा है कि राजघाट वो जगह है जहां रणासि नदी का मेल गंगा नदी से हुआ. शायद ये शहर वाराणसी नदी के दोनों ओर ही बसा होगा. ये गंगा के किनारे नहीं फैला होगा. शासकीय तौर पर कब नाम वाराणसी हुआ वाराणसी नाम का उल्लेख मत्स्य पुराण, शिव पुराण में भी मिलता है, किन्तु लोकोउच्चारण में यह ‘बनारस’ नाम से प्रचलित था, जिसे ब्रिटिश काल मे ‘बेनारस’ कहा जाने लगा. आखिरकार 24 मई 1956 को शासकीय तौर पर इसका नाम फिर वाराणसी कर दिया गया. ये घाटों और प्राचीन मंदिरों का शहर है (फाइल फोटो) आजादी से पहले था ये बनारस रजवाड़ा आजादी के पहले जब भारत में करीब 565 देशी रजवाड़े अस्तित्व में थे, उन्हीं में एक था बनारस. बनारस के राजा काशी नरेश या बनारस नरेश या काशी राज कहा जाता था. 15 अगस्त 1947 से पहले ही बनारस के तत्कालीन महाराजा विभूतिनारायण सिंह ने अपनी रियासत के भारत में विलय के पत्र का हस्ताक्षर कर दिए. आजादी के बाद जब उत्तर प्रदेश बना तो इसमें टिहरी गढ़वाल, रामपुर और बनारस रियासत को मिलाया गया. तब बनारस के जाने माने कांग्रेस नेता श्रीप्रकाश ने बनारस का नाम बदलने की मांग करते हुए इसे इसका प्राचीन नाम देने की बात की. श्रीप्रकाश बाद में असम के राज्यपाल बनाए गए. तब इस बात का जिक्र हुआ कि इस प्राचीन शहर का नाम काशी या वाराणसी होना चाहिए. तब श्रीप्रकाश ने सरदार पटेल और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत को इस बारे में कई पत्र लिखे. संपूर्णानंद ने वाराणसी नाम पर मुहर लगाई असल में जब इस शहर का नाम 24 मई 1956 को बदला गया तो उसमें मुख्य भूमिका संपूर्णानंद की थी. वो तब तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन चुके थे. उनका खुद का रिश्ता बनारस से था. संस्कृत के विद्वान इस नेता ने बनारस की जगह ज्यादा संस्कृतनिष्ठ नाम वाराणसी का चयन किया. Tags: Banaras, Kashi, Kashi City, PM modi in Varanasi, PM Modi Varanasi Visit, Varanasi TempleFIRST PUBLISHED : May 15, 2024, 13:00 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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