दास्तान-गो : सुनीता विलियम्स अगर अंतरिक्ष यात्री के बजाय जानवरों की डॉक्टर होतीं तो
दास्तान-गो : सुनीता विलियम्स अगर अंतरिक्ष यात्री के बजाय जानवरों की डॉक्टर होतीं तो
Daastaan-Go ; Sunita Williams Birthday Special : आख़िरकार वह दिन भी आया जब हम लोगों को अंतरिक्ष में भेजा जाना था. साल 2006 के दिसंबर महीने की नौ तारीख़ थी. यह ऐसा लम्हा होता है, जब पुराने अनुभवी लोग लगातार आपको दिलासा देने की कोशिश करते हैं. दिमाग़ी तौर पर शांत रहने के लिए कहते हैं. लेकिन आपके दिल की धड़कनें बेतहाशा बढ़ी हुई होती हैं. तभी आपको पता चलता है कि जिस अंतरिक्ष यान से आप ऊपर जा रहे हैं, उसके तल्ले में जोर का धमाका हुआ है. वह जोर की आवाज़ आप सुन सकते हैं. इससे आप सब बुरी तरह हिल जाते हैं. कि तभी आप एक जोर के झटके से ऊपर की तरफ़ उठ जाते हैं.
दास्तान-गो : किस्से-कहानियां कहने-सुनने का कोई वक्त होता है क्या? शायद होता हो. या न भी होता हो. पर एक बात जरूर होती है. किस्से, कहानियां रुचते सबको हैं. वे वक़्ती तौर पर मौज़ूं हों तो बेहतर. न हों, बीते दौर के हों, तो भी बुराई नहीं. क्योंकि ये हमेशा हमें कुछ बताकर ही नहीं, सिखाकर भी जाते हैं. अपने दौर की यादें दिलाते हैं. गंभीर से मसलों की घुट्टी भी मीठी कर के, हौले से पिलाते हैं. इसीलिए ‘दास्तान-गो’ ने शुरू किया है, दिलचस्प किस्सों को आप-अपनों तक पहुंचाने का सिलसिला. कोशिश रहेगी यह सिलसिला जारी रहे. सोमवार से शुक्रवार, रोज़…
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जनाब, सुनीता विलियम्स को कौन नहीं जानता. पूरी दुनिया में उनका नाम है. तारीख़ी किताबों में उनका नाम दर्ज़ है. वे अंतरिक्ष यात्री के तौर पर दो बार में कुल 321 दिन, 17 घंटे, 15 मिनट तक अंतरिक्ष में रह चुकी हैं. मतलब एक साल से थोड़ा ही कम. इसमें भी वे पहली ही बार में वे 195 दिनों तक अंतरिक्ष में रही थीं. उन्होंने तभी एक अन्य अंतरिक्ष यात्री शैनोन ल्यूसिड का सबसे अधिक समय तक अंतरिक्ष में रहने का रिकॉर्ड तोड़ दिया था. ल्यूसिड 188 दिन, 4 घंटे अंतरिक्ष में रही थीं. सुनीता के नाम सबसे अधिक समय, लगभग 50 घंटे, 40 मिनट तक (सात बार में), अंतरिक्ष में चहल-क़दमी करने का रिकॉर्ड भी है. यही नहीं, अंतरिक्ष में रहते हुए ही वे एक मैराथन दौड़ में भी हिस्सा ले चुकी हैं. वहीं, अंतरिक्ष स्टेशन में एक ट्रेड-मिल है, उस पर क़रीब 4.5 घंटे तक दौड़ते हुए. ऐसे तमाम कारनामों को सुनीता विलियम्स अंज़ाम दे चुकी हैं अब तक.
इस सबके बावज़ूद ज़रा सोचकर देखिए जनाब, अगर सुनीता विलियम्स अंतरिक्ष यात्री न होतीं तो? वे अगर जानवरों की डॉक्टर होतीं तो? तैराक या गोताख़ोर होतीं? पानी में डुबकी लगाने वालीं? या फिर जेट विमान की पायलट होतीं? ये सवाल यूं ही नहीं हैं. ख़ुद सुनीता की ज़िंदगी के सफ़र से निकले हैं. इस बारे में क़रीब दो साल पहले, 2020 में उन्होंने ख़ुद रोशनी डाली थी. हिन्दुस्तान के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम साहब के सहयोगी रहे हैं सृजन पाल सिंह. उन्होंने एक वेबिनार के दौरान सुनीता विलियम्स से बातचीत की थी. तब कोरोना महामारी का दौर था, सो तमाम लोग इसी तरह अपनी गतिविधियां चला रहे थे. उस वेबिनार में सुनीता ने बताया था कि कैसे वे ज़िंदगी में अपनी इच्छा पर अड़ी नहीं, कहीं भी. बल्कि उसे थोड़ा किनारे रख सामने मौज़ूद विकल्पों को चुना. उन्हें अपनाया और इस तारीख़ी मक़ाम तक आ गईं.
सुनीता बताती हैं, ‘सच कहूं तो मुझे ज़िंदगी में अपनी पहली पसंद की चीज मिली ही नहीं ज़्यादातर. पहले जिन कॉलेजों में मैं पढ़ना चाहती थी, उनमें मुझे दाख़िला नहीं मिला. मुझे जानवरों से बहुत प्यार है. इसलिए जानवरों की डॉक्टर बनना चाहती थी. वह नहीं बन सकी. पसंद के कॉलेजों में दाख़िला न मिलने पर बड़े भाई (जय थॉमस) ने मशवरा दिया- तुम नौसेना अकादमी के बारे में क्यों नहीं सोचती? मुझे बात ठीक लगी तो मैंने नौसेना अकादमी में दाख़िला ले लिया. यह बात है, 1987 की. नौसेना में भी मेरी पहली पसंद गोताख़ोर (डाइवर) बनने की थी. क्योंकि मैं तैराक हूं. तैराकी मुझे पसंद है. लेकिन गोताख़ोर बनने का मेरा मामला ज़्यादा आगे बढ़ा नहीं. पायलट के तौर पर वहां मुझे तरज़ीह दी गई. उसमें भी मेरी पहली पसंद ये थी कि जेट विमान की पायलट बनूं. लेकिन हाथ में मौका आया हैलीकॉप्टर की पायलट बनने का तो मैंने उसे ही थाम लिया’.
जनाब, अपने इस इंटरव्यू से भी चार साल पहले, यानी 2016 में, सुनीता विलियम्स ने स्पेस ग्रुप के चेयरमैन तथा प्रबंध निदेशक सचिन बहंबा से भी इसी तरह की बातचीत की थी. उसमें उन्होंने कहा था, ‘ज़िंदगी में कब कौन सी चीज आपके लिए आगे ले जाएगी, ये किसी को पता नहीं होता. इसलिए अलग-अलग क़िस्म की चीजों पर तज़रबे करते रहने चाहिए. उससे घबराना नहीं. जो मौके मिलें, उन्हें हाथ से जाने नहीं देना चाहिए’. तज़रबों की बात आई तो उनसे उस मौके के बारे में भी पूछ लिया गया, जब पहली बार अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ (राष्ट्रीय विमान-विज्ञान एवं अंतरिक्ष प्रशासन) के दफ़्तर में उन्होंने क़दम रखा था. यह बात हुई अगस्त 1998 की. इस बारे में सुनीता ने बताया, ‘जैसे ही आपको चुना जाता है, तो आप ख़ुद को अंतरिक्ष यात्री समझने लगते हैं. वैसे ही, जैसे तमाम लोगों के साथ दूसरे मामलों में भी होता है. मगर ये सच नहीं होता’.
‘चुने जाने के बाद भी लंबे समय तक, जब आपका प्रशिक्षण वग़ैरा चलता रहता है, आप सिर्फ़ एक उम्मीदवार भर होते हैं. जैसे, मैं भी अंतरिक्ष यात्रा के लिए थी. वहां दो साल मेरी ट्रेनिंग चली. अंतरिक्ष यान, रॉकेट वग़ैरा के बारे में कई चीजें सीखीं. अंतरिक्ष में ले जाए जाने वाले उपकरणों (पे-लोड) और इंजन के बारे में जाना. इसी सिलसिले में अंतरिक्ष केंद्रों की यात्राएं कीं. अंतरिक्ष में मौसम बहुत गर्म होता है. तमाम हालात वहां एकदम अलग होते हैं. उनसे कैसे निपटना है, यह सीखा. इस बीच, मुझे थोड़े समय के लिए अंतरिक्ष में जाने का मौका. ये साल 2002 की बात है. पर बदक़िस्मती से, तभी 2003 की शुरुआत में कोलंबिया दुर्घटना हो गई. उसमें हमने अपने दोस्तों को गवां दिया. उनमें कल्पना चावला (पहली भारतवंशी अंतरिक्ष यात्री) भी थीं. इससे शटल प्रोग्राम रोक दिया गया. हम नहीं जानते थे कि अब हम शटल से स्पेस में जा सकेंगे या नहीं’.
‘तो इस तरह कई अनिश्चितताओं से भरा रहा सफ़र. सबका ही रहता है. लेकिन आपको चलते रहना होता है. मैंने भी यही किया. फिर आख़िरकार वह दिन भी आया जब हम लोगों को अंतरिक्ष में भेजा जाना था. साल 2006 के दिसंबर महीने की नौ तारीख़ थी. यह ऐसा लम्हा होता है, जब पुराने अनुभवी लोग लगातार आपको दिलासा देने की कोशिश करते हैं. दिमाग़ी तौर पर शांत रहने के लिए कहते हैं. लेकिन आपके दिल की धड़कनें बेतहाशा बढ़ी हुई होती हैं. तभी आपको पता चलता है कि जिस अंतरिक्ष यान से आप ऊपर जा रहे हैं, उसके तल्ले में जोर का धमाका हुआ है. वह आवाज़ आप सुन सकते हैं. इससे आप सब बुरी तरह हिल जाते हैं. कि तभी आप एक जोर के झटके से ऊपर की तरफ़ उठ जाते हैं. जैसे-जैसे ऊपर जाते हैं, पहली बार अंतरिक्ष में जाने वालों को सांस लेने में कुछ दिक़्क़त होने लगती है. इन सभी हालात को ख़ुद ही संभालना होता है’.
‘इस सब के महज़ 10 मिनट के भीतर आपको अद्भुत क़िस्म का अनुभव होता है. आप अब अंतरिक्ष में होते हैं. अंतरिक्ष यान धरती के चक्कर लगाते हुए तैर रहा होता है. और आप ख़ुद उस यान के भीतर रूई के फ़ाहे की तरह उड़ रहे होते हैं. नीचे धरती और ऊपर यान के भीतर, सब अविश्वसनीय सा होता है’. तो जनाब, अब फिर सोचिए कि सुनीता विलियम्स अंतरिक्ष यात्री के बजाय जानवरों की डॉक्टर होतीं तो? गोताख़ोर, तैराक या ऐसा ही कुछ और होतीं तो? तब क्या हम उनके ऐसे अद्भुत, अविश्वसनीय तज़रबों से दो-चार हो रहे होते? शायद नहीं. लिहाज़ा, अब ये भी सोचकर, पढ़कर और समझकर देखिए कि सुनीता विलियम्स अंतरिक्ष यात्री बनीं, तो किस तरह? सीधा सा ज़वाब है. ‘अड़कर नहीं बढ़कर’. यानी उन्होंने अपनी किसी एक इच्छा या मंसूबे पर अड़ने का रास्ता नहीं चुना, आगे बढ़कर उन मौकों को थामा जो रास्ते में आते गए. उन्हें पूरी शिद्दत से निभाया. आख़िर में वही मौके उन्हें इस मक़ाम तक ले आए.
वैसे, यह भी बता दें कि सुनीता की यह दास्तान कहने की वज़ह यूं बनी है कि उनका जन्मदिन आज, यानी 19 सितंबर को होता है. साल 1965 में अमेरिका के ओहियो राज्य में यूक्लिड क़स्बे में उनकी पैदाइश हुई. पिता इनके गुजराती हैं. डॉ. दीपक एन. पांड्या. इस नाते सुनीता भारतवंशी-अमेरिकी हैं. मां बॉनी जालोकर स्लोवेनिया की हैं. इनके पिता 1958 में गुजरात से अमेरिका के बोस्टन में आकर बस गए थे. इसके बावज़ूद सुनीता और उनके परिवार ने अपनी जड़ों को छोड़ा नहीं है. वे भगवान गणेश को बहुत मानती हैं. अपने साथ उन्हें भी अंतरिक्ष की सैर करा लाई हैं. भगवद् गीता से उन्होंने ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’ (मतलब कर्म करते रहिए फल की चिंता मत कीजिए) की शिक्षा ली है. इस पाक़-किताब को भी वे एक बार अंतरिक्ष में साथ ले जा चुकी हैं. वहां खाली वक़्त में इसका अध्ययन करती रहीं हैं. कहना ग़लत न होगा कि गीता की इसी ता’लीम से सुनीता विलियम्स अंतरिक्ष यात्री के तौर पर दुनिया में रोशन हुई हैं.
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Tags: Birth anniversary, Hindi news, Nasa, up24x7news.com Hindi OriginalsFIRST PUBLISHED : September 19, 2022, 07:00 IST